बड़ा होता जा रहा मानवीय दुखांत

वर्ष 1948 में अरब क्षेत्र में ऐसा कुछ हुआ था, जिसमें से पैदा हुए दुखांत का संताप आज तक लाखों ही लोग भुगत रहे हैं। आगामी कितने समय तक यह त्रासदी घटित होती रहेगी, इसके बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है। उस समय अधिकतर अरब क्षेत्रों में ब्रिटिश शासन कायम था। जर्मनी के तानाशाह हिटलर और उसके सहयोगी देशों ने यूरोप के अलग-अलग क्षेत्रों में फैले यहूदियों के विरुद्ध इस कदर हिंसा फैलाई कि उसके कारण एक बार तो यह लगा था, जैसे इनका अस्तित्व ही खत्म होने वाला है। लाखों ही यहूदियों को जर्मनी और कुछ अन्य यूरोपीय देशों में मार दिया गया था। इस नसल को यह शिकवा रहा है कि सदियों पहले यरुशलम और आज के इज़रायल इलाके में से उनको निकाल दिया गया था और सैंकड़ों वर्ष वे निर्वासन की स्थिति में विदेशों में शरणार्थी बने रहे थे। 
वे दोबारा इस इलाके में अपनी घर वापसी चाहते थे और यह भी कि वहां यहूदियों के लिए एक अलग देश बने। ऐसी भावना और गतिविधियों के दृष्टिगत अंग्रेज़ों ने यहूदियों के साथ फिलिस्तीन का इलाका खाली करवाना शुरू कर दिया और वर्ष 1948 को वहां इज़रायल देश अस्तित्व में आ गया लेकिन इससे पहले ही वहां रहते लाखों फिलिस्तीनियों का भविष्य तबाह हो गया, क्योंकि बढ़ते दबाव के कारण उनको यह इलाका छोड़ कर पड़ोसी देशों में शरणार्थी बनने के लिए मजबूर होना पड़ा। परन्तु बहुत से अरब देशों ने इस नए बने इज़रायल को मान्यता नहीं दी। इसको लेकर उनके बीच कई युद्ध भी हुए। कुछ अरब देश संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव द्वारा अमरीका और ब्रिटिश द्वारा स्थापित किए गये इस देश के अस्तित्व को खत्म कर देना चाहते थे।
पड़ोसी लेबनान तथा सीरिया ने इज़रायल के साथ युद्ध शुरू किया। उनके साथ मिस्र तथा इराक भी मिल गए, परन्तु नये बने देश इज़ारयल के यहूदियों ने पश्चिमी देशों की मदद से इन हमलों के विरुद्ध सख्त रवैया धारण किया और अपने अस्तित्व को ही नहीं बचाए रखा, अपितु समीपवर्ती कई क्षेत्रों पर कब्ज़ा भी कर लिया। संयुक्त राष्ट्र सहित बड़े देशों ने पैदा हो चुकी इस समस्या का समाधान निकालने का यत्न किया, परन्तु वे सफल नहीं हो सके। आज भी इसका समाधान यहूदियों तथा फिलिस्तीनियों के दो स्वायत्त देश बनाने में ही माना जा रहा है, परन्तु हमास तथा हिजबुल्ला आदि संगठनों ने इराक तथा कुछ अन्य अरब देशों की मदद से हमेशा इज़रायल की स्थापना को चुनौती दे रखी है। वे उसके अस्तित्व स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। आज गाज़ा पट्टी में 20 लाख से भी अधिक फिलिस्तीनी रह रहे हैं जिन पर इस क्षेत्र के गुटों की आपसी कशमकश में हमास ने कब्ज़ा कर लिया है। इसी प्रकार पड़ोसी लेबनान हिजबुल्ला संगठन को अपनी पूरी मदद दे रहा है। यरुशलम यहूदियों, ईसाइयों तथा मुसलमानों का साझा धार्मिक ऐतिहासिक शहर माना जाता है जिस पर कब्ज़े को लेकर भी अक्सर इन समुदायों में टकराव होता रहता है। 
ताज़ा घटनाक्रम में 7 अक्तूबर को गाज़ा पट्टी पर हुकूमत जमाए बैठे हमास ने बड़ी संख्या में इज़रायल पर राकेट दागे और सैकड़ों इज़रायलियों को सीमा पार करके निर्ममता से मार दिया और लगभग 200 इज़रायली तथा अन्य विदेशी पर्यटकों को बंदी बना लिया। इसकी प्रतिक्रिया के रूप में इज़रायल ने जिस प्रकार इस पट्टी की घेराबंदी की है और जिस तरह हज़ारों की संख्या में यहां बम गिराने शुरू किये हैं, उसने एक बहुत बड़ी मानवीय त्रासदी को जन्म दिया है। यहां रहते लोग महिलाओं और बच्चों सहित इस त्रासदी का शिकार हो रहे हैं। हज़ारों ही लोग अब तक मारे जा चुके हैं। लाखों ही यहां से भाग कर दूसरे क्षेत्रों की ओर जाने के लिए मजबूर हैं। नाकाबंदी के कारण वहां पानी, खाद्य पदार्थ तथा अन्य बहुत-सी आवश्यक सुविधाएं लगभग खत्म हो रही हैं, परन्तु अब मिस्र की सीमा राफा से कुछ राहत सामग्री अवश्य भिजवाई गई है। 
चाहे इज़रायल ने गाज़ा पट्टी के फिलिस्तीनियों को उत्तरी क्षेत्र छोड़ कर दक्षिण की ओर जाने के लिए कहा है, परन्तु उसकी ओर से किए जा रहे हवाई हमलों तथा उसके बाद सीमा पर करके उसकी ओर से अपनी योजना के अनुसार किये जाने वाले ज़मीनी हमले से और भी बड़ी तबाही होने के आसार बन गए हैं। इसी कारण संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एन्टोनियो गुटेरेस ने तुरंत युद्ध रोकने की अपील की है और इस अपील में दर्जनों ही देशों को भी शामिल किया गया है, परन्तु फिलहाल ऐसा होता नज़र नहीं आ रहा। इस कारण हमास तथा इज़रायल के इस युद्ध में लाखों ही लोगों के बुरी तरह प्रभावित होने की आशंका बन गई है, जिसे साझे यत्नों से हर हाल में रोका जाना आवश्यक है। 
            
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द