राजस्थान में आपसी कलह से हारी कांग्रेस

राजस्थान विधानसभा चुनाव में लोगों को जैसी अपेक्षा थी उसी के अनुरूप चुनाव परिणाम देखने को मिले हैं। पिछले पांच विधानसभा चुनाव से प्रदेश में हर बार सरकार बदलने की परम्परा छठी बार भी कायम रही है। अशोक गहलोत के लाख प्रयासों के उपरांत भी कांग्रेस पार्टी प्रदेश में हर बार सत्ता बदलने का रिवाज नहीं बना बदल पाई और सत्ता गंवा दी। राजस्थान के मतदाताओं ने भाजपा की भारी बहुमत से ताजपोशी की है ताकि अगले पांच साल तक वह बिना किसी बाधा के शासन कर सके। 
प्रदेश में भाजपा 115 सीटों के पर्याप्त बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है। वहीं कांग्रेस का आंकड़ा 108 से घटकर 69 सीटों पर सिमट गया है। प्रदेश के मतदाताओं ने तीसरे मोर्चे के नाम पर नेतागिरी कर रहे नेताओं को भी चुनाव में उनकी जगह दिखा दी है। बहुजन समाज पार्टी मात्र दो सीटों पर सिमट गई। वहीं सत्ता की चाबी अपने हाथ में होने का दावा करने वाले नागौर के सांसद व राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल अपनी खुद की खींवसर विधानसभा सीट पर मात्र 2059 मतों के अंतर से जीत सके हैं। उनकी पार्टी के सभी प्रत्याशी पराजित हो गए। 
विधानसभा चुनाव से पहले अशोक गहलोत ने चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए पूरा ज़ोर लगा दिया था। मगर कांग्रेस में चल रही आपसी गुटबाजी के चलते मतदाताओं ने कांग्रेस पार्टी को नकार दिया। विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही पार्टी के मुख्य चेहरे बने हुए थे। उन्हीं के चेहरे पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था। पार्टी की सभी प्रचार सामग्री पोस्टरों, बैनरों व होर्डिंगों में अशोक गहलोत ही छाए हुए थे। अशोक गहलोत द्वारा हायर की गई प्रचार कम्पनी डिज़ाइन बाक्स व उसके बड़बोले निदेशक नरेश अरोड़ा भी चुनाव जितवाने में विफल रहे। सचिन पायलट पूरे चुनाव में ही साइड लाइन रहे। टिकट वितरण के दौरान सचिन पायलट ने जिस तरह से गहलोत के सामने हथियार डाले दिये थे। उस पर बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषकों को भी आश्चर्य हुआ। चुनाव से पहले सुचिता की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले पायलट ने जिस तरह से गहलोत समर्थक शांति धारीवाल, प्रमोद जैन भाया जैसे विवादित लोगों को टिकट देने पर अपनी सहमति जताई उससे सभी अचंभित हो गए थे। लोगों का कहना था कि पायलट ने अपने समर्थक कुछ लोगों को टिकट दिलवाने के चक्कर में गहलोत से अंदर खाने अघोषित समझौता कर लिया था। चुनाव में पायलट के कहने पर करीबन 40 लोगों को टिकट मिली जबकि गहलोत समर्थकों की संख्या 150 से भी ऊपर थी।
चुनाव से पहले गहलोत बार-बार कहते थे कि प्रदेश की जनता में सरकार के खिलाफ  नकारात्मक माहौल नहीं है। जनता प्रदेश सरकार के कार्यों से खुश है। विधायकों को लेकर जनता में नाराज़गी है। इसलिए हम बड़ी संख्या में नए लोगों को मैदान में उतरेंगे। मगर चुनाव आते-आते सारी बातें कागज़ों में ही रह गई और धड़ाधड़ बूढ़े व मौजूदा विधायकों को मैदान में उतार दिया गया। जिसका नतीजा कांग्रेस को करारी हार के रूप में देखना पड़ा।
अशोक गहलोत ने सबसे बड़ी गलती प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने खुद को चेहरा बनाकर कर दी। राजस्थान में भाजपा ने किसी को भी चेहरा बनाकर चुनाव नहीं लड़ा। भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे व कमल के फूल के निशान पर चुनाव लड़ा था। वहीं अशोक गहलोत ने सामूहिक नेतृत्व के स्थान पर खुद को ही आगे कर पूरी चुनावी व्यूह रचना की थी जिसमें वह नाकाम रहे। कई विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को अपने बागी प्रत्याशियों की नाराज़गी के कारण भी हार का सामना करना पड़ा है। समय रहते कांग्रेस पार्टी आंतरिक बगावत पर नियंत्रण नहीं कर पाई। पार्टी के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा व तीनों सह प्रभारी का तो चुनाव के दौरान पता ही नहीं चला कि वे कहां रहे। अशोक गहलोत ने चुनाव से पहले लोगों को सात गारंटी देकर वायदा किया था कि फिर से सरकार बनने पर जनता को इन सात योजनाओं के तहत लाभ पहुंचाया जाएगा। मगर प्रदेश की जनता ने उनके वायदों पर ध्यान ही नहीं दिया। 
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