धान की कटाई में देरी से गेहूं की बिजाई पिछड़ी

गेहूं की बिजाई के लिए अनुकूल समय अक्तूबर के चौथे सप्ताह से लेकर आधे नवम्बर तक का होता है। पी.ए.यू., आई.ए.आर.आई. (भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान) तथा आई.आई.डब्ल्यू.बी.आर. (गेहूं तथा जौ के अनुसंधान के लिए भारतीय संस्थान करनाल) द्वारा विकसित गेहूं की लगभग सभी किस्मों की बिजाई की इसी अवधि में सिफारिश की गई है। अभी तक लगभग आधे रकबे में गेहूं की बिजाई हुई है। इस वर्ष बिजाई देर से हो रही है, क्योंकि धान व बासमती की कटाई देरी से हुई है। बाढ़ से प्रभावित लगभग 6 लाख एकड़ रकबे में से काफी रकबे पर धान व बासमती की दोबारा बिजाई हुई थी। उस रकबे की कटाई अब नवम्बर में ही हो सकी है जबकि आमतौर पर समय पर लगाई हुई धान की फसल अक्तूबर में काट ली जाती है। अभी भी धान तथा बासमती की काश्त के अधीन कुछ रकबा काटने के लिए शेष है। किसानों को धान की उचित कटाई तथा पराली की संभाल के लिए मशीनें नहीं मिल रहीं। कुछ किसान पराली को आग लगाने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि उनके पास और कोई विकल्प नहीं, जिससे वे खेत तैयार करके गेहूं की बिजाई कर सकें। 
धान व बासमती की देरी से कटाई होने के कारण गेहूं की बिजाई के लिए खेत तैयार करने हेतु बड़ा कम समय मिलता है। देरी के कारण पिछेती बिजाई के लिए किसानों को कम समय में पकने वाली गेहूं की किस्मों की आवश्यकता है, परन्तु उन्हें मध्यम व लम्बे समय में पकने वाली किस्मों के बीज ही प्राप्त हैं, जिनकी काश्त वे कर रहे हैं। कई हालातों में किसान धान व बासमती के अवशेषों तथा पराली के थोड़े-से हिस्से को आग लगा कर अपना काम चला रहे हैं। ऐसा करने से उनके लिए गेहूं की काश्त आसान हो जाती है। गेहूं की बिजाई के लिए भी विशेषकर छोटे व कंडी के किसानों को सुपर सीडर तथा हैपी सीडर आदि मशीनें उपलब्ध नहीं होतीं। 
धान तथा बासमती की चाहे देरी से कटाई हुई है, परन्तु उत्पादन के पक्ष से इस वर्ष फसल बड़ी आशाजनक रही है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अनुसार धान का उत्पादन 208 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है जबकि गत वर्ष उत्पादन 205 लाख मीट्रिक टन हुआ था। इस बार औसत उत्पादन में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। कृषि व किसान कल्याण विभाग के आंकड़ों के अनुसार उत्पादन 78 से 81 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर को छू गया। इसमें पूसा-44 किस्म जिसकी काश्त धान, बासमती के अधीन कुल रकबे में से 17-18 प्रतिशत रकबे पर की गई, का उल्लेखनीय योगदान है। इस किस्म ने अधिकतर किसानों को 36 से 45 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक उत्पादन दिया है। पी.आर.-126 किस्म (जो पकने को थोड़ा समय लेती है) का उत्पादन बढ़ाने में भी प्रभावशाली योगदान रहा है। पूसा-44 किस्म संबंधी मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि आगामी वर्ष से इस किस्म की काश्त बंद कर दी जाएगी, क्योंकि यह पकने को लम्बा समय लेती है और इसको पानी का ज़रूरत अधिक है। इसके विकल्प के रूप में संस्थान ने नई किस्म पूसा-2090 आल इंडिया कोआर्डिनेटिड राइस इम्प्रूवमैंट प्रोजैक्ट ट्रायल्स के बाद खोज करके तैयार की गई है, जो एन.सी.आर. तथा ओडिशा में काश्त करने हेतु रिलीज़ कर दी गई है, परन्तु इस किस्म के पंजाब में भी कामयाब होने की पूरी सम्भावना है और जिन कुछेक किसानों ने इसकी यहां आज़माइश की है, उनका कहना है कि यह पूसा-44 का विकल्प बनेगी।
बासमती किस्मों का भविष्य भी बहुत उज्ज्वल है। किसानों को इस वर्ष बासमती के अच्छे दाम मिल रहे हैं। भारत सरकार ने बासमती निर्यात करने के लिए न्यूनतम कीमत (एम.ई.पी.) जो 1200 डालर प्रति टन निर्धारित की थी, उसे कम करके 950 डालर प्रति टन कर दिया है, जिससे आल इंडिया राइस एक्सपोर्ट्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध एक्सपोर्टर  विजय सेतिया के अनुसार बासमती के निर्यात का भविष्य बड़ा उज्ज्वल हो गया और किसानों को लाभदायक कीमत मिलने लग पड़ी है। भविष्य में बासमती की काश्त जो इस वर्ष 6 लाख हैक्टेयर रकबे पर हुई है, बढ़ जाने का अनुमान है जो फसली विभिन्नता तथा भू-जल के गिर रहे स्तर की समस्या का समाधान करेगी।