नये पदाधिकारियों की ज़िम्मेदारी

हर वर्ष नवम्बर मास में होने वाले शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी की कार्यकारिणी के चुनाव में एडवोकेट हरजिन्दर सिंह धामी तीसरी बार शिरोमणि कमेटी के प्रधान चुने गये हैं। उनके अलावा हरभजन सिंह मसाणा वरिष्ठ उप-प्रधान, गुरबख्श सिंह ़खालसा जूनियर उप-प्रधान तथा भाई रजिन्दर सिंह मेहता महासचिव चुने गये हैं। वर्तमान समय में हरजिन्दर सिंह धामी को तीसरी बार शिरोमणि कमेटी के प्रधान की ज़िम्मेदारी मिलना अहम बात है। उनकी प्रधान के रूप में विगत दो वर्ष की कारगुज़ारी भी अधिक सीमा तक सन्तोषजनक रही है। इस समय दौरान उन्होंने गुरुद्वारा प्रबन्ध को पारदर्शी बनाने तथा उसमें फैले भ्रष्टाचार को खत्म करने तथा अन्य प्रबंधकीय त्रुटियों में सुधार लाने के लिए अपनी ओर से अहम यत्न किये हैं, चाहे अभी इस संबंध में और बहुत कुछ किया जाने वाला है।
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी सिर्फ सिख पंथ के ऐतिहासिक गुरुद्वारों का प्रबन्ध ही नहीं चलाती, अपितु वह बहुत-से शैक्षणिक तथा धार्मिक संस्थान भी चलाती है। इस समय शिरोमणि कमेटी 126 शैक्षणिक संस्थान चला रही है, जिनमें 2 विश्वविद्यालय, 58 कालेज तथा दर्जनों स्कूल शामिल हैं। देश के 13 प्रदेशों में इस की ओर से सिखी के प्रचार हेतु 13 सिख मिशन भी चलाये जा रहे हैं। पंजाब तथा पंजाब से बाहर प्राकृतिक तथा अप्राकृतिक आपदाओं के समय मानवता की सहायता हेतु भी यह यत्नशील रहती है। देश-विदेश में बसते सिख भाईचारे के हकों-अधिकारों के साथ जुड़े मुद्दे भी यह लगातार उठाती है। इस समय जब हरजिन्दर सिंह धामी ने तीसरी बार प्रधानगी की ज़िम्मेदारी सम्भाली है, तो हमारा ध्यान सिख पंथ को दरपेश बहुत-से मामलों की ओर भी जाता है। इन मामलों का तेजा सिंह समुन्द्री हाल में शिरोमणि कमेटी के पदाधिकारियों के हुये चुनाव हेतु बुलाये गये जनरल अधिवेशन के दौरान भी ज़िक्र हुआ है तथा इस संबंध में कुछ प्रस्ताव भी पारित किये गये हैं। एक ज्वलंत मामला बंदी सिंहों की रिहाई से भी संबंधित है। देश के भिन्न-भिन्न प्रदेशों में अनेक ऐसे सिख नज़रबंद हैं जो अलग-अलग मामलों में अपनी सज़ा पूरी कर चुके हैं परन्तु इसके बावजूद उन्हें अभी तक रिहा नहीं किया गया। चाहे कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी तथा कई अन्य सिख संगठन इस संबंध में विगत लम्बी अवधि से आवाज़ भी उठाते रहे हैं। इसी तरह बलवंत सिंह राजोआणा की फांसी की सज़ा को उम्र कैद में बदलने का मुद्दा भी लटकता आ रहा है। बलवंत सिंह राजोआणा की फांसी की  सज़ा को उम्र कैद में बदलने के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी द्वारा अपील की गई थी। केन्द्र सरकार द्वारा उनकी फांसी पर तो रोक लगा दी गई परन्तु फांसी की सज़ा को उम्र कैद में बदलने संबंधी उसने अभी अंतिम फैसला नहीं लिया। इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने भी केन्द्र सरकार को फैसला लेने के लिए कहा था परन्तु अभी तक केन्द्र सरकार द्वारा कोई फैसला नहीं लिया गया। इस कारण शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी तथा सिख पंथ के एक बड़े भाग में निराशा तथा बेचैनी की भावना पैदा हो रही है। इसके अतिरिक्त सिख युवाओं में बढ़ रही मर्यादा-हीनता तथा नशों का प्रचलन बेहद चिन्ताजनक बात है। नई पीढ़ी को सिख इतिहास तथा सिख सिद्धांतों से अवगत करवाना एक बहुत बड़ी चुनौती है। दलित तथा पिछड़े वर्गों के लोग सिख पंथ का अहम हिस्सा रहे हैं। इन वर्गों का धर्म-परिवर्तन करवा कर इन्हें सिखी से दूर करने का सिलसिला पंजाब में बड़े योजनाबद्ध ढंग से चल रहा है। इसके अलावा पंजाब की धरती पर चल रहे शैक्षणिक संस्थानों पर भी ये दोष लगते हैं कि उनकी ओर से पंजाब के युवाओं को पंजाबी भाषा तथा पंजाब के इतिहास से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष ढंग से दूर करने के यत्न किये जाते हैं। शिरोमणि कमेटी के अपने शैक्षणिक संस्थानों में भी शिक्षा के स्तर में पहले से गिरावट आई है तथा उनमें शिक्षा देने की ज़िम्मेदारियां निभा रहे अध्यापक वर्ग को कई बार वेतन सहित अन्य कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पंजाब में रोज़गार की सम्भावनाएं कम होने के कारण व्यापक स्तर पर पंजाबियों तथा खास तौर पर सिख भाईचारे से संबंधित युवाओं का विदेशों में हो रहा पलायन भी चिन्ता का विषय बनता हैं। सिख भाईचारे में विवाह-शादी तथा खुशी-़गमी के अन्य समारोहों में व्यापक स्तर पर होने वाले फिज़ूल खर्च भी समय-समय पर चर्चा का विषय बनते हैं। सिख पंथ के संजीदा गलियारे यह महसूस करते हैं कि सिख पंथ को मौजूदा अवसान वाली स्थिति से निकालने के लिए शिरोमणि अकाली दल तथा शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी को सिंह सभा लहर की तरह ही सामाजिक तथा धार्मिक सुधारों हेतु लहर चलानी चाहिए जिससे कि सिख पंथ को फिर से नया-नवेला बनाया जा सके।
इस समय पंजाब में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के चुनाव हेतु वोट बनाने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी को आपत्ति है कि वोट बनाने के लिए 15 नवम्बर तक का दिया गया समय बहुत कम है। इसमें और वृद्धि की जानी चाहिए। इसके अलावा शिरोमणि कमेटी द्वारा यह भी आपत्ति प्रकट की गई है कि वोट बनाने की प्रक्रिया भी बहुत जटिल है। इसके सरलीकरण की ज़रूरत है। इस संबंध में शिरोमणि कमेटी ने विगत दिवस गुरुद्वारा चुनाव आयोग के समक्ष भी मुद्दा उठाया था। इस मुद्दे को अंजाम तक पहुंचाने के लिए आगामी दिनों में शिरोमणि कमेटी को पुन: यत्न तेज़ करने पड़ेंगे। हमें आशा है कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी की नई टीम गुरुधामों के प्रबन्ध को और अधिक समुचित बनाने, सिख धर्म का प्रचार-प्रसार करने तथा सिख भाईचारे को दरपेश अन्य मामलों के हल के लिए पूरी प्रतिबद्धता से काम करेगी तथा सिख भाईचारे में पुन: चढ़दी कला का एहसास पैदा करने में सफल होगी।