एक नहीं, अनेक कारण हैं वायु प्रदूषण के 

हाल ही में स्विस ग्रुप आईक्यूएयर ने दुनिया के सबसे प्रदूशित नगरों की सूची जारी की है, इसमें तीन नगर भारत के हैं। सूची में शामिल नगरों की वायु अत्यंत खराब है। इस वायु प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़कर गम्भीर स्तर तक पहुंच गया है। इनमें से सबसे ज्यादा खराब हालात दिल्ली की है। यहां दूषित वायु का स्तर 431 पहुंच गया है। शून्य से 50 तक एक्यूआई का स्तर उत्तम माना जाता है। इसके बाद भारत के प्रदूषित नगरों में कोलकाता है। यहां दूषित वायु का स्तर 175 दर्ज किया गया है। सर्दियों की शुरुआत होते ही दिल्ली की तरह कोलकाता में भी धुंध और धुएं की छाया गहराने लगती है। वायु प्रदूषण के मामले में मुम्बई भी पीछे नहीं है। मुम्बई में एक्यूआई 173 के स्तर पर है। यहां की हवा भी सांस लेने के योग्य नहीं है। देश के अन्य अनेक नगरों में भी प्रदूषण का स्तर बढ़ा हुआ है। धुंध नहीं छंटने के कारण अनेक इलाकों में फेफड़े, दिल और आंखों के रोगियों की संख्या बढ़ रही है। 
देश की राजधानी दिल्ली में घनी आबादी और वाहनों की संख्या अधिक होने के कारण वायु प्रदूषण चरम पर रहता है। केंद्रीय प्रदूशण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा 9 नबम्वर, 2023 को लिए गए आंकड़ों के मुताबिक वायु गुणवत्ता तालिका अर्थात एक्यूआई 431 पर पहुंच गया था। जो सामान्य से करीब पांच गुना अधिक है। नतीजतन दिल्ली समेत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता अत्यंत खराब स्थिति में बनी हुई है। इस स्थिति को मानव व अन्य जीवों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत खतरनाक माना जाता है। दिल्ली में इस प्रदूषण का दोष हरियाणा और पंजाब में जलाई जाने वाली पराली पर थोप दिया जाता है। 
जबकि यह प्रदूषण पृथ्वी में मौजूद ओज़ोन के अतिरिक्त कार्बन, सल्फर और नाइट्रोजन ऑक्साइड गैसों के कारण भी होता है। धुएं, धुंध और गैसों से निर्मित प्रदूषण के ये कण घातक होने के साथ खुली आंखों से देखना कठिन होता है। 10 से लेकर 2.5 माइक्रोमीटर और इससे भी बारीक इन कणों को पीएम-10 और पीएम-2.5 कहते हैं। पीएम-2.5 कणों का निर्माण मुख्य रूप से डीज़ल- पेट्रोल और अन्य जीवाशम ईंधन के धुएं से होता है। पीएम-10 कण पराली और अन्य जलाऊ लकड़ी और धुल से बनते हैं। 
फसलों के अवशेष के रूप में निकलने वाली पराली, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ी मात्रा में जलाई जाती है। परिणामस्वरूप दिल्ली की आवोहवा में धुंध छा जाती है। हर साल अक्तूबर-नवम्बर माह में फसल कटने के बाद अवशेषों को खेतों में ही जलाया जाता है।  इनसे निकलने वाला धुआं वायु को प्रदूशित करता है। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि देश में हर साल 70 करोड़ टन पराली निकलती है। इसमें से 9 करोड़ टन खेतों में ही छोड़नी पड़ती है। हालांकि 31 प्रतिशत पराली का उपयोग चारे के रूप में, 19 प्रतिशत जैविक ऊर्जा के रूप में और 15 प्रतिशत खाद बनाने के रूप में इस्तेमाल कर ली जाती है। बावजूद 31 प्रतिशत बची पराली को खेत में ही जलाना पड़ता है, क्योंकि किसानों के पास इसे नष्ट करने के अन्य कोई सरल व सस्ते उपाय नहीं हैं। इसलिए पराली जलाए जाने की समस्या शीर्ष न्यायालय के हस्तक्षेप के बावजूद तीन दशक से दोहराई जाती रही है। यह सही है कि पराली जलाने के कई नुकसान हैं। वायु प्रदूषण तो इतना होता है कि दिल्ली भी उसकी चपेट में आ जाती है। अलबत्ता एक एकड़ धान की पराली से जो आठ किलो नाइट्रोजन, पोटाश, सल्फर और लगभग 3 किलो फास्फोरस मिलती है, वह पोषक तत्व जलने से नष्ट हो जाते हैं। आग की वजह से भूमि का तापमान बढ़ता है। इस कारण खेती के लिए लाभदायक सूक्ष्म जीव भी मर जाते हैं। इस लिहाज से पराली जलाने का सबसे ज्यादा नुकसान किसान को ही उठाना पड़ता है। अतएव पराली के उपयोग का भरपूर उपाय करना आवश्यक है।
दिल्ली की तरह अब कोलकाता से भी वायु प्रदूषण के समाचार आने लगी हैं। जबकि यहां पराली जलाए जाने से वायु प्रदुषित नहीं हो रही है। यहां हवा में प्रदूषण की मात्रा 175 के आंकड़े पर आ गई है। यह फेफड़ों के लिए बेहद हानिकारक है। 27 सिगरेट पीने से जितना फेफड़ों को नुकसान होता है, उतना ही नुकसान यह प्रदूषण पहुंचा रहा है। एक सिगरेट से 22 माइक्रोन पीएम 2.5 मात्रा के बराबर ज़हर निकलता है, तब 27 सिगरेट से कितना ज़हर निकलता होगा। सीएनसीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोलकाता में प्रति एक लाख लोगों में से 19 लोगों को फेफड़ों का कैंसर हो रहा है। इसे इसी प्रदूषण का कारक माना जा रहा है। कैंसर पीड़ित इन लोगों में ज्यादातर ऐसे लोग हैं, जो स्वास्थ्य लाभ के लिए सुबह खुले में घूमने जाते हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट, कोलकाता की एक रिपोर्ट के अनुसार यहां के लोग सबसे ज्यादा प्रदूषित वायु में सांस लेते हैं। यहां की हवा में पिछले छह सालों में नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा 2.7 गुना बढ़ गई है।
आईआईटी कानपुर के एक अध्ययन के अनुसार 30 प्रतिशत प्रदूषण देश भर में डीज़ल-पेट्रोल से चलने वाले वाहनों से होता है। इसके बाद 26 प्रतिशत कोयले के कारण हो रहा है। दिवाली पर चलने वाले पटाखों से महज 5 फीसदी ही प्रदूषण होता है। वाहनों से निकलते धुएं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कोलकाता में वायु प्रदूषण का कारण बढ़ते वाहन हैं, इसके बावजूद कहा यही जा रहा है कि कोलकाता में प्रदूषण का मुख्य कारण वाहन नहीं हैं, बल्कि यहां का भूगोल भी कुछ ऐसी विचित्र संरचना से निर्मित है, जो प्रदूषण को बढ़ाता है। गोया, वायु प्रदूषण का कोई एक कारण न होकर अनेक कारण है। 
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