चुनावी ब़ािगयों के हिंसक विरोध से लोकतंत्र हुआ कमज़ोर

चुनावों के दौरान दल बदल की प्रवृत्ति तो आम बात है मगर मन वांछित टिकट नहीं मिलने पर तोड़-फोड़, आगजनी और हिंसक प्रदर्शन आदि की नई संस्कृति पनप रही है जो लोकतंत्र के लिए घातक है। पार्टी का टिकट नहीं मिलने पर बागी होकर चुनाव लड़ना किसी हद तक स्वीकार किया जा सकता है मगर अनुशासित पार्टी के कार्यकर्त्ता होने का दावे करने वाली पार्टी के लिए यह चिंतन मंथन की बात है। राजस्थान में हालांकि कांग्रेस और भाजपा टिकट वितरण में फूंक-फूंक कर कदम उठा रही है, सर्वे का दावा भी किया जा रहा है मगर टिकट से मरहूम रहने वाले नेता इसे किसी भी तरह मानने को तैयार नहीं है। पार्टी नेताओं की मान मनोव्वल भी किसी काम नहीं आ रही है। अनुशासन में रहकर विरोध प्रदर्शन की बात समझ में आने वाली है मगर हिंसा, तोड़-फोड़ और असभ्य भाषा का प्रयोग लोकतंत्र को निश्चय ही कमजोर करने वाला है। राजस्थान सहित हिंदी पट्टी के राज्यों के विधानसभा चुनावों में घोर अनुशासनहीनता का नज़ारा देखने को मिल रहा है।  
राजस्थान विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बागियों ने अनुशासन और सिद्धांतों को तिलांजलि देकर दोनों पार्टियों की नींद उड़ा दी है। अनेक स्थानों पर भाजपा और कांग्रेस ने नेताओं ने बगावती रुख अख्तियार कर लिया है। भाजपा और कांग्रेस अब तक प्रत्याशियों की 2.2 सूचियां जारी कर चुकी है। चाल, चरित्र और चेहरा की बात करने वाली भाजपा के बागियों ने सारे कानून कायदों को धता बोलकर भाजपा कार्यालयों में जमकर धमाल मचाकर कुर्सी टेबल तक तोड़ डाली। चितौड़गढ़ में प्रदेश अध्यक्ष सी.पी. जोशी के घर पर पथराव की जानकारी मिली है। यहां हजारों भाजपा कार्यकर्ताओं ने मौजूदा विधायक का टिकट काटने पर उग्र प्रदर्शन किया है। प्रदेश के विभिन्न स्थानों से मिली जानकारी के अनुसार बागियों ने भाजपा आलाकमान को खुली चुनौती देते हुए टिकटों में बदलाव की मांग की है। लगभग यही स्थिति कांग्रेस की है। कांग्रेस की टिकट नहीं मिलने से अनेक बागी अवतरित हो गए और निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की है। दोनों ही दलों के कार्यकर्ताओं ने कई जगहों पर नारेबाज़ी और पुतला दहन कर अपनी नाराज़गी जतायी। राजधानी जयपुर में राज्य मंत्री के दज़र्े वाले महेश शर्मा ने अपने पद से इस्तीफा लेकर कांग्रेस प्रत्याशी के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। भाजपा प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह, प्रदेश अध्यक्ष सी.पी. जोशी और नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ सहित अन्य नेता विद्रोह का झंडा बुलंद करने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं को मनाने में जुट गए हैं लेकिन असंतोष की ज्वाला थमने नाम का नाम नहीं ले रही है। दोनों पार्टियों के डेमेज कंट्रोल के प्रयास निष्फल साबित हो रहे है। 
 अभी दोनों पार्टियों ने पूरे टिकटों की घोषणा नहीं की है जिस पर इतना घमासान मचा है। दोनों ही पार्टियां टिकटों को लेकर लगातार मंथन कर रही है। बगावत की आशंका को भांपकर अपनी रणनीति को अंतिम देने के प्रयास में जुटी है। कई दिग्गजों के टिकट कटने की आशंका जताई जा रही है। भाजपा स्वयं को विचार और सिद्धांत वाली पार्टी कहती है, मगर उसके अनुशासित कहे जाने वाले नेताओं के आचरण से ऐसा कहीं नहीं लगता। यहां तक की संघ से दीक्षित लोग भी अनुशासन की धज्जियां उड़ाने में लगे है। अभी भाजपा ने 200 में से 124 सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा की है। जिसे लेकर ऊपर से नीचे तक कोहराम मच गया है। इससे भाजपा आलाकमान सकते में है और भीतरघात की आशंका से एक बारगी घबरा गए है। 
कांग्रेस भी मारामारी की बीमारी से अछूती नहीं है। पार्टी ने अभी कोई उम्मीदवार घोषित नहीं किया है मगर नेताओं और कार्यकर्ताओं ने एक-दूसरे की खिलाफत में मोर्चाबंदी शुरू कर दी है। कांग्रेस के कार्यकर्त्ता दिल्ली जाकर विरोध प्रदर्शन कर रहे है। इनमें कई वर्तमान मंत्रियों और विधायकों को टिकट नहीं देने की मांग कर रहे है। कांग्रेस में मंत्रियों के टिकट कटने की संभावना बनी हुई है, जिसमें कई बड़े नाम शामिल हैं, इनमें राजधानी की सीटों सहित भरतपुर के कामां से विधायक और मंत्री जाहिदा खान का जोरदार विरोध हो रहा है वहीं, कोलायत से विधायक और मंत्री भंवर सिंह भाटी, मंत्री लालचंद कटारिया, मंत्री राजेंद्र यादव, मंत्री बिजेंद्र सिंह ओला, बीडी कल्ला जैसे कई नाम है जिनके टिकट काटे जा सकते हैं। इन मंत्रियों का अपने ही क्षेत्रों में विरोध हो रहा है और सर्वे रिपोर्ट में भी इन्हें पीछे पाया गया है। यह भी बताया जा रहा है कांग्रेस में 100 से अधिक ऐसे विधायक हैं जिनके खिलाफ नकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। जिन उम्मीदवारों ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है, उन्हें टिकट नहीं दिया जाएगा, चाहे वह गहलोत खेमे से हों या पायलट के। कांग्रेस आलाकमान सभी स्थितियों से अच्छी तरह वाकिफ है, इसलिए फूंक-फूंक कर कदम उठाये जा रहे है।