चुनावों का बहिष्कार या नोटा किसी समस्या का हल नहीं

पांच साल में एक बार मिलने वाले अवसर को नकारात्मक सोच या गैर-ज़िम्मेदारी से खो देना किसी भी हालात में उचित नहीं माना जा सकता। लोकतंत्र में प्रत्येक मतदाता को अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने का अवसर मिलता है। ऐसे में मतदान का बहिष्कार या फिर लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। वर्तमान सिनेरियों में नोटा प्रयोग भी मंथन का विषय होना चाहिए। नोटा के प्रावधान को लेकर पक्ष विपक्ष में अनेक तर्क दिए जा सकते हैं, परन्तु समय आ गया है कि उस पर बड़ी बहस हो और उसको अधिक प्रभावी या कारगर बनाने के प्रावधान किये जाये। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मतदान को लेकर की गई टिप्पणी भी इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाती है कि यदि हम मताधिकार का प्रयोग नहीं करते हैं तो फिर सरकार के खिलाफ  किसी तरह की शिकायत करना उचित नहीं ठहराया जा सकता। कमोबेश यह सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी है और इससे साफ -साफ  संदेश है कि सजग व ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में प्रत्येक मतदाता का दायित्व हो जाता है कि वह अपने मताधिकार का प्रयोग करे। अब तो निर्वाचन आयोग ने मतदान सुविधाजनक बना दिया है। बुजुर्ग व दिव्यांग मतदाताओं को जहां घर बैठे मतदान का अवसर प्रदान कर दिया हैं, वहीं मतदाताओं के लिए जागरुकता अभियान से लेकर निष्पक्ष चुनाव के लिए कारगर कदम उठाये जाने लगे हैं। 
भले ही सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद ईवीएम में नोटा यानी कि इनमें से कोई नहीं का प्रावधान कर दिया गया हो परन्तु एक जागरुक व ज़िम्मेदार मतदाता के लिए नोटा के प्रयोग को समझदारी भरा निर्णय नहीं माना जा सकता। कारण साफ  है नोटा का बटन दबाकर अपनी भावना तो व्यक्त कर सकते हैं परन्तु उसका इस मायने में कोई अर्थ नहीं रहता कि किसी की जीत हार में उसका असर नहीं पड़ता। राजस्थान के ही 2013 और 2018 के विधानसभा चुनावों का विश्लेषण किया जाए तो साफ हो जाता है कि 2013 के विधानसभा चुनावाें में 4 करोड़ 8 लाख से अधिक मतदाताओं में से 5 लाख 89 हज़ार से कुछ अधिक मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया था। इसी तरह से 2018 के विधानसभा चुनावों का विश्लेषण किया जाए तो 4 करोड 77 लाख मतदाताओं में से 4 लाख 67 हज़ार से कुछ अधिक ने नोटा का बटन दबा कर विरोध दर्शाया। अब एक ओर 2018 में नोटा के इस्तेमाल में कमी आई है तो इसके साथ ही नोटा अपने-आप में नकारात्मकता को दर्शाता है। हालांकि नोटा का इस्तेमाल कर यह संदेश दिया जाता है कि मतदाता की नज़र में कोई भी उम्मीदवार खरा नहीं उतर रहा, परन्तु सोचने वाली बात यह भी है कि इनमें से कोई एक उम्मीदवार ही विजयी होगा। आपका नोटा का बटन जीत हार के अंतर को कम तो कर सकता है, परन्तु लोकतंत्र में मताधिकार का जो महत्व होता है, वह पूरा नहीं होता दिखता। नोटा के इस्तेमाल के स्थान पर उपलब्ध विकल्पों में से ही किसी एक को चुनना ज्यादा बेहतर माना जा सकता है। हालांकि एक समय था जब कई बूथों पर विरोध स्वरुप मतदान का बहिष्कार करने का निर्णय कर लिया जाता था या फिर लोगों द्वारा उपलब्ध उम्मीदवारों में किसी को भी मत देने योग्य नहीं समझने के कारण विरोध का मत यानी कि नोटा के प्रयोग की मांग की जाती रही। नोटा का परिणाम प्रभावी तरीके से राइट टू रिजेक्ट होता तो अधिक कारगर होता। 
तस्वीर का दूसरा पक्ष यह भी है कि अमरीका सहित दुनिया के कई देशों में उसकी कारगरता के अभाव के कारण नोटा के प्रावधान को हटाया जा चुका है। कई देशों में नोटा के प्रावधानों को कारगर नहीं पाने के कारण हटा दिया गया है। अमरीका की ही बात करें तो वहां नोटा का प्रावधान रहा है परन्तु वर्ष 2000 आते आते उसे हटा दिया गया। इसी तरह से रूस ने 2006 और पाकिस्तान में 2013 में नोटा प्रावधान को हटाया जा चुका है। देश के प्रबुद्ध नागरिकों, बुद्धिजीवियों, राजनीतिक विश्लेषकों, कानूनविदों को नोटा को लेकर गंभीर बहस शुरू करनी होगी जिससे नोटा को वास्तव में चुनावों में हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। आज की तारीख में बात करें तो नोटा केवल और केवल आपके विरोध को दर्ज कराने तक ही सीमित माना जा सकता है। 
एक दूसरी बात और जिस पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। आज़ादी के 75 साल बाद और दुनिया की सबसे बेहतरीन चुनाव व्यवस्था के बावजूद मतदान प्रतिशत 90 से 100 प्रतिशत के आंकड़ें को नहीं छूना चिंता का विषय है। आज हालात बदल चुके हैं। कोई भी किसी को मतदान के अधिकार से ज़ोर जबरदस्ती या अन्य कारण से रोक नहीं सकता। भारतीय चुनाव आयेग की निष्पक्ष चुनाव व्यवस्था को सारी दुनिया द्वारा सराहा जाता है। इस सबके बावजूद मतदान का प्रतिशत कम होना गम्भीर है। ऐसे में मतदान का बहिष्कार या मतदान नहीं करना ज़िम्मेदार मतदाता का काम नहीं हो सकता। पांच साल में एक बार आने वाले इस अवसर का उपयोग सकारात्मक सोच व उपलब्ध विकल्पों के आधार पर ही बेहतर तरीके से किया जा सकता है। इसलिए मतदान को अपना कर्त्तव्य समझ कर घर से बाहर निकलें और मताधिकार का इस्तेमाल अवश्य करें। -मो. 94142-40049