कैनेडियन भारतीयों की वीज़ा सेवाएं बहाल करना सरकार का अच्छा फैसला

हाल करना सरकार का अच्छा फैसला
हमारा ़फज़र् है बे-ल़ाग राय का इज़हार,
कोई दुरुस्त कहे या ़गलत ये काम उसका।
(अनवर शऊर)
भारत सरकार द्वारा किसी भी देश के नागरिकों की वीज़ा सेवाएं रद्द करना उसका अधिकार है, परन्तु कैनेडियन नागरिकों पर लगी वीज़ा पाबन्दी का सबसे अधिक प्रभाव पंजाबियों पर पड़ रहा था क्योंकि कनाडा में रहते भारतीयों में सबसे अधिक कैनेडियन नागरिक बने पंजाबियों की जड़ें अभी भी पंजाब में ही हैं, जिस कारण वीज़ा पाबन्दियां  पंजाब के सामाजिक ताने-बाने तथा आर्थिकता पर भी बुरा प्रभाव डालने लग पड़ी थीं। यहां तक कि पंजाब में रहते माता-पिता की मृत्यु तथा अंतिम रस्मों में शामिल होने से भी कई कैनेडियन नागरिक बने पंजाबी वंचित रहे हैं। चाहिए तो यह था कि पंजाब के सभी 20 सांसद, पंजाब के मुख्यमंत्री तथा विपक्षी दलों के प्रमुख एकजुट हो कर प्रधानमंत्री तक सम्पर्क करते तथा कहते कि यदि किसी व्यक्ति पर देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का सन्देह है तो उसका वीज़ा रोक लें, परन्तु शेष भारतीय मूल के लोगों  से ये पाबंदियां हटाई जाएं, परन्तु अफसोस है, शायद सुखबीर सिंह बादल के बिना पंजाब के किसी भी अन्य सांसद ने केन्द्र तक इस संबंध में पहुंच नहीं की। पंजाब सरकार ने तो बिल्कुल चुप्पी ही धारण कर ली, जैसे यह कोई गम्भीर मामला ही न हो। ़खैर, ‘देर आयद, दुरुस्त आयद’ के कथन अनुसार अब भारत सरकार ने अपना ़फैसला बहुत सीमा तक सुधार लिया है। हम तो सिर्फ यही चाहते थे कि भारत सरकार भारतीय मूल के कैनेडियन नागरिकों से पाबंदियां हटा ले परन्तु भारत सरकार ने इससे भी आगे बढ़ते जाते हुए सभी कैनेडियन नागरिकों के लिए एंट्री, बिजनेस, मैडीकल तथा कान्फ्रैंस वीज़ा सेवाएं बहाल करने की घोषणा कर दी है। हमें नहीं पता कि ऐसा बढ़ते अन्तर्राष्ट्रीय दबाव के तहत किया गया है या नहीं, परन्तु इसके पीछे कनाडा के 23 गुरु द्वारों की प्रबन्धक कमेटियों की संयुक्त मांग  की भूमिका भी दिखाई दे रही है। वैसे किसी भी विवाद का अंतिम हल तो बातचीत की मेज़ पर होता है परन्तु अब जब भारत सरकार ने स्वयं इस मामले में बहुत-सी पाबन्दियां वापिस लेने का फैसला कर लिया है, तो इस मामले में आपराधिक चुप्पी धारण करके बैठे पंजाब के सांसद एवं अन्य राजनीतिज्ञों को अपनी अन्तर-आत्मा में दृष्टिपात करना चाहिए कि उन्होंने कनाडा में बड़ी संख्या में रहते तथा इस फैसले से बुरी तरह प्रभावित हो रहे पंजाबियों की बात क्यों नहीं उठाई?
एक नवम्बर की बहस
अमल दुरुस्त करें अपने रहनुमाये-किराम,
कहूंगा स़ाफ तो सब को शिकायत होगी।
आज पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने एक नवम्बर को बुलाई बहस को नया नाम दे दिया है ‘मैं पंजाब बोलदां’। उन्होंने कहा कि ‘दोपहर 12 बजे पंजाब के मुख्य राजनीतिक दल जो अब तक सत्ता में रहे हैं, अपना पक्ष रखेंगे। प्रत्येक पार्टी को 30 मिनट का समय मिलेगा। प्रो. निर्मल जौड़ा जी मंच संचालन करेंगे...पंजाबियों को खुला आमंत्रण ‘पंजाब मंगदा जवाब’। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के इस ‘एक्स’ ट्वीट से जो स्पष्ट हो रहा है, उससे यह प्रतीत नहीं होता कि यह कोई बहस होगी। यह तो इस तरह हुआ कि विपक्षी दल 30-30 मिनट में अपनी बात करके बैठ जाएंगे तथा बाद में मुख्यमंत्री उनकी बात का जवाब देंगे तथा अपनी घोषणा करके या शायद फैसला सुना कर मामला खत्म कर देंगे।
सच्चाई यही है कि पंजाब के शासकों ने समय-समय पर खास तौर पर 1966 में पंजाबी सूबा बनने के उपरांत अधिक गलत फैसले लिये। वैसे तो 1947 के बाद ही कई गलत फैसले तथा बड़ी गलतियां की गईर्ं, परन्तु यह भी ठीक है कि जब पानी के मामले में पानी सिर से गुज़रने लगा तो उन गलतियों को सुधारने के यत्न भी किये गये। जैसे कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने एस.वाई.एल. के मामले से बचने के लिए पानी संबंधी सभी समझौते रद्द करवाये, परन्तु इसमें धारा पांच जोड़ ली गई कि जितना पानी बाहरी प्रदेशों को जा रहा है, यह जाता रहेगा। इस ़गलती को सुधारने के लिए विधानसभा ने पानी की रायल्टी लेने का आदेश भी सरकार को दिया। इसी तरह प्रकाश सिंह बादल पर भी इस मामले में ़गलतियां करने के आरोप लगते रहे हैं, परन्तु उन्होंने भी इस ़गलती को सुधारने के लिए एस.वाई.एल. के लिए अधिग्रहण की गई भूमि किसानों को वापिस करने का फैसला किया, परन्तु यह ठीक है कि राजनीतिज्ञों की ़गलतियों को माफ नहीं किया जा सकता। इस हमाम में अकाली, कांग्रेस, जनसंघ (भाजपा) सभी ही आरोपी हैं।
परन्तु जिस तरह की बहस या भाषण प्रतियोगिता करवाने तथा उस पर अंतिम टिप्पणी या फैसला देने का अधिकार मुख्यमंत्री जी ने आरक्षित रख लिया है, इससे उन्हें या उनकी पार्टी को कोई राजनीतिक लाभ तो चाहे ज़रूर मिल जाये परन्तु पंजाब को कोई लाभ नहीं मिल सकता। हां, नुकसान ज़रूर हो सकता है क्योंकि यहां उठे मुद्दे, लगे आरोप तथा पेश किए गए प्रमाण पंजाब के विरुद्ध अदालतों में ज़रूर इस्तेमाल किये जा सकते हैं। रही बात पिछली सरकारों की ़गलतियों की, यदि लोग उनकी ़गलतियों से सचेत नहीं होते तो वे उन्हें सत्ता से क्यों हटा देते? इस लिए पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से एक बार फिर हमारा निवेदन है कि किसने क्या किया, क्या अच्छा, क्या बुरा किया, इस पर बहस 2024 के चुनाव में खुल कर करवा ली जाए, परन्तु यह समय एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने का नहीं। यह समय विचार करने का है कि पंजाब के पानी का स्वामित्व कैसे वापिस लिया जाए, पंजाब के भू-जल को खत्म होने से कैसे बचाया जाए? पंजाब के पानी का पूरा इस्तेमाल नदियों के माध्यम से कैसे किया जाए, और शेष बचा पानी किस कीमत या रायल्टी पर अन्य प्रदेशों को दिया जाए? पानी का मामला सिर्फ एस.वाई.एल. तक सीमित नहीं है। पंजाब के साथ जो अन्याय हुए हैं, वे कैसे खत्म करवाए जाएं? पंजाब पुनर्गठन एक्ट में जबरन शामिल की गईं धाराएं 78, 79 तथा 80 जो केन्द्र सरकार को प्रदेश के अधिकारों में हस्तक्षेप करने का अधिकार देती हैं, कैसे हटाई जाएं, तथा पंजाबी भाषी क्षेत्र और चंडीगढ़ का अधिकार कैसे लिया जाए? पंजाब के सिर पर चढ़ा ऋण कैसे खत्म किया जाए? पंजाबियों का पलायन कैसे रोका या कम किया जाए? पंजाब के अन्य अनेक मसले हैं जिनका सहमति से समाधान किया जा सकता है या केन्द्र सरकार के खिलाफ अडिग रहा जा सकता है। अन्यथा ऐतबार साजिद के शब्दों में इन बहसों, भाषणों का कोई परिणाम नहीं निकलेगा—
ग़ुफ्तगू देर से जारी है नतीजे के ब़गैर,
एक नई बात निकल आई है हर बात के साथ।
सिरसा की सरकार तथा भाजपा में चढ़त
नि:संदेह सिखों को भाजपा की नरेन्द्र मोदी सरकार से बहुत शिकायतें हैं, परन्तु यह भी सच है कि मोदी सरकार देश के दो अल्पसंख्यकों मुसलमानों तथा ईसाइयों के मुकाबले सिखों को अपने नज़दीक लाने के अनेक यत्न करती आ रही है। वास्तव में भाजपा का संस्थापक संगठन माना जाता आर.एस.एस. तो सिखों को हिन्दू राष्ट्र का अंग ही मानता है। 
नि:संदेह एकाध बार आर.एस.एस. प्रमुख सिखों को अलग कौम भी कह चुके हैं, परन्तु फिर भी सिख मानसिकता में यह बात चुभती है कि कहीं सिख धर्म को भी हिन्दू धर्म बुद्ध-मत तथा जैन-मत की भांति अपने आगोश में लेकर आत्मसात न कर जाए। इसी लिए वे समय-समय पर अलग कौम होने का नारा बुलंद करते रहते हैं। खैर, पिछले दिनों दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के कार्यक्रम में जिस स्पष्टता व खुले मन से देश के गृह मंत्री अमित शाह ने सिखों की कुर्बानियों, साहस, गुरु साहिबान के बलिदान, सिखों की देश-भक्ति, मेहनत, आर्थिकता तथा अन्य क्षेत्रों में डाले गए योगदान की प्रशंसा की, उसके लिए उनका धन्यवाद  करना बनता है, परन्तु श्री शाह को चाहिए कि इस भावना को सिर्फ सिखों के सामने ही व्यक्त न करें, अपितु देश के सामने भी रखें और सिखों के मन में सिख कौम या धर्म को हिन्दू राष्ट्र में समा लेने की आशंकाओं को भी दूर करें। इस समारोह में पूर्व सांसद तरलोचन सिंह ने पंजाब से बाहर रहते सिखों के मामले उठाए। इस अवसर पर अमित शाह ने एक बात स्पष्ट कर दी कि भाजपा में सिखों के वकील तथा सबसे बड़े प्रतिनिधि का रुतबा मनजिन्दर सिंह सिरसा का है। हम समझते हैं कि गृह मंत्री के इस बयान ने जहां मनजिन्दर सिंह सिरसा का कद देश की राजनीति में और ऊंचा किया है, वहीं उनकी सिख कौम के प्रति ज़िम्मेदारी भी बहुत बढ़ा दी है। अब उनका फज़र् बनता है कि वह सिख कौम तथा पंजाब की मांगें मनवाने के लिए आगे आएं तथा अपनी कौम तथा पंजाब के प्रति अपना कर्त्तव्य निभाएं। अन्यथा इतिहास अपने प्रत्येक पात्र की कारगुज़ारी का लेखा तो बाद में ही करता है। 
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