गम्भीर मामला-बेसुरा राग

सतलुज-यमुना सम्पर्क नहर का मुद्दा पंजाब के लिए बेहद गम्भीर है। प्रदेश एक बार फिर अपने हकों की रक्षा करने में पिछड़ गया है। देश के सर्वोच्च न्यायालय तक ने इस मामले पर पंजाब के विरुद्ध फैसला दिया हुआ है। इसके बाद पंजाब के सभी दलों को एकजुट होकर पैदा हुई इस समस्या के हल के लिए किसी मार्ग की तलाश करनी चाहिए थी, परन्तु भगवंत मान सरकार ने जिस ढंग से इस मामले को लिया है, उनके आम आदमी पार्टी के कई महत्त्वपूर्ण साथियों ने जिस तरह इस मामले को को लेकर ब्यान दिये हैं, तथा इस संबंध में विपक्षी राजनीतिक पार्टियों के साथ गम्भीर विचार-विमर्श के स्थान पर सत्तारूढ़ पक्ष की ओर से अनावश्यक विवाद खड़े करके जिस तरह इस मुद्दे संबंधी भ्रामक स्थिति पैदा करने का यत्न किया गया है, उससे इस पार्टी द्वारा पंजाब के हितों के प्रति अपनाई जा रही गहरी साज़िश स्पष्ट होनी शुरू हो गई है।
यह बात भी ध्यान की मांग करती है कि आम आदमी पार्टी द्वारा पंजाब से बनाये गये राज्यसभा सांसद संदीप पाठक ने सार्वजनिक रूप में पानी के मामले पर हरियाणा का समर्थन किया था तथा कहा था कि हरियाणा को इस नहर द्वारा पानी मिलना चाहिए। आम आदमी पार्टी के हरियाणा के अध्यक्ष सुशील कुमार गुप्ता ने भी इसी दिशा में बयान दिये थे तथा इस नहर के ज़रिये ही हरियाणा के प्रत्येक क्षेत्र में पानी पहुंचाने की बात की थी। अरविन्द केजरीवाल हरियाणा से संबंध रखते हैं। वह इस प्रदेश में भी समय-समय पर अपनी पार्टी का शासन स्थापित करने के इच्छुक हैं। ऐसा वह तभी कर सकते हैं यदि उनका रवैया हरियाणा-पक्षीय हो। आज इस बात की सभी को जानकारी है कि पंजाब में शासन कहां से चल रहा है, तथा किसने हाथ में तुनके मारने के लिए डोर पकड़ी हुई है। इस डोर से ही पंजाब की उड़ती पतंग की दिशा को बदला जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद 8 अक्तूबर को जिस तरह मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अन्य विपक्षी दलों के नेताओं को ‘खुली बहस’ की चुनौती दी, उससे स्पष्ट होता है कि वह इस संवेदनशील मामले से ध्यान भटका कर विपक्षी दलों को अन्य मुद्दों पर बहस में उलझाना चाहते हैं।
इसी कारण इस नहर के मामले के साथ-साथ अन्य मामलों के विस्तार में विपक्षी नेता उलझते गये। ऐसा करना ही ऊपर से मिले निर्देश के अनुसार इस पार्टी के मुख्यमंत्री का मुख्य उद्देश्य था, परन्तु बाद में जिस तरह का भगवंत मान सरकार के खुली बहस के आमंत्रण के प्रति विपक्षी दलों के नेताओं ने रवैया अपनाया है, उससे प्रतीत होता है कि वे मुख्यमंत्री की मंशा को पूरी तरह समझ गये थे। विपक्षी दलों के नेताओं की अनुपस्थिति में मंच लगा कर तथा पार्टी समर्थकों को सामने बिठा कर मुख्यमंत्री द्वारा अकेले तौर पर छेड़ा गया राग बेसुरा होकर रह गया है। इस समागम ने सरकार की नमोशी में ही वृद्धि की है जो आगामी समय में उस पर भारी पड़ने की सम्भावना रखती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द