प्रेरक प्रसंग फीकी न पड़ने वाली मिठास

7अक्तूबर 2023 को सुबह-सुबह अमृतसर के एक होटल से तैयार होकर बाहर आया और ऑटो का इंतज़ार करने लगा। तभी एक ऑटो पास आकर रुका। मैंने पूछा कि पिंगलवाड़ा चलोगे। हाँ जी चलेंगे। मानांवाला में जो पिंगलवाड़ा है वहां जाना है। कितने पैसे लोगे? जी जो मज़र्ी दे देना। फिर भी बता दो तो ठीक रहेगा। डेढ़ सौ दे देना जी। एकदम वाजिब पैसे मांगे थे अत: मोल-भाव का प्रश्न ही नहीं उठा। ऑटो में बैठने के फौरन बाद बातों का सिलसिला शुरू हो गया। मैंने कहा, ‘सरदार जी रास्तें में कहीं चाय पिलवा दोगे अच्छी सी?’ हां जी ज़रूर पिलवा देंगे। कुछ देर बाद उन्होंने सड़क के किनारे चाय के एक ठेले पर ऑटो रोक दिया और चायवाले से कहा, ‘भाई एक चाय देना अच्छी सी बना के।’ मैंने कहा ‘एक क्यों? दोनों पीएंगे ना।’ सरदार जी ने कहा, ‘जी मैं भी पी लूँगा पर पैसे मैं दूँगा चाय के।’ मैंने कहा कि ऐसा मत करो सरदार जी। पैसे मुझे देने दो लेकिन सरदार जी नहीं माने। ‘ठीक है सरदार जी, फिर ब्रेड पकौड़ा भी खिलवा दो,’ वहां ताज़ा ब्रेड पकौड़े बनते देख मेरे मुँह में पानी आ गया। सरदार जी ने कहा कि ब्रेड पकौड़ा भी खाओ। जी आधा-आधा खाएंगे। जी जैसी आपकी मज़र्ी। हम दोनों ने आधा-आधा ब्रेड पकौड़ा खाया, चाय पीई और चल पड़े। पिंगलवाड़ा पहुंचने पर पाया कि नया हाईवे निर्माणाधीन होने के कारण रास्ता कुछ परिवर्तित था। दो किलोमीटर आगे जाकर ही लौटने के लिए कट मिला। गंतव्य पर पहुंचने के बाद मैंने पूछा, सरदार जी कितने पैसे दूँ?’ जी डेढ़ सौ रुपए। मैंने उन्हें दो सौ रुपए देने चाहे तो उन्होंने कहा, ‘जी मैं डेढ़ सौ ही लूँगा। मैंने पहले ही कह दिया था कि चाय के पैसे मैं दूँगा।’ मैंने कहा कि चाय तो आपने ही पिलाई है और ब्रेड पकौड़ा भी आपने ही खिलाया है। मैं उनके पैसे नहीं दे रहा हूँ लेकिन जो ज्यादा चलना पड़ा है उसके पैसे तो बनते हैं न? बड़ी मुश्किल से उन्होंने अतिरिक्त पैसे स्वीकार किए। ‘वाहे गुरू जी दी किरपा रही तो फिर मिलांगे’ ये कहकर उन्होंने हाथ जोड़कर विदा ली। अगले दिन वापसी में उनसे फिर मुल़ाकात हो सकती थी लेकिन उनका फोन नंबर लेने का ध्यान ही नहीं रहा। खैर ये मुल़ाकात भी कभी नहीं भूल पाएगी। और उस चाय की मिठास के फीका पड़ने का तो प्रश्न ही नहीं उठता।