आज जन्म दिन पर विशेष शांति, सद्भावना तथा पंजाब के विकास के लिए अभूतपूर्व है स. बादल का योगदान

मेरे लिए ये अकथनीय तकलीफ के पल हैं क्योंकि मेरे जीवन में पहली बार है कि सरदार प्रकाश सिंह बादल जी का जन्मदिन मनाते समय वह स्वयं हमारे बीच मौजूद नहीं हैं। एक बेटे के रूप में मेरा मन भरा हुआ है। यही नमी मैं खालसा पंथ तथा खालसा पंथ एक एकमात्र प्रतिनिधि संगठन शिरोमणि अकाली दल के बहादुर जरनैलों तथा सिपाहियों के चेहरे पर भी देख रहा हूं। 
पंजाबियों की आंखों के आगे आज वह लम्बा युग भी तैर रहा है, जिस दौरान सरदार बादल ने लगभग 70 वर्ष प्रत्येक पंजाबी के कंधे से कंधा मिला कर पंथ तथा पंजाब की भलाई के लिए महान गुरु साहिबान द्वारा दर्शाये मार्ग पर चलते हुए दिन रात कार्य किये। आज भी उनकी कमी पंजाब के गांवों, शहरों तथा कस्बों में हर कोई महसूस करता है। उनके खिलाफ झूठ का कीचड़ फेंक कर बड़े बने लोग भी पंजाब की फिज़ा में बादल साहिब की शख्सियत की मिठास महसूस किये बिना नहीं रह सकते, बेशक वे इस बात को दुनिया से लाख छिपाते फिरें।
शिरोमणि अकाली दल के समूचे इतिहास के संघर्षपूर्ण तथा गौरवशाली 103 वर्षों के दौरान सरदार बादल ही अकेले ऐसे नेता हैं, जिन्होंने लगभग इस ऐतिहासिक समय में से तीन चौथाई समय पार्टी, खालसा पंथ तथा पंजाब की सतत् सेवा के लिए लगाया। इनमें से सिर्फ 20 वर्ष अकाली सरकारें रहीं। शेष आधी सदी बादल साहिब ने असह्य तथा अकथनीय मुश्किलों भरे संघर्ष में व्यतीत की, जिसे उनके विरोधी भावी नस्लों से छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। स्वतंत्र भारत के इतिहास में राजनीतिक नेताओं में वह सबसे अधिक समय जेलों की सलाखों के पीछे रहने वाले संघर्षशील योद्धा थे। 
खैर, सरदार बादल के वारिस के रूप में जो कुछ भी वह मेरी झोली में डाल कर गये हैं, उसमें सबसे बड़ी दौलत यह है कि विरोधी तो विरोधी, दुश्मन के प्रति भी मन में कटुता या वैर की भावना नहीं रखनी। यदि मैं कभी उदास भी होता तो वह मुझे धैर्य से शांत करके गुरु पातशाह के पावन शब्द याद करवाते : 
ना को वैरी ना ही बिगाना,
सगल संग हम को बण आई।
पंजाब में पहली स्थायी व मज़बूत अकाली सरकार सरदार बादल के नेतृत्व में फरवरी 1997 में बनी थी। सरदार बादल के जीवन के पहले दो दशक तो ऐसे थे जब पंजाब में अकाली सरकार बनने का कोई सपना भी नहीं ले सकता था। सरदार बादल सहित उस समय के अकाली योद्धाओं का ही कमाल था कि वह एक ऐसी पार्टी के प्रति जीवन भर के लिए समर्पित थे और आए दिन जेलों की काल कोठरियों में जाते थे जिस पार्टी की सरकार बनने की कभी आशा ही नहीं थी। 
अकाली सरकार बनने की सम्भावना नवम्बर 1966 के बाद शुरू हुई। फिर भी अकाली दल की सरकारों को कभी स्थायी नहीं रहने दिया गया था। कुछ मास ही अकाली सरकार चलती थी, फिर केन्द्र सरकार किसी न किसी बहाने उसे भंग करके यहां राष्ट्रपति शासन लागू कर देती थी। उस समय भी स्थिर रह कर शिरोमणि अकाली दल के संघर्ष में पूरी जवानी कौम को समर्पित करना—यह सरदार बादल तथा उन जैसे निष्काम योद्धा ही कर सकते थे, परन्तु 1997 में सरदार बादल ने पहली बार यह सिद्ध किया कि केन्द्र अकाली सरकारों को भंग न करे तो वह पंजाब का क्या-क्या संवार सकती हैं। वैसे तो 1997 से पहले भी प्रदेश में जो विकास कार्यों की झड़ी लगी, वह भी अकाली सरकारों के दौरान ही लगी थी। सबसे पहले पंजाब में पंजाबी भाषा को मातृ-भाषा का दर्जा देना तथा लागू करना, सरकारी कार्य मातृ-भाषा में शुरू करना सरदार बादल तथा अकाली दल की सबसे बड़ी प्राथमिकता थी। 
आज किसान तथा शिरोमणि अकाली दल फसलों के जिन समर्थन मूल्यों के जारी रहने बारे चिंतित  हैं, यह व्यवस्था भी सरदार बादल के यत्नों से ही यहां लागू की गई थी। परन्तु न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ तब तक संभव नहीं था, जब तक प्रदेश में किसानों के लिए मंडीकरण की व्यापक सुविधा न होती, ताकि फसल की खरीद गांव-गांव हो सके। इसी कारण सम्पर्क सड़कों का जाल बिछाना, गांव-गांव फोकल प्वाइंट बना कर फसल की बिक्री न्यूनतम समर्थन मूल्य के अनुसार सम्भव बनाना, यह सब योजनाएं बादल साहिब ने बड़ी पहल करके पूरी की थीं, जिस कारण प्रदेश में किसानों तथा कृषि की हालत सुधरी। 
नहरों, रजबाहों,  कस्सियों  का जाल बिछा कर प्रत्येक खेत तक पानी पहुंचाना, राजस्व माफ करना, ट्रैक्टर को जट्ट का गड्डा बता कर कर-मुक्त करना, यह सब अकाली सरकारों के दौरान तथा इन में बहुत कुछ सरदार बादल के नेतृत्व तथा प्रभाव के कारण ही सम्भव हुआ। शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में पंजाब को 19वीं सदी में से निकाल कर 20वीं सदी में दाखिल करना, यह सब कुछ भी अकाली सरकारों के समय ही हुआ था। 
आपको याद होगा कि केन्द्रीय एवं प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने पंथ व पंजाब विरोधी साज़िशें करके 1980 से लेकर 1997 तक पंजाब में शांति एवं भाईचारक साझ को आग लगाई हुई थी। पंजाब में पूंजी लाने के लिए इस तरफ मुंह  करने को कोई भी तैयार नहीं था। इसका बड़ा कारण यह था कि केन्द्र की कांग्रेसी सरकारें पंजाब की स्थिति सुधारने के नाम पर पुलिस व सेना के माध्यम से पंजाबियों, विशेषकर सिखों को कुचलने पर लगी हुई थीं, जिस कारण शांति सम्भव               ही नहीं हो सकी थी। सरदार बादल का दृढ़ विश्वास था कि इसका राजनीतिक, भावुक, मनोवैज्ञानक और धार्मिक समाधान ही संभव हो सकता है। 1997 में सरकार आने पर सरदार बादल ने सबसे पहले प्रदेश में पुलिस अत्याचार बंद करवाया और सिखों के मन पर मरहम लगाई। उससे पहले गांव-गांव और घर-घर कोहराम मचा हुआ था और झूठे पुलिस मुकाबलों में पंजाब के सिख नौजवानों को निर्ममता से मारा जा रहा था। सरदार बादल के आते ही एक नए युग की शुरुआत हुई।
उन्होंने केंद्र सरकार पर ज़ोर डाल कर लम्बे समय से प्रवासी सिखों की बनाई काली सूचियां खत्म करवाईं। इसके साथ ही भाई देविन्दरपाल सिंह  भुल्लर और भाई राजोआणा को दी गई फांसी की सज़ा पर रोक लगवाई और अब उनकी स्थायी रिहाई पर ज़ोर डाला जा रहा है, जिसमें समूह पंथक दलों को सहयोग देना चाहिए।
1997 में विकास के नए युग का दौर भी शुरू होता है। सबसे पहले सरदार बादल ने 22,500 करोड़ की लागत वाली श्री गुरु गोबिंद सिंह बठिंडा रिफाइनरी लाकर प्रदेश में इतिहास का सबसे बड़ा पूंजी निवेश करवाया। आज के हिसाब से यह कीमत लगभग दो लाख करोड़ बनती है, जो कि 1947 से लेकर अब तक सबसे बड़ा औद्योगिक प्रोजैक्ट बनता है। प्रदेश पर उस समय कांग्रेस की सरकार द्वारा पंजाब की जवानी पर अत्याचार करने के लिए ही पंजाब पर 8500 करोड़ का कज़र् चढ़ा हुआ था। सरदार बादल ने श्री आई.के. गुजराल के साथ अपनी निजी निकटता द्वारा देश में पहली बार यह फैसला करवाया कि इस तरह का राज्यों का सारा कज़र्ा माफ किया जाये, जो देश की सुरक्षा के कारण राज्यों पर चढ़ा है। उससे प्रदेश को मिली आर्थिक राहत से पंजाब में विकास का सिलसिला शुरू हुआ। इसका परिणाम ही है कि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, विश्व स्तर की चार मार्गी और छह मार्गी सड़कों का मूलभूत ढांचा, आई.टी.आईज़., बठिंडा में एम्स, न्यू चंडीगढ़ में हैल्थ सिटी, संगरूर में पी.जी.आई. आदि प्रोजैक्ट संभव हुए। हर कैंसर मरीज़ को मुफ्त इलाज़ की सुविधा, लगभग अढ़ाई सौ किस्म की मुफ्त दवाइयां और अन्य अनेक सुविधाएं दी गईं। गरीबों के लिए मुफ्त आटा, दाल स्कीम लागू की गई।
खालसा पंथ तथा समूह पंजाबियों की विरासत को संभालने और अगली पीढ़ियों के सामने इसको उजागर करने के लिए एतिहासिक और विश्व स्तर पर विरासती यादगारें, जैसे खालसा पंथ की 300वीं शताब्दी बेमिसाल स्तर पर मनाना, विश्व स्तर का खालसा विरासती काम्पलैक्स, भगवान वाल्मीकि जी की याद में पावन राम तीर्थ मंदिर, खुरालगढ़ में श्री गुरु रविदास जी की यादगार, बंदा सिंह बहादुर यादगार, दुर्ग्याना मंदिर का आधुनिकीकरण और सुंदरीकरण, छोटे और बड़े घल्लूघारों की यादगारें बनाई गईं। पंजाब के इतिहास में कभी भी खालसा पंथ और पंजाब की संस्कृति की देखभाल पर इतना ज़ोर नहीं दिया गया। आज पंजाब के किसान भी सरदार बादल को याद करते हैं जिन्होंने 1997 में उनके ट्यूबवैलों के बिल माफ कर दिए थे।
गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए मैरीटोरियस स्कूलों के अलावा महाराजा रणजीत सिंह और माई भागो जी के नाम पर लड़कों और बच्चों के लिए फौज में अफसर बनने के लिए इंस्टीच्यूट्स शुरू हुए। लड़कियों की शिक्षा की सरदार बादल को दिन-रात चिंता रहती थी और इस संबंध में उन्होंने अनेक नव्य प्रयास किये। हम उनके इस सपने को और आगे लेकर जाने के लिए दृढ़ संकल्प हैं।
मैं सब चीज़ें गिनाने लगा तो यह गाथा खत्म ही नहीं हो सकती। इनमें से कुछ एतिहासिक काम पूरे करने की ज़िम्मेदारी, उन्होंने मुझे सौंपी थी। महान गुरु साहिबान की कृपा हुई तो मैं सचखंड श्री हरिमंदिर साहिब के विरासती चौगिरदे का एतिहासिक कार्य पूरा करने में सफल हुआ। इस प्रकार प्रदेश में विश्व स्तरीय सड़क ढांचा और अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा और बठिंडा, आदमपुर और लुधियाना में हवाई अड्डे शुरू करने में सफल हुआ।
उनके जन्मदिन पर शिरोमणि अकाली दल आज खालसा पंथ और पंजाब की खुशहाली के लिए सरदार बादल द्वारा बताए गए मार्ग पर दृढ़ इरादे के साथ आगे बढ़ने का संकल्प लेता है। 
-प्रधान, शिरोमणि अकाली दल