गम्भीरता से लिया जाना चाहिए फोन टैपिंग का मामला 

विपक्ष के अनेक नेताओं ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि वह उनके फोन हैक करने का प्रयास कर रही है। यह आरोप एप्पल की तरफ से अलर्ट संदेश मिलने के बाद लगाया गया है, जिसमें कहा गया है कि ‘राज्य-प्रायोजित हमलावर आपको टारगेट बना रहे हैं’। इस अलर्ट में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि हमलावर या हैकर कौन हैं? कम्पनी ने कहा है कि उसने सचेत करने के अपने नोटिफिकेशन में किसी विशिष्ट राज्य-प्रायोजित संगठन की ओर इशारा नहीं किया है। दूसरी ओर कम्युनिकेशन व आईटी मंत्री अश्वनी वैष्णव ने यह कहते हुए कि कम्पनी ने यह ‘एडवाइज़री’ 150 देशों में जारी की है, विपक्ष के आरोपों को ‘निराधार’ बताया है और इन्हें विध्वंसकारी राजनीति कहा है। इन नोटिफिकेशंस की जड़ तक पहुंचने के लिए सरकार ने जांच के आदेश दिए हैं और अमरीकी कम्पनी एप्पल से कहा है कि वह जांच में सहयोग करे। 
बहरहाल, अब तक लगभग एक दर्जन विपक्षी नेताओं ने कम्पनी से अलर्ट मिलने की पुष्टि की है। इस सूची में विशेषरूप से शामिल हैं कांग्रेस सांसद शशि थरूर व के.सी. वेणुगोपाल, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा और शिव सेना (यूबीटी) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी कहा है कि उनके कार्यालय में काम करने वाले अनेक लोगों को भी अलर्ट मिला है। उन्होंने प्रेस कांफ्रैंस में कहा, ‘हम डरते नहीं हैं। आप जितना चाहें (फोन) टैपिंग कर लें, मुझे कोई परवाह नहीं है। अगर आपको मेरा फोन चाहिए तो मैं आपको दे सकता हूं।’ कुछ पत्रकारों को भी कम्पनी की तरफ से अलर्ट मिला है। हालांकि सरकार ने स्नूपिंग (जासूसी) के आरोपों का खंडन किया है, लेकिन यह सोचने की बात है कि कम्पनी की ओर से अलर्ट केवल विपक्ष के नेताओं और उन पत्रकारों को ही क्यों मिला है, जो सरकार से सवाल करने का साहस करते हैं।
यह भी सोचने की बात है कि अनेक ज्वलंत मुद्दों के संदर्भ में (जैसे अडानी मामले में हिंडनबर्ग आदि की रिपोर्टें) विपक्ष जांच की मांग करता रहता है, सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगती, लेकिन स्नूपगेट के इस तथाकथित मामले में बिना किसी मांग (प्रियंका चतुर्वेदी का प्रधानमंत्री को इस संदर्भ में संबोधित खुला पत्र अपवाद है) के ही सरकार ने तुरंत जांच के आदेश क्यों दे दिये, जबकि पेगासस जासूसी मामले को अनदेखा करने का प्रयास किया गया था? प्रियंका चतुर्वेदी ने एक्स पर लिखा, ‘यह दिलचस्प है कि केवल विपक्ष को ही सर्विलांस का मेमो मिला यानी अल्गोरिद्म भी अपने चयन में सेलेक्टिव था।’ जब यह शोर मचने लगा कि किसी सत्तारूढ़ भाजपा सदस्य को यह अलर्ट क्यों नहीं मिला है, तो मंत्री राजीव चन्द्रशेखर ने कहा कि उनके सहयोगी पीयूष गोयल को भी अलर्ट मिला है। स्वयं पीयूष गोयल ने इस लेख के लिखे जाने तक इस बात की पुष्टि नहीं की थी, हालांकि सोशल मीडिया पर वह काफी एक्टिव रहते हैं। 
जिन लोगों को अलर्ट मिला है उन्हें सावधान करते हुए कम्पनी ने कहा है कि राज्य-प्रायोजित हमलावर उन्हें निशाना संभवत: इसलिए बना रहे हैं कि ‘आप कौन हो या आप क्या करते हो’। यूजर्स के लिए अपने स्पोर्ट पेज पर कम्पनी ने लिखा है, ‘राज्य-प्रायोजित हमलावर सोफि स्टिकेटिड (विवेकी) हैं, उनके पास बहुत अधिक फंड्स हैं और उनके हमले समय के साथ बेहतर होते जाते हैं... वह बहुत कम संख्या में विशिष्ट व्यक्तियों व उनके उपकरणों को ही टारगेट करते हैं।’ कम्पनी ने यह भी कहा है कि उसने इन अलर्ट नोटिफिकेशंस को क्यों जारी किया है, इस बारे में वह अधिक जानकारी नहीं दे सकती क्योंकि ऐसा करने से राज्य-प्रायोजित हमलावर अपने तरीके को बदल लेंगे ताकि भविष्य में उनकी पहचान न हो सके। इसके अतिरिक्त कम्पनी के अनुसार, ‘इन हमलों को पकड़ना थ्रेट इंटेलिजेंस सिग्नल्स पर निर्भर करता है जो अक्सर परफेक्ट नहीं होते और अधूरे भी होते हैं। यह संभव है कि कुछ एप्पल थ्रेट नोटिफिकेशंस झूठे अलार्म हों या कुछ हमलों को पहचाना न जा सका हो।’
गौरतलब है कि ऐसी कम्पनियां बड़े पैमाने पर, नियोजित मैलवेयर हमलों को पहचानने के लिए गतिविधि पैटर्न्स को देखती हैं। तकनीकी दृष्टि से यह जानना संभव है कि हमला किस खास देश से किया जा रहा है या शुरू हो रहा है। यह भी मालूम किया जा सकता है कि हमला कौन-सा राज्य-प्रायोजित एक्टर या राज्य एजेंसी कर रही है। इसका अर्थ यह है कि उक्त कम्पनी को मालूम होता है कि कौन क्या हरकत कर रहा है, लेकिन वह किसी विशिष्ट हमलावर का नाम शायद इसलिए नहीं लेता कि किसी सरकार से उलझकर उसका व्यापार प्रभावित हो सकता है। इसके बावजूद अपने आईफोन ग्राहकों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए वह अलर्ट जारी कर देता है कि ‘देखो भैया, हमने तो तुम्हें सावधान कर दिया, अब तुम जानो कि इस मुसीबत से कैसे बचते हो’। 
यहां यह सवाल भी उठता है कि जब कम्पनी यह दावा करती है कि उसके फोन सुरक्षित हैं तो फिर इन अलर्ट्स का अर्थ क्या है? उसके फोन हैक क्यों हो रहे हैं? दरअसल, जो भी उपकरण इंटरनेट से जुड़ा होगा, उसके शत प्रतिशत सुरक्षित होने की गारंटी दी ही नहीं जा सकती। कम्पनी का सुरक्षा दावा मार्केटिंग स्ट्रेटेजी ही प्रतीत होता है। इस तकनीकी पहलू पर बहस करने की बजाय असल मुद्दा यह है कि तथाकथित स्नूपिंग का यह मामला इस समय क्यों उठा है? क्या इसका संबंध अगले साल होने जा रहे आम चुनावों से है? आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा, जिन्हें ख़ुद भी अलर्ट मिला है, को ऐसा ही लगता है। वह फोन टैपिंग के इस मामले को विपक्ष पर सरकार के जांच एजेंसीज द्वारा हमलों, राजनीति से प्रेरित आपराधिक मामलों और नेताओं को जेल में भेजने से जोड़कर देख रहे हैं।
ध्यान रहे कि 2019 में व्हाट्सएप्प ने अदालत में कहा था कि पेगासस से टारगेट किये जाने वालों में भारतीय पत्रकार और एक्टिविस्ट्स भी शामिल थे। पेगासस इज़रायली कम्पनी एनएसओ ग्रुप का जासूसी सॉफ्टवेयर है। एनएसओ कहता है कि वह केवल सरकारी एजेंसीज के साथ काम करता है। जासूसी का अगर धुआं उठा है तो आग भी ज़रूर कहीं लगी होगी। वर्तमान आरोप विपक्षी नेताओं व पत्रकारों ने स्वयं नहीं लगाये हैं बल्कि उन्हें कम्पनी से वार्निंग मिली कि स्टेट एक्टर्स अवैध रूप से उनके फोनों में घुसपैठ कर रहे हैं। यह गंभीर व चिंताजनक विषय है। इसमें केवल परम्परागत जांच का आदेश नहीं होना चाहिए बल्कि लोकतंत्र को सुरक्षित रखने के लिए जल्द मामले की तह तक पहुंचना चाहिए। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर