रुपये में लगातार गिरावट गंभीर चिंता का विषय

हाल ही में ‘मन की बात’ रेडियो प्रसारण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वह कुछ ‘बड़े परिवारों’ द्वारा विदेश में शादियां आयोजित करने की प्रवृत्ति से परेशान थे, और लोगों से भारतीय धरती पर ऐसे समारोह आयोजित करने का आग्रह किया ताकि देश का पैसा देश से बाहर न जाये। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘अब शादी का सीजन भी शुरू हो गया है। कुछ व्यापारिक संगठनों का अनुमान है कि इस शादी के सीजन में करीब 5 लाख करोड़ रुपये का कारोबार हो सकता है। आप सभी को शादियों की खरीदारी करते समय भारत में बने उत्पादों को ही महत्व देना चाहिए।’ प्रधानमंत्री का विचार बिल्कुल सही है। हालांकि सवाल यह है कि घरेलू मुद्रा रुपये के बदले खरीदी गयी विदेशी मुद्रा की ऐसी फिजूलखर्ची पर सरकार कब तक मूकदर्शक बनी रहेगी? जिस तरह से देश के अमीर भारत के गरीब किसानों, छोटे पैमाने के निर्यातकों और विदेशों में काम करने वाले प्रवासी श्रमिकों की मेहनत की विदेशी मुद्रा को बर्बाद करने के लिए विदेशों में पैसा खर्च कर रहे हैं, वह एक तरह से पूरे देश के लिए शर्म की बात है। कुछ साल पहले ही बॉलीवुड एक्टर दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह ने उत्तरी इटली के लेक कोमो के नजदीक एक रिसॉर्ट में शादी की थी। 
शायद अब समय आ गया है कि धनाढ्य भारतीयों द्वारा मौज-मस्ती और मनोरंजन के लिए विदेशी खर्च पर अंकुश लगाया जाये ताकि रुपये के मूल्य को आंशिक रूप से संरक्षित किया जा सके जिसमें तब से लगातार गिरावट देखी जा रही है, जब से सरकार ने विदेशी यात्रा खर्च नियमों में भारी ढील देने का फैसला किया है। 1980 के दशक के मध्य तक विदेश जाने वाले भारतीय पर्यटकों को अधिकतम 500 अमरीकी डॉलर की अनुमति थी, जब एक अमरीकी डॉलर का विनिमय मूल्य केवल आठ रुपये के आसपास था। भारत के हज़ारों हज यात्रियों को उनकी महीने भर की हज यात्रा के दौरान सऊदी अरब में खर्च करने के लिए प्रत्येक को 300 डॉलर दिए गये थे। उन्होंने बॉम्बे बंदरगाह से जेद्दा तक जाने के लिए राज्य के स्वामित्व वाले मुगल लाइन जहाज़ों का इस्तेमाल किया। उन दिनों अधिक कमाई करने वाले बॉलीवुड फिल्म आइकन भी खुशी-खुशी अपने विवाह समारोह घर पर आयोजित करते थे।
अंधाधुंध विदेशी खर्च और घरेलू साज-सज्जा सहित विलासिता की वस्तुओं के बढ़ते आयात के कारण इस सदी की शुरुआत से ही भारतीय मुद्रा का मूल्य नीचे की ओर बढ़ रहा है। रुपये का मूल्य लगभग हर हफ्ते या हर महीने गिर रहा है। मई 2004 में एक अमरीकी डॉलर की कीमत 45.32 रुपये थी। 2014 में वर्तमान सरकार के सत्ता में आने पर यह 62.33 रुपये तक पहुंच गया। मई 2014 और अब के बीच अमरीकी डॉलर के मुकाबले रुपये का विनिमय मूल्य 21 पायदान गिरकर 83.32 रुपये पर आ गया है। भारतीयों द्वारा रुपये के बदले में विदेशी धन की अंधाधुंध फिजूलखर्ची भारतीय मुद्रा के मूल्य में निरन्तर गिरावट का एकमात्र कारण नहीं है, इसके अलावा कई अन्य कारण भी हैं। फिर उन सभी को सरकार द्वारा उचित रूप से नियंत्रित किया जा सकता है, परन्तु दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा है।
भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के अनुसार भारतीयों ने अकेले दिसम्बर 2022 में यात्रा पर 1137 मिलियन डॉलर खर्च किये। इससे अप्रैल और दिसम्बर 2022 के बीच सीमा पार छुट्टियों पर कुल खर्च 9947 मिलियन डॉलर या लगभग 10 अरब डॉलर हो गया। ऐसे देश के लिए जहां 80 करोड़ से अधिक गरीबों को हर साल सरकार द्वारा मुफ्त अनाज दिया जाता है, यह आश्चर्यजनक लग सकता है। अमीर भारतीयों द्वारा साल दर साल बड़े पैमाने पर सोने के आयात का मामला भी ऐसा ही है। सोने की मांग और कीमतें लगातार बढ़ रही हैं क्योंकि अमीरों का भारत की कागज़ी मुद्रा के मूल्य में  विश्वास खो रहा है। 2022-23 में भारतीयों ने ़35 अरब का सोना आयात किया। चांदी के आयात का मूल्य ़5.29 अरब था। यह उस समय था जब देश में ़267 अरब का व्यापार घाटा देखा गया था। चिंता की बात है कि वार्षिक व्यापार घाटा बढ़ रहा है और भारतीय मुद्रा के मूल्य को कमज़ोर कर रहा है।
भारत के मेहनतकश किसानों और प्रवासी श्रमिकों की विदेशी मुद्रा आय देश के अमीरों द्वारा किये जाने वाले विदेशी खर्च का भुगतान कर रही है। 2022-23 में भारत का कृषि निर्यात 53.2 अरब डॉलर के सार्वकालिक उच्च स्तर को छू गया। विदेशों में काम करने वाले भारतीयों ने पिछले साल रिकॉर्ड विदेशी मुद्रा भारत भेजी। विश्व बैंक के नवीनतम प्रवासन और विकास आंकड़ों के अनुसार भारत ने 2022 में देश में विदेशी मुद्रा प्रेषण में 24 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की और यह रिकॉर्ड 111 अरब डालर तक पहुंच गया। हालांकि विश्व बैंक ने भविष्यवाणी की कि भारत 2023 में केवल 0.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज कर सकता है। जुलाई 2022 तक भारत से 1.3 मिलियन लोग काम करने के लिए पलायन कर गये। मापी गयी समय अवधि के दौरान संयुक्त अरब अमीरात, अमरीका और सऊदी अरब ने सबसे अधिक संख्या में भारतीय श्रमिकों की मेजबानी की।
रुपये में लगातार गिरावट में योगदान देने वाले कई कारक हैं। भारतीय अमीरों द्वारा विदेशी मुद्रा की फिजूलखर्ची उनमें से एक है। अन्य में मुद्रास्फीति, मुद्रास्फीति से असंबद्ध ब्याज दर, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और भुगतान का घाटा संतुलन, उच्च विदेशी ऋण, राजकोषीय घाटा और सरकारी उधार शामिल हैं। मुद्रास्फीति, अंतर अनुमानित दरें और विदेशी विनिमय दरें सहसंबद्ध हैं। इनमें से प्रत्येक कारक दूसरे को प्रभावित कर सकता है जबकि कम मुद्रास्फीति और उच्च ब्याज दर किसी देश में विदेशी फंड को आकर्षित कर सकती है। इसकी विनिमय दर को मजबूत कर सकती है। विशेषज्ञ चालू खाता (घाटा किसी देश के खर्च और कमाई के बीच का अंतर) को सबसे महत्वपूर्ण घाटे के मापदंडों में से एक के रूप में देखते हैं। इसका मतलब है कि देश जितना कमाता है उससे ज्यादा खरीदारी पर खर्च कर रहा है। देश की निर्यात आय उसके बढ़ते आयात का भुगतान करने के लिए पर्याप्त नहीं है। सरकार और रिज़र्व बैंक को मिलकर रुपये के मूल्य की रक्षा के लिए एक मज़बूत संकल्प लेना चाहिए, भले ही इससे देश के कुछ अमीर लोगों के बीच प्राधिकरण अलोकप्रिय हो जाये। (संवाद)