साम्प्रदायिक दिशा में चला रहे हैं चुनावी अभियान को हिमंत बिस्वा


असम में मुख्यमंत्री श्री हिमंत बिस्वा शर्मा ने विपक्ष के भ्रष्टाचार के नये आरोपों का जवाब देते हुए, 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए चुनाव पूर्व अभियान में विशेष रूप से कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधते हुए तीखा जवाबी हमला किया है। अन्य राज्यों के विपरीत, असम में सत्तारूढ़ भाजपा अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में थोड़ी बेहतर स्थिति में है, विभाजित विपक्ष के भीतर एकजुटता की निरंतर कमी से कुछ हद तक इसमें मदद मिली है। भाजपा ने सांप्रदायिक आधार पर मतदाताओं के बीच ध्रूवीकरण के लिए एक उच्च-स्तरीय अभियान शुरू कर दिया है। इसके नेता कांग्रेसियों पर निशाना साध रहे हैं, जिसे उनकी पुरानी ‘मुसलमानों के तुष्टिकरण की नीति’ के रूप में वर्णित किया गया है। हाल ही में कांग्रेस कार्य समिति (सी.डब्ल्यू.सी.) के बयान में गाजा में इज़रायली बलों और सशस्त्र मुस्लिम हमास समूह के बीच संघर्ष को समाप्त करने का आह्वान किया गया है, जिसने भाजपा को विपक्ष को मात देने के लिए एक और छड़ी प्रदान की है।
जहां एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमास द्वारा उसके क्षेत्र पर हमले के बाद इज़रायल के लिए भारत के समर्थन को जोरदार ढंग से रेखांकित किया है, तथा फिलिस्तीन समर्थक भावनाओं को कोई रियायत नहीं दी है, वहीं दूसरी ओर सी.डब्ल्यू.सी. की अपील में गाजा पट्टी पर संकटग्रस्त 23 लाख मुस्लिम आबादी की लम्बे समय से चली आ रही शिकायतों का उल्लेख किया गया है। वे वर्षों से कठोर इज़रायली कब्ज़े वाली सेना के अधीन रह रहे हैं।
इस प्रक्रिया में नरेन्द्र मोदी ने किसी भी स्तर पर किसी भी परामर्श के बिना, स्थायी अरब-इज़रायल संघर्ष के प्रति भारत की विदेश नीति के पारंपरिक गुटनिरपेक्ष जोर को उलट दिया। कई दिनों बाद 12 अक्तूबर को भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने, स्पष्ट रूप से मुस्लिम राष्ट्रों के बड़े समूह पर संभावित नकारात्मक प्रभाव के बारे में सोचते हुए फिलिस्तीनी संघर्ष के लिए भारत सरकार के पुराने समर्थन की पुष्टि करके मामले को संतुलित किया।
यह प्रधानमंत्री मोदी के पहले एकतरफा इज़रायल समर्थक बयान से भाजपा के अस्थायी रूप से पीछे हटने का एक दुर्लभ उदाहरण था, इसका तेज़ी से टालमटोल वाला कदम नि:संदेह कांग्रेस के शांत रुख से प्रभावित था। सी.डब्ल्यू.सी. द्वारा फिलिस्तीनियों के प्रति सहानुभूति और समर्थन की भारत की पिछली प्रतिबद्धता को दोहराने के साथ कांग्रेस की प्रतिक्रिया एक अपेक्षित मार्ग का पालन कर रही है।
ऐसा नहीं है कि चुनाव पूर्व अभियान के वर्तमान चरण के दौरान असम में इस तरह के सूक्ष्म सामरिक बदलावों से बहुत फर्क पड़ता है। श्री शर्मा के नेतृत्व में प्रदेश भाजपा विपक्ष पर हमला करने में लगातार अपने केंद्रीय नेतृत्व से भी आगे रहती है।
लेकिन असम या अन्य जगहों पर कट्टरपंथी भाजपा नेता गोगोई के तथ्यात्मक रूप से सही जवाब से प्रभावित नहीं हुए। उन्होंने कहा कि ‘हर कोई जानता है कि वर्तमान भाजपा दिवंगत वाजपेयी या अब भी श्री एल.के. अडवाणी जैसे नेताओं के प्रति दिखावा करती है।’ जहां तक नये इंडिया गठबंधन के तत्वावधान में बहुचर्चित विपक्षी एकजुटता की बात है, तो असम में बहुत अधिक प्रगति नहीं हुई है। राज्य स्थित टी.एम.सी. ने सुझाव दिया कि कांग्रेस और गैर-भाजपा दलों के साथ सीट समायोजन पर बातचीत शुरू होनी चाहिए, लेकिन इंडिया के घटकों द्वारा कोई हलचल नहीं हुई है, हालांकि वे जानते हैं कि भाजपा चुनावी लड़ाई के लिए तैयार है। दुर्भाग्य से प्रदेश कांग्रेस बेहद झगड़ालू गुटों में बंटी हुई है, श्री भूपेन बोरा जैसे वरिष्ठ नेता पार्टी भी अंदरूनी झगड़ों में उलझे हुए हैं। सांसद बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाले अल्पसंख्यक-आधारित ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिकफ्रंट (ए.आई. यू.डी.एफ.) ने कांग्रेस के साथ सीट समायोजन पर बातचीत शुरू करने का प्रयास किया था, लेकिन कांग्रेस ने अब तक कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी है।
छोटी पार्टियां, जैसे रायसर दल और असम जातीय परिषद भाजपा का विरोध करते हैं लेकिन अभी तक व्यापक गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं। दिलचस्प बात यह है कि आम आदमी पार्टी (आप) जिसने कुछ समय पहले गुवाहाटी नगर निगम चुनावों में एक वार्ड जीतकर असम में अपना कदम रखा था, ने श्री कमल मेधी, जो पहले रायसर दल के नेता थे, को अपने पाले में करने में कामयाब रही है। (संवाद)