गम्भीर विचार-विमर्श की ज़रूरत

आज पंजाब जिस तरह के गम्भीर दौर से गुज़र रहा है, जो स्थिति इसकी बनी दिखाई दे रही है, उससे प्रतीत होता है कि यह दिशाहीन हो गया है। ऐसे हालात में पंजाब के मुख्यमंत्री से दिन-रात योजनाबंदी करने, चिन्तित होने तथा योजना के तहत कड़े कदम उठाने की उम्मीद की जाती है, परन्तु प्रतीत होता है कि उन्हें अपने प्रदेश से अधिक चिन्ता मध्य प्रदेश की है। विगत अवधि में वह चुनाव प्रचार हेतु हिमाचल प्रदेश में भी जाते रहे हैं, तथा गुजरात एवं कई अन्य स्थानों पर भी। प्रदेश के बाहर इस प्रकार व्यतीत किए गए समय से पार्टी को क्या हासिल हुआ है, इस संबंध में तो पार्टी ही अधिक जानती होगी, परन्तु हमारी समझ के अनुसार इन दौरों के दौरान मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए भाषण हवा में तीर छोड़ने से अधिक और कुछ भी नहीं थे। बढ़ा-चढ़ा कर किये गये दांवे एवं वायदे से इन राज्यों के लोगों को एक प्रकार से गुमराह करने के यत्न ही थे। आज सत्तारूढ़ पार्टी की ओर से ज़ोर-शोर से विरोधी नेताओं को ‘पंजाब बोलदा है’ के बैनर तहत बहस की चुनौती दी जा रही है परन्तु हमारे ऐसे राजनीतिज्ञों को इस बात को समझना पड़ेगा कि आज समय एक-दूसरे को ऐसी चुनौतियां देने का नहीं।
आज समय एकजुट होकर मैदान में उतरने का है। ज्वलंत मुद्दों को सम्बोधित होने का है, तथा पेचीदा होती जा रही गांठों को खोलने का है, परन्तु इसकी बजाय आज प्रदेश के माहौल में बेचैनी है। ज्यादातर लोगों के मन अशांत हैं, आश्चर्य इस बात का है कि यदि मुख्यमंत्री नित्य-प्रतिदिन बड़े-बड़े वायदे करते हुए नहीं थकते तो उनके मंत्री तथा साथी विधायक इस क्रियान्वयन में उनके शामिल क्यों नहीं होते? इस तरह प्रतीत होने लगा है कि सिर्फ एक प्रमुख व्यक्ति ही स्थान-स्थान पर तत्पर हुआ दिखाई देता है। उसके साथियों में किसी तरह का कोई जोश नहीं है। प्रदेश को प्रतिदिन उत्पन्न हो रहे नये मामलों का सामना करना पड़ रहा है। लोग उनके हल की तलाश करते हैं परन्तु मामलों को सुलझाने वाला कोई नहीं है। सड़कों पर बेरोज़गार तथा ठेके पर भर्ती किये गये युवक प्रदर्शन कर रहे हैं। मुख्यमंत्री, मंत्रियों तथा अन्य पदाधिकारियों को उनके चुनावों से पूर्व किए गये वायदों का स्मरण करवा रहे हैं परन्तु उन्हें सुनने वाला कोई नहीं है। प्रतिदिन उठ रहे मामलों को सुलझाते प्रशासन तथा पुलिस भी निरुत्साहित हुये दिखाई देते हैं। एक तरफ सतलुज-यमुना सम्पर्क नहर का मामला बेहद गम्भीर होकर सामने  खड़ा है,   दूसरी तरफ प्रदेश की आर्थिकता लड़खड़ा रही है। केन्द्र सरकार ने तो इस प्रदेश की ओर सहायता का हाथ बढ़ाने के स्थान पर इसे दृष्टिविगत ही कर दिया प्रतीत होता है। इन गम्भीर मामलों को सम्बोधित होने के स्थान पर मुख्यमंत्री मंच पर ड्रामेबाज़ी को प्राथमिकता दे रहे हैं, तथा अन्य पार्टियों के नेताओं को बहस के लिए चुनौती दे रहे हैं।
हम आश्चर्यचकित हैं कि विपक्षी दलों के नेताओं ने अब तक ऐसी की जाने वाली नौटंकियों में शामिल होने से इन्कार क्यों नहीं किया, क्योंकि पहली नवम्बर को लुधियाना में बहस के स्थान पर केवल ऐसी ड्रामेबाज़ी ही होने की भी अधिक सम्भावना है, जिससे कुछ भी हासिल नहीं होगा। वहां जो कुछ भी होगा, वह दरपेश मामलों को सुलझाने के स्थान पर और भी उलझाने में ही सहायक होगा। नि:संदेह ऐसी गतिविधियों में भाग न लेकर इसका बायकाट किया जाना बनता है। परिपक्व तथा सूझवान नेताओं से हम ऐसी ही उम्मीद करते हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द