नवाज़ शऱीफ और पाकिस्तान

देश विभाजन के समय नवाज़ शऱीफ का परिवार भी (पूर्वी पंजाब से) पाकिस्तान चला गया था। शऱीफ के बुजुर्गों का गांव ज़िला अमृतसर में जाती उमरा है। इस परिवार का भारत तथा भारतीय पंजाब के साथ विशेष संबंध तथा स्नेह रहा है। नवाज़ शऱीफ के छोटे भाई तथा पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज़ शऱीफ  जब पंजाब के मुख्यमंत्री थे, तब के उनके पंजाब दौरे को अक्सर याद किया जाता है। जहां तक पाकिस्तान का संबंध है चाहे इसे मुहम्मद अली जिन्ना ने  सभी के सांझे तथा मुस्लिम बहुसंख्या वाले देश, जो समय पाकर विश्व में अपना उदाहरण स्वयं होगा, के रूप में कल्पना की थी, परन्तु ऐसा सम्भव नहीं हो सका। वर्ष 1972 में इससे काफी दूरी पर स्थित पूर्वी पाकिस्तान, बंगला देश में बदल गया। बंगला देश बनने से पहले पूर्वी पाकिस्तान के इस भाग में युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने 30 लाख लोगों को मार दिया था। 
पाकिस्तान इस बात के लिए अपना उदाहरण ज़रूर आप बन गया था कि वहां ज्यादा समय तक सैनिक तानाशाही का शासन रहा। यदि वहां लोगों द्वारा निर्वाचित सरकारें आईं, तब भी उन्हें सैनिक साये में ही विचरण करना पड़ा। पाकिस्तान के चुने हुए पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली को वर्ष 1951 में लाहौर की एक रैली के दौरान गोलियां मार दी गई थीं। इसी तरह वर्ष 1979 को प्रधानमंत्री जुल़्िफकार अली भुट्टो को सैनिक तानाशाह जनरल मोहम्मद ज़िया-उल-हक द्वारा फांसी पर लटका दिया गया था। उसके बाद भुट्टो की बेटी बेनज़ीर भुट्टो जो स्वयं देश की दो बार प्रधानमंत्री रह चुकी थीं, को जनरल परवेज़ मुशर्रफ के कार्यकाल में एक चुनावी रैली के दौरान गोलियां मार उनकी हत्या कर दी गई थी। वर्ष 1999 में नवाज़ शऱीफ के प्रधानमंत्री होते हुये भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अटारी सीमा से दिल्ली-लाहौर बस द्वारा लाहौर की ऐतिहासिक यात्रा की थी। वहां उनका बड़ा भव्य स्वागत भी किया गया था तथा दोनों देशों में अमन तथा भाईचारक साझ के लिए लाहौर घोषणा-पत्र पर भी हस्ताक्षर किए गए थे। उस समय एक तरफ पाकिस्तान की निर्वाचित सरकार के प्रधानमंत्री खुली बाहों से अपने देश में भारतीय प्रधानमंत्री का स्वागत कर रहे थे तथा दूसरी तरफ  उनके ही देश का सेना प्रमुख भीतर से भारतीय क्षेत्र पर कब्ज़ा करने की योजनाएं बना रहा था। इस कारण दोनों देशों के मध्य कारगिल युद्ध की शुरुआत हुई। 
जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने देश के प्रधानमंत्री नवाज़ शऱीफ को जेल में डाल दिया तथा उसके बाद फिर लम्बे सैनिक शासन की शुरुआत हुई। जब तीसरी बार वह प्रधानमंत्री बने तो नवाज़ शऱीफ की सरकार को इमरान खान ने बड़ी चुनौती दी। उस समय भी यही प्रभाव बना रहा था कि इमरान खान की पीठ के पीछे सेना खड़ी है। इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने पर चाहे एकजुट हुए विपक्षी दलों ने असैम्बली में बहुमत में आकर उन्हें पद छोड़ने के लिए विवश कर दिया था, तब भी उस समय यही प्रभाव बन चुका था कि अब सेना इमरान खान के विरुद्ध हो चुकी है। पाकिस्तान में आगामी जनवरी मास में चुनाव होने जा रहे हैं। इस समय नवाज़ शऱीफ के स्थान पर इमरान खान जेल की कोठरी में बंद हैं तथा चार वर्ष के अन्तराल के बाद नवाज़ शऱीफ पुन: पाकिस्तान लौट आये हैं ताकि वह चुनावों में अपनी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) की मदद में सहायक हो सकें। नवाज़ शऱीफ चाहे अपने तीन बार के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान आतंकवादी संगठनों के विरुद्ध सेना के दबाव के कारण पूरी तरह खुल कर काम नहीं कर सके परन्तु उन्होंने अपने ढंग-तरीके से भारत के साथ अच्छे संबंध बनाने के यत्न ज़रूर किये थे। अपने पाकिस्तान लौटने पर उन्होंने भरी सभा में कुछ महत्त्वपूर्ण बातें कही हैं, जिनमें उन्होंने पाकिस्तान को दरपेश कड़ी आंतरिक चुनौतियों, जिनमें देश की बुरी आर्थिक स्थिति तथा लगातार बढ़ती महंगाई एवं ़गरीबी का ज़िक्र भी किया है तथा उसके साथ ही यह भी कहा है कि यदि पाकिस्तान ने आगे बढ़ना है तो उसे अपने पड़ोसी के साथ अच्छे संबंध ज़रूर बनाने होंगे। आगामी महीनों में वहां आम चुनाव होने हैं तथा नई सरकार का गठन होना है परन्तु यह बात सुनिश्चित है कि जब तक पाकिस्तान सेना की शह पर वहां से भारत के विरुद्ध होती आतंकवादी कार्रवाइयों पर अंकुश नहीं लगाता, तब तक दोनों देशों के संबंध सामान्य होना सम्भव नहीं है। यदि पाकिस्तान ने  विकास के मार्ग पर चलना है, यदि उसने अपने बहुत पीछे छूट गए करोड़ों नागरिकों को अच्छा जीवन प्रदान करने में सहायक होना है तो उसे अपने पड़ोसी के विरुद्ध परोक्ष युद्ध की बनाई गई नीति का त्याग करना होगा, क्योंकि किसी भी नकारात्मक कार्य-प्रणाली से अच्छी तथा ठोस उपलब्धि प्राप्त नहीं की जा सकती। आगामी समय में नवाज़ शऱीफ तथा उनकी पार्टी ऐसा कुछ करने में कितना सहायक हो सकेंगे, इस संबंध में अभी विश्वास के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता; परन्तु यह स्पष्ट है कि हर पक्ष से अपने विकास हेतु पाकिस्तान को नकारात्मक कार्य-प्रणाली का त्याग करके सकारात्मक गतिविधियों को प्राथमिकता देनी होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द