गाज़ा युद्ध के कारण खटाई में पड़ा आर्थिक गलियारा

इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप आर्थिक गलियारा के आर्थिक लाभ सीमित हैं परन्तु राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर यह परियोजना बढ़िया नतीजे दे सकती है। इज़रायल-हमास युद्ध ने इसके मूर्तरूप लेने पर सवालिया निशान भले लगा दिये हों परन्तु चीन के विस्तारवाद और षड्यंत्रों के जबाव और सशक्त भू-राजनीतिक उपस्थिति के लिए इस परियोजना पर भारत व संबंधित देशों को लगातार और तेज़ी से काम करते रहना पड़ेगा। इस प्रोजेक्ट के दूरगामी लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सरकार को इन प्रतिकूल परिस्थितियों और चीन की इस क्षेत्र में मज़बूत पकड़ के बावजूद सतत प्रयत्नशील रहना आवश्यक है अन्यथा इस अशांति के चलते परियोजना का लंबित होन भारत को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।         
अमरीकी राष्ट्रपति का यह कहना कि इज़रायल-हमास युद्ध की एक वजह भारत द्वारा प्रस्तावित परियोजना इंडिया-मिडिल ईस्ट कॉरीडोर या ईएमईसी हो सकता है, शायद शत-प्रतिशत सही न हो परन्तु मोरक्को के मराकेश में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन का यह कहना भी सही नहीं लगता कि इज़रायल-हमास युद्ध का आईएमईसी की योजना पर कोई असर नहीं हुआ है। इस परियोजना के बारे में दो बातें बहुत स्पष्ट हैं। पहली यह कि इस परियोजना का आर्थिक प्रभाव बहुत कम परन्तु इसके राजनीतिक और रणनीतिक निहितार्थ ज्यादा हैं और दूसरी, इसके इस राजनीतिक व आर्थिक अर्थों को लेकर कुछ देश जहां उत्साहित हैं, तो कुछ पराजित महसूस करते हुए इसकी विफलता की कामना करते हुए बेचैन और बौखलाए हुए भी हैं। 
इज़राइल और हमास के बीच युद्ध के कारण इस परियोजना के खटाई में पड़ने की बात सही प्रतीत हो रही है। ग्लोबल बिजनेस पर शोध करने वाली एजेंसी जीटीआरआई बताती है कि खाड़ी क्षेत्र में व्यापक अशांति के खतरे ने इस महत्वाकांक्षी योजना के लिए ऐसी दिक्कतें पैदा कर दी हैं, जिनकी स्थिति साफ  होने में लम्बा समय लगेगा। इसी साल 9 सितम्बर को जब जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान आईएमईसी की घोषणा की गई थी, तब तय यह हुआ था कि इसके सदस्य देशों की पहली बैठक 60 दिनों के भीतर नई दिल्ली में होगी परन्तु फिलहाल इसकी अब कोई उम्मीद नज़र नहीं आती। हालात के मद्देनज़र खाड़ी क्षेत्र के कुछ देश प्रस्तावित गलियारे की बात करना भी नहीं चाहते। 
जीटीआरआई तो आर्थिक गलियारे का भविष्य अनिश्चित बताती है। हालांकि यह अतिरेकी निष्कर्ष है, फिर भी इस निष्कर्ष को गंभीरता से लेते हुए भारत को अपनी सक्रियता बढ़ानी होगी और गलियारे के हिस्सों, देशों, अवसंरचनाओं, रिश्तों और कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। चूंकि इस प्रोजेक्ट में राजनीति, कूटनीति, और काफी कुछ हिस्सा वाणिज्य व्यापार का आता है। इसलिए संसार की चौथी आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत को इस प्रतिकूल स्थिति में भी इसके प्रति प्रयासों में ढील नहीं बरतनी चाहिए। 
इस परियोजना पर अक्तूबर 2021 में पश्चिमी एशिया में चीन के पसरते प्रभाव को सीमित करने के लिए काम शुरू हुआ। भारत, इज़रायल, यूएई और अमरीका का फोरम आई2यू2 बना और बाद में सऊदी अरब को भी इस योजना का हिस्सा बनाया गया। इसकी बातचीत में देश और अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलीवन तथा अजीत डोभाल आगे रहे। 
आईएमईसी परियोजना को खटाई में पड़ने की खबरों से मध्य एशिया से भारत के ज़मीनी संपर्क में सबसे बड़ी बाधा पाकिस्तान प्रसन्न है, उधर बीस अरब डालर की लागत वाले आईएमईसी की घोषणा से बौखलाया चीन भी किंचित राहत में है। अगर परियोजना अटकी तो चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के बहाने छोटे देशों को कारोबार और ठेकों के बहाने उन्हें कर्ज के जाल में फंसाकर बर्बाद करने और फिर उन्हें अपना पिट्ठू बनाकर, अपनी सेना का बेस बनाने से लेकर हर कार्य करने को मजबूर करता रहेगा। चीन अपनी वैश्विक उपस्थिति बढ़ा कर भू-राजनीति में अमरीका को पीछे छोड़ सबसे प्रभावी देश बनना चाहता और भारत की परियोजना को असफल करना चाहता है। मगर भारत की इस एक चाल से, जिसमें अमरीका भी शामिल है, उसकी साज़िशों को विफल कर सकता है। 
कॉरीडोर के बहाने पश्चिमी एशिया में अमरीका पहली बार भारत के साथ आया है, इससे पहले उसका साथ हिंद प्रशांत क्षेत्र तक सीमित था। चीन इस संकेत की गंभीरता भी समझ रहा है। चीन को आशंका है कि नया कॉरीडोर उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का बेहतर विकल्प बनकर उभरा तो उसकी सारी चालें धरी रह जाएंगी और भारी आर्थिक और राजनीतिक नुकसान  होगा। उसका आरोप है कि यह गलियारा चीन को दुनिया में अलग-थलग करने की अमरीकी साज़िश है। उधर जी-20 में भारत ने अफ्रीकी यूनियन को 21वां भागीदार बनाकर अफ्रीकी देशों में चीन की बढ़ती दादागिरी को रोकने का कुछ प्रयास किया है।  
इस प्रस्तावित गलियारे से जुड़ने के बाद भारत और अरब देशों के बीच संबंध मज़बूत होंगे। अमरीका और पश्चिमी एशिया के देशों के बीच रणनीतिक भागीदारी ज्यादा मज़बूत होगी। अमरीका के प्रवेश के चलते अरब प्रायद्वीप में चीन के लिए दिक्कत पेश आयेगी। आईएमईसी की परिकल्पना महज परियोजना बनाने के लिए कुछ मूलभूत सवालों के जवाब तलाशने और उन विसंगतियों को स्वीकार कर उनके ठोस हल निकालने होंगे। संयुक्त अरब अमीरात के फुजैरा बंदरगाह से इज़राइल के हाइफा तक अभी रेल संपर्क ही नहीं है। रेल लिंक को पूरा करने के लिए चीनी विशेषज्ञ बुलाने से उसे कैसे रोकेंगे? भले इज़राइल का हाइफा और गुजरात का मुंद्रा पोर्ट अडानी के हाथ हो, परन्तु टर्मिनस बंदरगाह पीरियस का स्वामित्व चीनी कंपनी कॉस्को के पास है। इसका क्या असर होगा? 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर