इज़रायल के सामने चुनौती कम नहीं

इज़रायल इस समय हमास के ठिकानों को तबाह करने के लिए सभी पैंतरे आजमा रहा है। इस समय का इज़रायल बिल्कुल बदला हुआ है। यह अक्तूबर के पहले का इज़रायल नहीं है। हमास ने हमला कर उसके दो सौ के करीब नागरिक बंदी बना लिये थे। इस समय का इज़रायल एक ऐसा मुल्क बन चुका है जिसकी रक्षा इज़रायल के सेना नायकों को पहले इस तरह से नहीं करनी पड़ी थी।  न ही अमरीका को इस तरह मदद के लिए सामने आना पड़ा था। 
अब जिस तरह इज़रायल का विरोध बढ़ता जा रहा है और इज़रायल जिस तरह से इतना आक्रामक रवैया अपना रहा है यह सब कहीं न कहीं संकेत करता है कि इज़रायल सचमुच ़खतरे में फंस गया है। इज़रायल को अपने ऐसे शत्रु वर्ग का सामना करना पड़ रहा है जो आज भी इक्कीसवीं सदी के हथियारों के साथ लड़ रहा है, लेकिन ज्यादातर मानसिकता मध्ययुगीन मजहबी और जुनूनी मानसिकता देखी गई है। यदि दिखने में वे छोटे ब्रिगेड नज़र आएं तो यह एक भ्रमपूर्वक धारणा होगी। 
दरअसल वे छोटे ब्रिगेड है नहीं, वे बटालियन, साइबर क्षमता से भरपूर, लम्बी दूरी के रॉकेट, ड्रोन और आधुनिक हमलावर तकनीक से सम्पन्न हैं। ईरान समर्थित हमास, हिब्बालुल्हा, इराक में इस्लामी उग्रवादी, यमन सभी इस लड़ाई में प्रत्यक्ष या परोक्ष मददगार हैं। अब व्लादिमीर पुतिन भी हमास के समर्थक बनने जा रहे हैं। शत्रु पहले भी मौजूद थे लेकिन इस संघर्ष में जितने उजागर हुए हैं, उतने पहले न थे। क्या इस सबसे इज़रायल की मुसीबतों में इज़ाफा नहीं हुआ?
आज किसी भी लोकतंत्र का इतनी चौतरफा मुसीबतों में घिरे रहकर चैन की सांस लेना आसान नहीं है। ये तमाम शक्तियां इज़रायल को मूलभूत शत्रु मानते हुए यहूदी राष्ट्र के साथ कोई तालमेल बिठाने को तैयार है? क्या वे भूमि संबंधी किसी समझौते तक पहुंच सकती है? इज़रायल की सैन्य क्षमता और खुफिया सेना  उच्चतम धरातल पर है लेकिन ये ताकतें उसकी सीमाओं पर अचानक हमले से कैसे बचा सकती है? वे चाहेंगे कि इज़रायल पहले सीमावर्ती इलाके से दूर चला जाये और फिर देश छोड़ जाये। क्या अब यह इज़रायल के लिए सम्भव है? आज इज़रायली भी दुनिया के किसी भी कोने में रह रहे हों इस ़खतरे को महसूस करने लगे हैं? क्या हमास ने इज़रायल की आम जनता के बीच यह डर पैदा नहीं कर दिया कि कुछ लोगों का एक समूह उनसे उनके बच्चे छीन कर किसी गुफा में तो नहीं चला जाएगा। आस-पास सुरंगों का जाल बिछा हुआ है। चाहे इज़रायली सेना का दावा है कि उन्होंने बहुत-सी सुरंगों को तबाह कर दिया है। उनका दावा है कि उन्होंने अस्पताल पर हमला भी इसी कारण से किया है। 
एक और ़खतरा जो महसूस किया जा रहा है, वह यह है कि इतने अधिक दुशमनों के साथ युद्ध लड़ने के लिए क्या यह ज़रूरी नहीं कि अमरीका के साथ और उसी के नेतृत्व में विदेशों में इज़रायल के गहरे संबंध हो जो अटूट साझेदार भी बन सके। राष्ट्रपति जो बाइडन जो होशियार रह कर गाज़ा में हमास को तबाह करने और आतंकवादी शासन खत्म करने में मददगार साबित हो रहे हैं क्योंकि हमास इज़रायल के लिए ज़बरदस्त ़खतरा है और भविष्य में भी बना रह सकता है। यह ़खतरा अगर ठीक से देखा जाए तो उन फिलिस्तीनियों  के लिए भी है जो गाजा या वैस्ट बैंक में अपने लिए एक सभ्य शांत राष्ट्र की कामना करते हैं। बाइडन तभी इज़रायल के लिए ज़रूरी समर्थन जुटा पाएंगे जब इज़रायल वैस्ट बैंक में फिलिस्तीनियों के साथ किसी कूटनीतिक संवाद में शामिल होने के लिए तैयार हो। इज़रायल के शासन की बागडोर आज एक ऐसे नेता के हाथ में है, जिसके पास इस तरह की पहलकदमी की कोई इच्छा या उमंग नज़र नहीं आती। प्रधानमंत्री बेंज़ामिन नेत्नयाहू किस हद तक अपने दक्षिणपंथी आधार के समर्थन को बरकरार रखे हुए हैं और युद्ध के लिए इज़रायली सुरक्षा और खुफिया तंत्र को कसूरवार ठहरा रहे हैं। जबकि यह समय उनके लिए राष्ट्रीय एकता को संगठित रखने और एकजुटता दिखाने का है।