जागरूक होकर अपनी ताकत दिखाएं मतदाता 

पांच राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। उनकी तारीखों का भी ऐलान हो गया है। राजनीतिक दल एवं उम्मीदावार मतदाताओं को रिझाने, लुभाने एवं अपने पक्ष में मतदान कराने के लिये तरह-तरह के दांव-पेंच लड़ा रहे हैं। इन लुभावनी छटाओं के बीच एक दिन के राजा यानी मतदाता को सतर्क एवं सावधान होकर अपने मत का उपयोग करना होगा। चुनाव मतदाताओं के हाथ में एकमात्र लेकिन बहुत ही कारगर संवैधानिक अधिकार होता है, जिसके सहारे वे जनप्रतिनिधियों का ही नहीं, राष्ट्र का भविष्य भी निर्धारित करते हैं। इसलिये वक्त की नज़ाकत को देखते हुए मतदाता किसी प्रलोभन में न आये और देश-हित में मतदान करें। भ्रष्टाचार में आकंठ लिप्त धमनियों में ईमानदारी एवं पारदर्शिता का संचार करें। इस वक्त सब कुछ बाद में, पहले देश-हित की रक्षा और उसकी अस्मिता है, राष्ट्रीय एकता का लक्ष्य है। मतदाता इसी लक्ष्य से पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव को निर्णायक मोड़ दे सकेगा।
मतदाता को जागरूक होकर चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष एवं पारदर्शी बनाने में सहयोग करना होगा। भारतीय लोकतंत्र दुनिया का विशालतम लोकतंत्र है और समय के साथ परिपक्व भी हुआ है। बावजूद इसके लोकतंत्र अनेक विसंगतियों एवं विषमताओं का भी शिकार है। मुख्यत: चुनाव प्रक्रिया में अनेक छिद्र हैं, सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे बड़ा छिद्र चुनावों की निष्पक्षता एवं पारदर्शिता को लेकर है। खरीद-फरोख्त, नशा एवं मतदाताओं को लुभाने एवं आकर्षित करने का आरोप भी लोकतंत्र पर बड़े दाग हैं। चुनाव सुधारों की तरफ हम चाह कर भी बहुत तेज़ी से नहीं चल पा रहे हैं। चुनाव आयोग जैसी बड़ी और मज़बूत संस्था होने के बावजूद चुनाव में धनबल, बाहूबल एवं सत्ताबल का प्रभाव कम होने के बजाए बढ़ता ही जा रहा है। ये तीनों ही हमारे प्रजातंत्र के सामने सबसे बड़ा संकट है। इसलिये पांच राज्यों में राजनीतिक दलों और मतदाताओं की ही नहीं, चुनाव आयोग की भी परीक्षा होगी।
किसी लोकतंत्र और उनके नुमाइंदों को देखकर इसका आभास किया जा सकता है कि वहां के नागरिक, मौजूदा स्थिति में मतदाता कितने समझदार और ज़िम्मेदार हैं। इसी समझदारी का परिचय मतदाताओं को देना होता है। उन्होंने शासन देखा है, माहौल भोगा है, नीति एवं नियमों की अनदेखी देखी है, अपने जनप्रतिनिधियों को परखा भी है और विपक्षियों को करीब से जाना भी है। वे भली-भांति महसूस कर सकते हैं कि संवेदनशीलता एवं राष्ट्रहित की उम्मीद वे किन से कर सकते हैं। कौन उनका का, उनके परिवार, समाज और राज्य का भला करने वाला है, किसके हाथ में शासन की बागडोर सौंपकर वे निश्ंिचत हो सकते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि लोग शीघ्र ही अच्छा देखने के लिए बेताब हैं, उनके सब्र का प्याला भर चुका है। लोकतंत्र को दागदार बनाने वाले अपराध और अपराधियों की संख्या बढ़ रही है। जो कोई सुधार की चुनौती स्वीकार कर सामने आता है, उसे पीछे धकेल दिया दिया जाता है। 
मतदाता को दूरगामी एवं परिपक्व होना होगा, प्रशिक्षित होना होगा, तभी लोकतंत्र सुदृढ़ हो पायेगा एवं चुनाव के महासंग्राम के नीर-क्षीर से सक्षम एवं ईमानदार जनप्रतिनिधि चुने जा सकेंगे। जबकि कुछेक मतदाताओं को अपने हिताहित का ज्ञान नहीं है, इसलिये हित-साधक एवं ज़िम्मेदार जनप्रतिनिधि एवं दल का चुनाव नहीं कर पाते। उक्त पांच प्रदेशों से लोकसभा में 83 एवं राज्यसभा में 34 सांसद चुनकर आते हैं, ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल इन चुनावों को हल्के में नहीं ले सकता। इन चुनावों के नतीजे आम-चुनाव के लिये हवा बनाने-बिगाड़ने का आधार होंगे, इसलिये राष्ट्रीय पार्टियां अपने तरकश सजाने लगी हैं, लेकिन मतदाता इस सजावटी माहौल में अपने विवेक एवं समझ को नये पंख एवं परिवेश दें, स्वयं की ज़िम्मेदारी को महसूस करें। खुद के होने का भान कराये।
जान-बूझकर तो कोई भी मतदाता गलती नहीं करता, परन्तु  कभी-कभी अज्ञानतावश जनप्रतिनिधि चयन में उनसे गलती हो जाती है और गलत, अपराधी एवं अपरिपक्व जनप्रतिनिधि चुन लिये जाते हैं। यह गलती न हो, इसके लिए उन्हें अच्छी तरह सोच-विचार कर मतदान करना चाहिए। ऐसा करते समय यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि फिर पांच साल उन्हें यह कहने का नैतिक हक नहीं रहेगा कि उनका जन-प्रतिनिधि या सरकार अच्छा नहीं कर रहे हैं। जन-प्रतिनिधि और सरकार को कोसने वाले 35-40 प्रतिशत मतदाता हमारे बीच ऐसे भी हैं, जो मतदान ही नहीं करते। मतदान न करने की उनकी यह प्रवृत्ति भी लोकतंत्र की एक बड़ी विसंगति एवं कमज़ोरी का कारण है। चूँकि अनेक बुराइयों की जड़ गलत जन-प्रतिनिधि का चयन होता है, इसलिए पांच राज्याें के चुनावी कुंभ में व्याप्त विरोधाभासों एवं विसंगतियों को दूर किया जाना और इसके लिये मतदाता का जागरूक होना नितांत ज़रूरी है। 
सत्ता के सिंहासन पर अब कोई राजगुरु नहीं बैठता अपितु जनता अपने हाथों से तिलक लगाकर नायक चुनती है। हर राजनीतिक दल अपने लोक लुभावन वायदों एवं घोषणाओं की ही सराहना करेगा कि हम सब समस्याएं मिटा देंगे। लेकिन ऐसा होता तो आज़ादी के अमृतकाल तक पहुंच जाने के बाद भी देश आज गरीबी, महंगाई, भ्रष्टाचार, अफसरशाही, बेरोज़गारी, अशिक्षा, स्वास्थ्य समस्याओं से जूझता दिखाई नहीं देता। इसलिये मतदाता को गम्भीर सोच-विचार करके मतदान करना चाहिए।


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