सांसों पर वायु प्रदूषण का पहरा : बढ़ता प्रदूषण, घुटती सांसें

मौसम के करवट बदलने और हल्की ठंड के दस्तक देते ही इस वर्ष भी दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता ने दम तोड़ दिया है। दीवाली से कई दिन पहले ही दिल्ली-एनसीआर की हवा में जहर घुल चुका है और लोगों की सांसों पर वायु प्रदूषण का खतरा इतना खतरनाक होता जा रहा है कि दमघोंटू हवा में लोगों का सांस लेना मुश्किल हो गया है। वैसे तो वर्तमान में मुंबई में भी वायु गुणवत्ता ‘मध्यम’ श्रेणी में दर्ज की गई है और वहां बीएमसी द्वारा बिगड़ते वायु प्रदूषण को रोकने के लिए दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं लेकिन देश के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में तो वायु गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ श्रेणी में है। इससे पहले 17 मई को यहां वायु गुणवत्ता 336 एक्यूआई के साथ बहुत खराब दर्ज की गई थी और करीब पांच महीने बाद एक बार फिर दिल्ली हो या नोएडा अथवा आसपास के अन्य इलाके, एक्यूआई 300 के ऊपर जा चुका है तथा माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में यह 400 के पार पहुंच जाएगा, तब लोगों को सांस लेने में काफी तकलीफ महसूस होने लगेगी। वैसे अभी से सांस संबंधी परेशानियों के साथ बड़ी संख्या में लोग अस्पताल पहुंचने लगे हैं।
यह भी जान लें कि एक्यूआई है क्या? वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) जनता को आसानी से समझने योग्य तरीके से वायु गुणवत्ता की स्थिति बताने के लिए एक मूल्यवान उपकरण के रूप में कार्य करता है, जो वायु गुणवत्ता को 6 स्तरों में वर्गीकृत करता है, जिसमें अच्छा, संतोषजनक, मध्यम प्रदूषित, खराब, बहुत खराब और गंभीर शामिल है। शून्य से 50 के बीच एक्यूआई को अच्छा, 51 से 100 के बीच संतोषजनक, 101 से 200 के बीच मध्यम, 201 से 300 के बीच खराब, 301 से 400 के बीच बहुत खराब और 401 से 500 के बीच गंभीर माना जाता है। ये श्रेणियां वायु प्रदूषकों के परिवेशीय सांद्रता मूल्यों और उनके संबंधित स्वास्थ्य प्रभावों के आधार पर निर्धारित की जाती हैं, जिन्हें स्वास्थ्य ब्रेकप्वाइंट के रूप में जाना जाता है। ‘सिस्टम ऑ़फ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च’ (सफर) के अनुसार दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ श्रेणी में पहुंच गई है। सफर की स्थापना भारत में महानगरों के प्रदूषण स्तर और वायु गुणवत्ता को मापने के लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की पहल के तहत 2010 में की गई थी।
वायु प्रदूषण के कारण आसमान में छाये स्मॉग (कोहरे और धुएं का ऐसा मिश्रण, जिसमें बहुत खतरनाक जहरीले कण मिश्रित होते हैं) की झीनी काली चादर बेहद खतरनाक है, जो हवा में जहर घोलती चली जाती है, जिससे आंखें जलना तो मामूली परेशानी है, यह जहरीली हवा लोगों को सांस का गंभीर मरीज भी बना सकती है। भारत मौसम विज्ञान विभाग के अधिकारियों के मुताबिक आने वाले कुछ दिनों में दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता बहुत खराब रहेगी, जिसका कारण तापमान में कमी और पराली जलाने से होने वाला उत्सर्जन है। केंद्र सरकार के डिसीजन सपोर्ट सिस्टम फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (डीएसएस) ने पराली जलाए जाने की गतिविधियों में वृद्धि की आशंका जताई है, जिससे अगले कुछ दिनों में वायु गुणवत्ता बेहद खराब होने की आशंका है। चिंता का विषय यह है कि हर साल दिल्ली सहित, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश इत्यादि राज्यों में इस सीजन में खेतों में बड़े स्तर पर पराली जलाई जाती है, जिसके चलते प्रदूषण का यही आलम देखने को मिलता है लेकिन किसानों से पराली नहीं जलाने की अपील करने के अलावा सरकारों द्वारा बीते वर्षों में पराली प्रबंधन के लिए ऐसे कोई संतोषजनक उपाय ठोस स्तर पर नहीं किए गए, जिससे किसानों को पराली जलानी ही न पड़े और बगैर पराली को जलाये उनकी पराली का उपयोग भी विविध प्रकार से किया जा सके तथा उससे किसानों को कुछ अतिरिक्त आय भी हो।
खेतों में जलती पराली, विकास के नाम पर अनियोजित तथा अनियंत्रित निर्माण कार्यों के चलते बिगड़ते हालात, वाहनों और औद्योगिक इकाईयों के कारण अत्यधिक प्रदूषित हो रहे वातावरण के भयावह खतरों को हम इसी प्रकार साल-दर-साल झेलने को विवश हैं। हालांकि पर्यावरण तथा प्रदूषण नियंत्रण के मामले में देश में पहले से ही कई कानून लागू हैं लेकिन उनकी पालना कराने के मामले में पर्यावरण एवं प्रदूषण नियंत्रण विभाग में सदैव उदासीनता का माहौल देखा जाता रहा है। देश की राजधानी दिल्ली तो वक्त-बेवक्त ‘स्मॉग’ से लोगों का हाल बेहाल करती रही है। तय मानकों के अनुसार हवा में पीएम की निर्धारित मात्रा अधिकतम 60.100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होनी चाहिए किन्तु देश के कई इलाकों में यह वर्षभर इससे कई गुना ज्यादा ही रहती है। दिल्ली सहित देश के विभिन्न हिस्सों की आबोहवा जब भी हवा में पीएम की निर्धारित मात्रा को पार कर खतरनाक स्तर पर पहुंचती है तो सरकारें चेतावनी जारी करनी लगती हैं कि यदि ज़रूरत नहीं हो तो घर से बाहर न निकलें और प्रदूषण के कहर से बचने के लिए घर में भी सभी खिड़की-दरवाजे बंद रखें। न केवल दिल्ली-एनसीआर में बल्कि देशभर में वायु, जल तथा ध्वनि प्रदूषण का खतरा निरन्तर मंडरा रहा है। वायु, जल तथा अन्य प्रदूषण के कारण अब हर साल देशभर में लाखों लोग जान गंवाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक मानव निर्मित वायु प्रदूषण के ही कारण प्रतिवर्ष करीब पांच लाख लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं।
वायु प्रदूषण की गंभीर होती समस्या का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि देश में हर 10वां व्यक्ति अस्थमा का शिकार है, गर्भ में पल रहे बच्चों तक पर इसका खतरा मंडरा रहा है और कैंसर के मामले तेज़ी से बड़ रहे हैं। देश का शायद ही कोई ऐसा शहर हो, जहां लोग धूल, धुएं, कचरे और शोर के चलते बीमार न हो रहे हों। पयार्वरण तथा मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत डेविड आर. बॉयड का कहना है कि विश्वभर में इस समय छह अरब से भी ज्यादा लोग इतनी प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं, जिसने उनके जीवन, स्वास्थ्य और बेहतरी को खतरे में डाल दिया है और सर्वाधिक चिंता की बात यह है कि इसमें करीब एक-तिहाई संख्या बच्चों की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण के चलते दुनियाभर में प्रतिवर्ष करीब 70 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु हो जाती है, जिनमें करीब छह लाख बच्चे भी शामिल होते हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक वातावरण में बढ़ रहा वायु प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य के लिए काफी समस्यादायक स्थिति पैदा कर सकता है। नेशनल सेंटर ऑ़फ बायोटेक्नोलॉजी एसोसिएशन के अनुसार वायु की खराब गुणवत्ता व्यक्ति में ऑटिज्म, तनाव और स्ट्रोक जैसे तमाम न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर सहित अन्य बीमारियों को भी बढ़ावा देती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण के कारण हवा में कई प्रकार की हानिकारक गैसें सम्मिलित हो जाती हैं, जिनसे सिरदर्द, खांसी, ज़ुकाम और एलर्जी जैसी आम समस्याएं भी देखने को मिलती हैं। एक अध्ययन में यह भी कहा गया है कि भारत ‘नेशनल क्लीन एयर’ कार्यक्रम के तहत वर्ष 2024 तक पार्टिकुलेट प्रदूषण को 20.30 प्रतिशत तक घटाने के लिए प्रयासरत है लेकिन अध्ययनकर्ताओं का यह भी कहना है कि यदि भारत अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुआ तो इसके गंभीर दुष्परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
 
मो-9416740584