आज प्रकाशोत्सव पर विशेष सतगुरु नानक प्रगटिया मिटी धुंध जग चानण होया

श्रीगुरु नानक देव जी के प्रकाश से विश्व के धर्म इतिहास में एक अनूठे अध्याय का आरम्भ हुआ। गुरु जी का प्रकाश राय भोये की तलवंडी (पाकिस्तान) में 1469 ईस्वी में पिता महिता कल्याण दास जी तथा माता तृप्ता जी के घर हुआ। श्री गुरु नानक देव जी के आगमन से इस नगर को श्री ननकाना साहिब होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। गुरु साहिब जी के प्रकाश से मानवता को अमृतमयी नेतृत्व मिला, जिससे धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा वैज्ञानिक आदि क्षेत्रों में एक क्रांतिकारी प्रकाश चमका। गुरु साहिब जी के प्रकाश से पहले समाज में अज्ञानता का अंधेरा फैला हुआ था। धार्मिक नेताओं के सताए हुए लोग ऐसे सहारे की तलाश में थे, जहां से उन्हें जीवन का सही मार्ग प्राप्त हो सके। इस अधोगति के समय जहां जन-मानस वहमों-भ्रमों तथा पाखंडवाद में फंसा हुआ था, वहीं धर्म के नाम पर मानवता को बांटने का बोलबाला भी था। वर्ण-बांट तथा भेदभाव शिखर पर था। श्री गुरु नानक देव जी के संसार में आगमन से मानवता को एक ठंडा एहसास हुआ। सामाजिक अधोगति का उल्लेख करते हुए साहिब ने पावन गुरबाणी में फरमाया है :
कलि काती राजे कासाई
धर्म पंख करि उडरिया।
कूड़ अमावस सच चंद्रमा
दीसै नाही कह चड़िया। 
(अंग :145)
श्री गुरु नानक देव जी ने समूची मानवता को समानता, साझीवालता तथा स्वतंत्रता वाली क्रांतिकारी विचारधारा देकर संसार का मार्ग-दर्शन किया। गुरु जी की विचारधारा ने इन्सान को धार्मिक पक्ष से सच्चे, सामाजिक पक्ष से समान तथा आर्थिक पक्ष से अपनी सच्ची-सुच्ची किरत से संतुष्ट रहना सिखाया। 
श्री गुरु नानक देव जी ने धर्म को कर्मकांडी प्राथमिकताओं से अलग करके सामाजिक क्षेत्र में धर्म का सही स्थान निश्चित किया और धर्म तथा समाज की निर्भरता को स्पष्ट किया। उन्होंने भारतीय समाज की समस्याओं का विश्लेषण करके उनके उचित, सरल तथा स्पष्ट समाधान बताए। श्री गुरु नानक देव जी की बाणी पढ़ कर तथा विचार करने पर इस बात का पता चलता है कि उन्होंने मानवीय जीवन को आदर्शरूप बनाने के लिए इसका प्रत्येक पक्ष से नेतृत्व किया। गुरु जी ने वह विचारधारा दी, जो सांसारिक जीवन के साथ-साथ होकर चलती है। 
गुरु साहिब के पावन उपदेशों तथा सिद्धांतों ने हिन्दुस्तान के इतिहास को बदल कर रख दिया और एक नये युग की शुरुआत हुई। उन्होंने मनुष्य को सच्चाई, विनम्रता, दया, सेवा, सब्र, संतोष, परोपकार आदि गुणों के धारणी बनने की प्रेरणा दी तथा आत्म-निर्भर तथा स्वाभिमान वाला जीवन व्यतीत करने के योग्य बनाया। गुरु साहिब जी द्वारा दिखाया गया यह मार्ग ‘किरत करो, नाम जपो ते वंड छको’ के बुनियादी सिद्धांतों पर आधारित है। गुरु जी ने लंगर की प्रथा कायम की और संगत-पंगत तथा सेवा-सिमरन आदि ऐसे अद्वितीय सिद्धांत मानवता के सामने रखे, जो हमेशा के लिए दिशा देने वाले हैं। 
इसके साथ ही समाज के भीतर तिरस्कारी जा रही स्त्री श्रेणी को श्री गुरु नानक देव जी ने उच्च सम्मान दिया और उनके अधिकारों, हितों के लिए आवाज़ बुलंद की। वास्तव में उस समय हिन्दोस्तानी समाज में स्त्री की दशा बहुत बुरी थी। गुरु जी ने स्त्री के सम्मान को हकीकी तौर पर बहाल करते हुए अपने पंथ में पुरुष के समान खड़ा किया। इस संबंध में गुरु साहिब ने अपनी बाणी में इस प्रकार फरमाया : 
भंड जम्मीअै 
भंड निम्मीअै 
भंड मंगण वीआह।
भंडह होवै दोस्ती भंडहु चलै राह। 
भंड मुआ भंड भालिअै 
भंड होवै बंधान।
सो क्यो मंदा आखीअै 
जित जम्महि राजान।
(अंग : 473)
बहुपक्षीय शख्सियत तथा विशाल प्रतिभा के मालिक होने के कारण गुरु जी धर्म, दर्शन शास्त्र के क्षेत्र में भी एक विलक्षण तथा महान क्रांति के जन्मदाता थे। गुरु साहिब जी की विचारधारा तथा उपदेशों ने लोगों को रचनात्मक जीवन-क्रिया के सन्मुख किया और इसी का ही कारण था कि गुरु साहिब जी के विचारों को लोगों ने पूरे सम्मान से स्वीकार किया। गुरु साहिब जी की विचाधारा सदैव अनूठी है, जिसका आज भी सिखों के अतिरिक्त विश्व भर के प्रत्येक धर्म, वर्ग, सम्प्रदाय से संबंधित लोग सम्मान करते हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे। 
श्री गुरु नानक देव जी के मुबारक प्रकाश पर्व के अवसर पर जहां हमने अपना जीवन गुरु साहिब के उपदेशों के अनुसार व्यतीत करने का प्रण करना है, वहीं सब का कर्त्तव्य है कि हम गुरु साहिब की ओर से बख्शे फलसफे को संसार में फैलाने का यत्न करें। मैं श्री गुरु नानक देव जी के पावन प्रकाश पर्व की विश्व में रह रही संगत को हार्दिक बधाई देता हुआ मानवता की खुशहाली के लिए कामना करता हूं। 

-प्रधान, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, श्री अमृतसर।