सैन्य गतिविधियां भी बढ़ाती हैं जलवायु संकट

यह स्वागत योग्य है कि दुनिया भर से 80000 से अधिक प्रतिभागी जलवायु संकट को कम करने की रणनीति पर विचार-विमर्श करने के लिए दुबई में एकत्र हुए। इस संकट का समाधान नहीं निकाला गया तो यह विनाशकारी सिद्ध होगा। यह सम्मेलन ऐसे समय में हुआ है जब महज दुबई से लगभग 2600 किलोमीटर की दूरी पर गाज़ा में इज़रायल द्वारा निर्दोष नागरिकों पर बमबारी की जा रही है। हमलों 17000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गये हैं जिनमें से 70 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे हैं और बुनियादी ढांचे को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया है, लोग बेघर हो गये हैं।
कोई भी सैन्य गतिविधि जलवायु संकट को बढ़ाती है। अब तक यह सर्वविदित है कि वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सैन्य गतिविधि का योगदान 5.5 प्रतिशत होने का अनुमान है। हाल के वर्षों में दुनिया भर में सैन्य खर्च में काफी वृद्धि देखी गई है। 2022 में विश्व सैन्य व्यय बढ़कर 2240 बिलियन डॉलर हो गया, जिसमें से 82.9 बिलियन डॉलर अकेले परमाणु हथियारों पर खर्च किये गये। सरकारों द्वारा सैन्य व्यय पर रिपोर्टिंग हमेशा एक गुप्त मामला होता है और सुरक्षा कारणों से सैन्य संबंधी गतिविधियों की रिपोर्टिंग में कोई पारदर्शिता नहीं होती है। ग्लोबल रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड कॉन्फ्लिक्ट और पर्यावरण वेधशाला के वैज्ञानिकों के डॉ. स्टुअर्ट पार्किंसन और लिन्से कॉटरेल ने एक अध्ययन ‘सैन्य के वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का आकलन’ में बताया है कि यदि दुनिया की सेनाएं एक देश होतीं, तो इस आंकड़े का मतलब होता कि उनके पास दुनिया में चौथा सबसे बड़ा राष्ट्रीय कार्बन फुटप्रिंट रूस से भी अधिक होता। शोधकर्ताओं ने पाया कि यूक्रेन युद्ध के पहले 12 महीनों में 1190 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन हुआ, जितना कि बेल्जियम ने इसी अवधि में उत्पादित किया था।यह सैन्य उत्सर्जन को मज़बूती से मापने और संबंधित कार्बन पदचिन्ह को कम करने के लिए ठोस कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता पर जोर देता है, खासकर जब यह उत्सर्जन यूक्रेन में युद्ध और गाज़ा में इजरायली आक्रामकता के मद्देनज़र बढ़ने की संभावना है।
इसलिए यह ज़रूरी है कि कॉप-28 में विचार-विमर्श के दौरान निरस्त्रीकरण को मुख्य स्थान दिया जाना चाहिए था। पिछला कॉप-27 भी निरस्त्रीकरण पर कोई बयान जारी करने में विफल रहा था और इस बार भी वैसा ही हुआ। हालांकि इस बार इंटरनेशनल फिजिशियन फॉर द प्रिवेंशन ऑफ न्यूक्लियर वॉर (आईपीपीएनडब्ल्यू) सहित कुछ संगठनों ने इस मुद्दे को उजागर करने का एक मुद्दा बनाया, अगर मुख्य मंच पर नहीं तो कम से कम प्रतिभागियों के बीच।
यह अजीब बात है कि कॉप-28 में एक घोषणा को अपनाया गया जिसमें राष्ट्रों से स्वास्थ्य क्षेत्र में अपने ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को तेजी से स्थायी रूप से और पर्याप्त रूप से कम करने का आह्वान किया गया। ऐसा तब हुआ है जब सैन्य गतिविधि द्वारा कुल उत्सर्जन के 5.5 प्रतिशत की तुलना में वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र द्वारा 4.4 प्रतिशत उत्सर्जन होता है जबकि सैन्य गतिविधि मारने के लिए है, स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र जीवन को बनाये रखने के लिए है।
आईपीपीएनडब्ल्यू ने आगे चेतावनी दी है कि युद्ध जारी रहने से परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का खतरा हो सकता है जो विनाशकारी होगा। इरा हेलफैंड पूर्व सह-अध्यक्ष आईपीपीएनडब्ल्यू और पर्यावरण विज्ञान विभाग, रटगर्स यूनिवर्सिटी, अमरीका के एलन रोबॉक द्वारा किये गये एक अध्ययन ‘क्षेत्रीय परमाणु युद्ध के जलवायु परिणाम’ ने बताया है कि पृथ्वी पर मौजूद वर्तमान परमाणु हथियार जलवायु के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं और इस प्रकार सभी जीवन रूपों के लिए खतरा हैं। 100 हिरोशिमा आकार के परमाणु हथियारों का भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु आदान-प्रदान दो अरब लोगों को खतरे में डाल देगा। प्रमुख परमाणु शक्तियों के बीच कोई भी परमाणु आदान-प्रदान हज़ारों वर्षों के मानव श्रम के माध्यम से निर्मित आधुनिक सभ्यता का अंत कर सकता है। विस्फोटों और परिणामी आग के कारण वातावरण में घुली कालिख और मलबा सूरज की रोशनी को पृथ्वी तक पहुंचने से रोक देगा, जिससे औसत सतह 1.25 डिग्री सेंटीग्रेड तक ठंडी हो जायेगी जो कई वर्षों तक बनी रहेगी। यहां तक कि 10 साल बाद भी सतह का औसत तापमान 0.5 डिग्री सेंटीग्रेट के स्तर पर लगातार ठंडा रहेगा। इससे वैश्विक स्तर पर वर्षा में 10 प्रतिशत की कमी आयेगी और फसल बर्बाद हो जाएगी जिससे भुखमरी और मौतें होंगी। इसलिए कॉप-28 को परमाणु हथियारों के पूर्ण उन्मूलन का आह्वान करना चाहिए था और परमाणु हथियार रखने वाले देशों को परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि (टीपीएनडब्ल्यू) में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बातचीत को बढ़ावा देना चाहिए था। जब ऊर्जा के गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों पर स्विच करने की बात होती है तो कॉप-28 के भीतर एक लॉबी है जो परमाणु ऊर्जा के महत्व पर बोलती है। यह एक झूठी और खतरनाक कहानी है। परमाणु ऊर्जा जलवायु परिवर्तन का कोई समाधान नहीं है। इसके गंभीर स्वास्थ्य परिणाम होते हैं और परमाणु प्रसार का खतरा बढ़ जाता है। परमाणु ऊर्जा महंगी और अविश्वसनीय है, समग्र बिजली उत्पादन के सापेक्ष महत्व खो रही है तथा लागत-प्रभावशीलता और उत्पादन के मामले में नवीकरणीय ऊर्जा से पीछे है और इसलिए आउट डेटेड है। इसलिए यह आवश्यक है कि दुनिया नये परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण बंद कर दे। परमाणु ऊर्जा उत्पादन को तेजी से चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दे और एक उचित नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़े।
माउंट एवरेस्ट क्षेत्र के ग्लेशियरों पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव का वीडियो संदेश कि ‘हमें अग्रिम पंक्ति के लोगों की सुरक्षा के लिए और वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित करने के लिए, जलवायु अराजकता की सबसे खराब स्थिति को रोकने के लिए अभी कार्य करना चाहिए’, दुनिया भर के अरबों लोगों की आवाज़ को व्यक्त करता है। उन्होंने कहा, ‘यह एक ऐसी बीमारी है जिसे केवल आप, वैश्विक नेता ही ठीक कर सकते हैं।’ (संवाद)