राजनीतिक प्रयोगों की कार्य-शाला है बिहार की धरती

प्रयोगों की धरती बिहार एक बार फिर सब की निगाहों पर है। लोकनायक जे.पी. ने बिहार से दूसरी आज़ादी का शंखनाद कर सियासी राजनीति का नव प्रयोग किया था। इस कार्य में उन्हें जबरदस्त सफलता मिली। मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडिस और शरद यादव ने दूसरे राज्यों से बिहार आकर प्रयोगों की एक नयी मिशाल प्रस्तुत की थी। बाद में लालू यादव ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता का ताज सौंपकर एक और सफल प्रयोग किया। समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस ने इसी धरती पर लालू की सत्ता उखाड़ कर प्रयोग की दिशा को आगे बढ़ाया। बाद में दो तीन प्रयोग नितीश ने भी किये। नितीश ने दो बार भाजपा और दो बार लालू से हाथ मिलाकर प्रयोग की आंधी को थमने नहीं दिया। जंगलराज का प्रयोग भी यहीं हुआ है जिसकी गूंज पूरे भारत में आज भी सुनाई देती है। चारा घोटाला भी इसी प्रयोग की देन है जिसमें एक मुख्यमंत्री को जेल हुई। यह वही धरती है जहां नितीश और लालू ने एक दूसरे पर कभी भ्रष्टाचार आरोप लगाए थे और आज गलबहियां डाल कर सियासी नाच कर रहे है। देश के किसी अन्य राज्य में शायद ही इतने क्रांतिकारी प्रयोग हुए है। अब जातीय गणना कराकर नितीश ने अपने प्रयोग को आगे बढ़ाया है। पत्ता नहीं अभी कितने और प्रयोग अभी बिहार की धरती पर होंगे। 
 बिहार समाजवादी आंदोलन के प्रणेता लोक नायक जय प्रकाश नारायण और कर्पूरी ठाकुर की जन्म और कर्म भूमि है। डा. राम मनोहर लोहिया ने भी बिहार में समाजवादी आंदोलन की नींव रखी थी। लोहिया ने ही सबसे पहले पिछड़ा पावे सौ में साठ का नारा बुलंद किया था। लोहिया के चेले रहे बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने बिहार में जातीय गणना का शंख फूंक कर देशभर में एक नज़ीर पेश की। आज नितीश और लालू दोनों एक बार फिर एक होकर बिहार में शासन कर रहे है। लालू और नितीश दोनों जे.पी. आंदोलन की पैदावार है। दोनों ने एक साथ संघर्ष कर बिहार से कांग्रेस को नेस्तनाबूद किया था। 
बिहार समाजवादी आंदोलन की जन्म कर्म और संघर्ष की भूमि रही है। भारत छोड़ो आंदोलन में समाजवादी नेताओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। जय प्रकाश नारायण, रामनंदन मिश्रा, बसावन सिंह, सूरज नारायण सिंह, कर्पूरी ठाकुर रामानंद तिवाड़ी बी.पी. मंडल के जीवनकाल में समाजवादी आंदोलन कई चरणों से होकर गुजरा। मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडिस और शरद यादव जैसे अन्य राज्यों  के समाजवादी नेताओं को भी बिहार से राजनीतिक जीवनदान मिला था। लोहिया की मृत्यु के बाद कर्पूरी ठाकुर सबसे बड़े समाजवादी नेता के रूप में उभरे और उन्होंने बिहार की पिछड़ी जातियों के युवाओं को संगठित किया। लोहिया के बाद रामानंद तिवारी और भोलाप्रसाद सिंह के साथ वे बिहार की समाजवादी राजनीति के प्रमुख केंद्र बन गए। 1952 से आठवें दशक तक मृत्यु पर्यन्त कर्पूरी ठाकुर दो बार मुख्यमंत्री और एक बार उप-मुख्यमंत्री रहे। इसी दौरान रामविलास पासवान, लालू यादव और नितीश कुमार सरीखे युवा कर्पूरी ठाकुर की अंगुली पकड़ कर युवा समाजवादी  के रूप में उभरे। 1974 में जे.पी. आंदोलन के दौरान छात्र नेता के रूप में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। आठवें दशक में कर्पूरी ने चौधरी चरण सिंह के साथ मिलकर लोकदल नेता के रूप में पिछड़ों की राजनीति शुरू की। रामविलास पासवान, लालू यादव और नितीश बाद में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व को चुनौती देने लगे और इसके साथ बिहार में यादव, कुर्मी और दलितों की राजनीति शुरू हो गई। इस तरह लालू यादव और नितीश कुमार की राजनीति दरअसल उसी प्रक्रिया को आगे ले गई जिसे कर्पूरी ठाकुर ने शुरू किया था। दोनों ने अपनी-अपनी राजनीतिक आवश्यकताओं के अनुरूप, कर्पूरी ठाकुर की विरासत पर कब्ज़ा जमाने की कोशिश की। बाद में कर्पूरी ठाकुर के अनुयायियों समेत समाजवादी नेता अलग-अलग पार्टियों में बिखर गए। जनता पार्टी और जनता दल का प्रयोग असफल होने के बाद नवें दशक में लालू, नितीश और पासवान ने अलग होकर पिछड़ों और दलितों की राजनीति शुरू कर दी। लालू के बिहार पर दस साल तक एक छत्र राज के बाद नितीश ने भाजपा के साथ मिलकर लालू को उखाड़ फेंका। इस बीच लालू चारा घोटाले में फंस गए। लोकसभा चुनाव में नितीश नरेंद्र मोदी के सांप्रदायिक एजेंडे को मुद्दा बनाकर भाजपा से अलग हो गये। आज एक बार फिर लालू और नितीश एक हो बिहार पर काबिज हो गए हैं। अब यह प्रयोग कितनों दिनों का है,  बताने वाला कोई नहीं है।