बिजली उत्पादन—चिंताजनक स्थिति

पंजाब में पहले ही बिजली वितरण के घटिया प्रबंध होने के कारण उथल-पुथल मची नज़र आती है। यदि मुफ्त में बिजली वितरण की विज्ञापनबाज़ी और नारेबाज़ी करने के बाद घरेलू उपभोक्ताओं के लिए ज़ीरो बिल की व्यवस्था के साथ मतदाताओं को भरमा कर चुनाव जीतना और कुर्सी प्राप्त करनी है, तो प्रदेश की लड़खड़ाती आर्थिकता को ठीक करने के लिए क्या प्रबंध करने है? इसकी योजनाबंदी ज़रूर होनी चाहिए। एक वर्ग को मुफ्त बिजली देकर यदि दूसरे वर्गों पर वह आर्थिक बोझ डाल दिया जाए तो इसके परिणाम लाभकारी होने की बजाय हानिकारक अधिक साबित हो सकते हैं। पावरकॉम द्वारा अगले वर्ष से उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में बिजली को और महंगा करने की सूचनाओं ने उन वर्गों को गहरी चिंता में डाल दिया है।
पहले ही ये वर्ग बहुत कठिनाइयों में से गुज़र रहे हैं। अधिक भार पड़ना उनके लिए बहुत बोझिल वाला साबित होगा। उनकी उत्पादन लागत बढ़ेगी और वे व्यापारिक मुकाबले में पिछड़ जाएंगे। उद्योगपतियों और कारोबारी क्षेत्र पर पड़े इस बोझ का भार जो आगे अन्यों पर पड़ेगा तो महंगाई और बढ़ेगी, जिसका खमियाजा मुफ्त बिजली प्राप्त कर रहे घरेलू उपभोक्ताओं को भी भुगतना पड़ेगा। बठिंडा थर्मल प्लांट बंद किया जा चुका है। पिछले वर्ष मई माह में लहरा-मुहब्बत थर्मल प्लांट का 210 मैगावाट बिजली उत्पादन करने वाला यूनिट खराब हो गया था। पावरकॉम के पास इसकी मुरम्मत करवाने के लिए फंड न होने के कारण यह अभी भी वैसा ही पड़ा है। बिजली की मांग बढ़ती है तो पावरकॉम संयुक्त केन्द्रीय पूल से महंगी दर पर बिजली खरीदता है। लगातार ऐसी बिजली की खरीद के साथ प्रदेश की आर्थिकता लड़खड़ा चुकी है। इस लड़खड़ाहट को दूर करने के लिए आर्थिक स्रोत कैसे बढ़ाने हैं, सरकार ऐसा करने में बड़ी सीमा तक विफल हो चुकी है। लगातार ऋण लेकर तथा ब्याज चुका कर काम तो चलाया जा सकता है, परन्तु उसे अपनी योजनाबंदी का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता। यदि आगामी वर्ष तक सब्सिडी की राशि 20,000 करोड़ हो जानी है तो उसकी भरपाई कौन करेगा? अप्रैल मास में उद्योगपतियों तथा व्यापारिक क्षेत्रों के लिए बिजली महंगी करके सरकार ने उन पर वार्षिक 3500 करोड़ का बोझ डाल दिया है। अब ये क्षेत्र और बोझ उठाने से असमर्थ प्रतीत होते हैं। विगत दिवस केन्द्र द्वारा देश भर के बिजली मंत्रियों की बैठक बुलाई गई थी। पंजाब सहित सभी राज्यों द्वारा उपभोक्ताओं के लिए लगातार महंगी बिजली न करने की सलाह दी गई थी। आगामी समय में बिजली की बढ़ रही मांग बारे राज्यों द्वारा विस्तार से बताया गया था। 
मुफ्त बिजली देकर पंजाब की सरकार ने एक प्रकार से मुसीबत गले लगा ली है। पहले तो सर्दियों में बिजली की मांग कम हो जाती थी परन्तु अब तो घरेलू उपभोक्ताओं ने अपने हिस्से की मुफ्त मिलती बिजली की खपत को पूरा करना ही है। चोर दरवाज़े से अधिक से अधिक परिवारों द्वारा अतिरिक्त मीटर लगवा कर पावरकाम को चूना लगाने का यत्न किया जा रहा है। कोयले की कमी के कारण विदेशी कोयला मंगवाने पर अधिक कीमत देनी पड़ती है, जिस का बोझ भी किसी न किसी तरह लोगों को ही सहन करना पड़ेगा। दूसरी ओर राजनीतिक अवसरवादिता का खेल खेलना सत्तारूढ़ पार्टी की मजबूरी है। आगामी वर्ष के आरंभ में लोकसभा चुनाव होने के कारण यदि बिजली की कीमत न बढ़ाई गई तो सरकार द्वारा राज्य को चलाने के लिए आर्थिक व्यवस्था कैसे की जाएगी? आखिर ऋण लेने की भी एक सीमा होती है। अभी तो सरकार ने पहले ही की गई घोषणाओं के आधार पर मुफ्तखोरी की कई अन्य योजनाओं पर क्रियान्वयन करना है। समय बीतने के साथ अपनी निकृष्ट योजनाबंदी के जाल में सरकार फंसती दिखाई दे रही है, जिसके परिणाम उसे आगामी समय में भुगतने पड़ सकते हैं, परन्तु इस समय राज्य के प्रत्येक पक्ष से हो रहे नुकसान की भरपाई कौन करेगा, इस बात की समझ आना अभी बेहद मुश्किल प्रतीत होता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द