वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की स्थिति चिंताजनक

चिंता की बात यह है कि वैश्विक भूख सूचकांक 2023 में भारत का स्कोर 28.7 है और यह देश सर्वेक्षण किये गये125 देशों में 111वें स्थान पर है। 20.0-34.9के बीच का (जीएचआई) स्कोर गंभीर माना जाता है। जबकि 9.9 या उससे कम को सबसे कम भुखमरी, 10.0-19.9 मध्यम भुखमरी, 35.0-49.9 चिंताजनक और 50.0 या अधिक को बेहद चिंताजनक। हम भुखमरी के गंभीर स्तर पर हैं, यह वास्तविक चिंता का कारण है। जीएचआई स्कोर चार घटक संकेतकों पर आधारित हैं — अल्पपोषण यानी अपर्याप्त कैलोरी सेवन, उम्र के हिसाब से कम ऊंचाई वाले बच्चों की संख्या (स्टंटिंग के शिकार बच्चों), बच्चों का अपनी कद के हिसाब से वजन कम या कमज़ोर (वेस्टिंग का शिकार) होना और बाल मृत्यु दर में उन बच्चों की संख्या जिनकी पांचवें जन्म दिन से पहले ही मौत हो जाती है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2019-21 से पता चलता है कि भारत ने अपनी आबादी के बीच स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति में कोई महत्वपूर्ण सुधार नहीं देखा है। 7.7 प्रतिशत बच्चे गंभीर रूप से कमज़ोर हैं, 19.3 प्रतिशत बच्चे कमज़ोर हैं और 35.5 प्रतिशत बच्चे बौने हैं। इसलिए यह प्राथमिक महत्व का है कि हमारे नागरिकों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए अल्प पोषण की समस्या का समाधान किया जाये। इसके लिए नीतिगत सुधार, पोषण कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन और निर्बाध खाद्य वितरण प्रणाली सुनिश्चित करके असमानता को कम करने के कदम उठाने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 को प्रभावी ढंग से लागू किया जाये। एक सक्रिय भारतीय वयस्क को प्रति दिन 2800-3200 कैलोरी की आवश्यकता होती है जबकि शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्ति को प्रति दिन 3700 से अधिक कैलोरी की आवश्यकता होती है। इसलिए शारीरिक श्रम करने वाले को अधिक मात्रा में भोजन की आवश्यकता होती है।
संतुलित पौष्टिक आहार का अर्थ है पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन और खनिज के रूप में सूक्ष्म पोषक तत्व शरीर में जाना। ईएटी-लैंसेट आयोग द्वारा सुझाए गए प्लैनेटरी हेल्थ डाइट के अनुसार दैनिक भोजन में मुंगफली और अन्य दालें 50 ग्राम, फलियां (दालें, बीन्स) 75 ग्राम, मछली 28 ग्राम, अंडे 13 शामिल होने चाहिए। विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति 2023 रिपोर्ट के अनुसार जो संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन कृषि विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय कोष, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, विश्व खाद्य कार्यक्रम और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2021 में 74 प्रतिशत भारतीय आबादी स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में सक्षम नहीं थी, जो कि विचार किये गये देशों में चौथी सबसे बड़ी हिस्सेदारी है। इसका मतलब यह है कि भारत में 100 करोड़ से अधिक लोग अपर्याप्त पोषण वाला भोजन खाने को बाध्य हैं। यह सर्वविदित है कि गरीबी कुपोषण का कारण बनती है, जो बदले में गरीबी को बढ़ाती है।
इसलिए यह उचित है कि गरीबी उन्मूलन, पर्याप्त मज़दूरी और नागरिकों के लिए गुणवत्तापूर्ण भोजन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए आजीविका के साधन सुनिश्चित करने के माध्यम से लोगों की क्रय क्षमता बढ़ाई जाये।
5 किलो अनाज और एक किलो दाल और थोड़ा-सा तेल देने की सरकार की योजना विटामिन और खनिज जैसे आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों को पूरा नहीं करती जो शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आवश्यक हैं। लोग इतने भोजन से भी संतुष्ट हैं यह देश के लिए शर्म की बात है। यह गरीबी के स्तर की ओर इशारा करता है कि जो भोजन बमुश्किल निर्वाह के लिए पर्याप्त है वह लोगों के लिए एक बड़ी राहत है।
ऑक्सफैम की असमानता रिपोर्ट के अनुसार भारत की शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 77 प्रतिशत हिस्सा है। 2017 में उत्पन्न संपत्ति का 73 प्रतिशत सबसे अमीर एक प्रतिशत के पास चला गया जबकि 67 करोड़ भारतीय जो आबादी का सबसे गरीब आधा हिस्सा हैं, उनकी संपत्ति में केवल एक प्रतिशत की वृद्धि देखी गयी। भारत में 119 अरबपति हैं। उनकी संख्या 2000 में 9 से बढ़कर 2017 में 101 हो गयी। 2018 और 2022 के बीच भारत में हर दिन 70 नये करोड़पति पैदा होने का अनुमान है। ग्रामीण भारत में न्यूनतम वेतन पाने वाले एक कर्मचारी को एक अग्रणी भारतीय परिधान कंपनी में सबसे अधिक वेतन पाने वाला कार्यकारी एक साल में जितना कमाता है, उतना कमाने में 941 साल लगेंगे।विभिन्न श्रमिक संगठनों ने कैलोरी आवश्यकताओं के सिद्धांत के आधार पर न्यूनतम वेतन 26000 रुपये प्रति माह तय करने की मांग की है। अत्यंत निराशा की बात है कि सरकार ने न्यूनतम वेतन 178 रुपये प्रतिदिन की घोषणा की।
यह जानना महत्वपूर्ण है कि भूख सूचकांक की गणना की पद्धति पर किसी अन्य देश ने आपत्ति नहीं जतायी है। यह दुख की बात है कि इंटरनेशनल इंस्टीच्यूट फार पॉपुलेशन साइंसेज (आईआईपीएस) के वरिष्ठ प्रोफेसर और निदेशक प्रोफेसर के.एस. जेम्स जिन्होंने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (2019- 2021) आयोजित किया था और गर्भवती महिलाओं और बच्चों में एनीमिया में वृद्धि की सूचना दी थी, इस तथ्य को रिपोर्ट में लाने पर उनको निलंबित कर दिया गया क्योंकि यह सरकार के हित के खिलाफ  थी। हमारी सरकार की 5 खरब की अर्थव्यवस्था बनने की आकांक्षा उसके खोखले दावों की पोल खोलती है। रिपोर्ट की आलोचना करने के बजाय सरकार को इस गड़बड़ी को दूर करने के लिए उठाये जाने वाले कदमों के बारे में बात करनी चाहिए थी। (संवाद)