डीपफेक (Deepfake) एक नई चुनौती 

कभी-कभी मन में ख्याल आता है कि आजकल हमारी ज़िंदगी में दैनिक जीवन में प्रयोग होती चीज़ों से लेकर हमारा वार्तालाप, हमारी चाल, हमारा व्यवहार काफी हद तक फेक (Fake) यानि नकली हो गया है।
नकली चीज़ें मन को अधिक अच्छी नहीं लगने लग गईं? वास्तव में जो-जो इन्सानी मन को भाता है, उसी रुचि अनुसार साइबर अपराध भी जन्म लेते हैं।
हम सभी इस बात से अवगत हैं कि डिज़टल मीडिया बड़ी तेज़ी से तरक्की कर रहा है, टैक्नॉलोजी आगे बढ़ रही है, नए-नए आविष्कार प्रतिदिन जन्म ले रहे हैं, आज आने वाली पीढ़ी की पढ़ाई से लेकर उनके प्रतिदिन की जिंदगी में टैक्नॉलोजी का बहुत बड़ा रोल है। जैसे-जैसे हम टैक्नॉलोजी में आगे बढ़ेंगे, उतना ही देश तरक्की करेगा। आज यदि भारत चांद पर पहुंच गया है तो इसका श्रेय भी इस टैक्नॉलोजी के क्षेत्र में होती तरक्की को ही जाता है।
लेकिन हर चीज़ के दो पहलू होते हैं, सीधे पक्ष के साथ विपरीत पक्ष ज़रूर होता है। अफसोस, इन्सान की फितरत कुछ इस प्रकार की है कि विपरीत प्रभाव हमें बहुत आकर्षित करते हैं।
जब हम सोशल मीडिया पर कुछ अलग देखते हैं, चाहे किसी और की निजी ज़िंदगी के साथ संबंधित क्यों न हो, तो हम बिना सोचे समझे सभी काम छोड़ कर उसके बारे चर्चा करने लगते हैं और अन्य लोगों को आगे भेजते हैं। यह भी नहीं देखते कि जो हम अन्यों को भेज रहे हैं सच है या नकली है। इसके परिणाम कई बार बहुत बुरे निकलते हैं। जिनके बारे में सामग्री आगे से आगे भेजी जाती है, वे कई बार अपने बारे इस तरह का प्रचार होता देख कर आत्महत्या जैसा गलत कदम भी उठा लेते हैं।
नैशनल क्राइम रिकाड्ज़र् ब्यूरो (National Crime records bureau) के अनुसार  2022 में 24.4 प्रतिशत विगत वर्षों के मुकाबले साइबर अपराध में वृद्धि हुई है, यह एक बहुत ही खतरनाक आंकड़ा है।
साइबर अपराध यानि कि इंटरनैट या कम्प्यूटर के प्रयोग से जो अपराध किया जाता है या किसी व्यक्ति को जानबूझ कर निशाना बनाने के लिए कम्प्यूटर टैक्नॉलोजी का प्रयोग करने को साइबर अपराध कहते हैं, जैसे कि बैंक खाते से चोरियां या मोबाइल वॉलेट जो कि साइबर अपराध का हिस्सा हैं, यह सब तो हर दिन सुनने वाली बातें हो गई हैं।
आजकल जो नए तरह का, नई तकनीक का प्रयोग करने वाला अपराध हर तरफ सुनने को मिल रहा है, वह है डीपफेक (Deepfake) यह एक तरह का सॉफ्टवेयर होता है, जो चेहरे को (Deep generation) तरीके के साथ बदल देता है।
डीपफेक बहुत ही ताकतवर तकनीक (आर्टीफिशल इंटैलीजैंस) (मसनूई बुद्धि) के ज़रिये आवाज़ और वीडियो दोनों को बदल देता है। फोटो बदलना तो पहले भी बहुत आम बात थी लेकिन इसमें आवाज़ भी किसी के ऊपर किसी और की लगा दी जाती है और वीडियो में भी चेहरे बदल दिए जाते हैं।
फिल्मी कलाकारों से लेकर राजनीतिज्ञ तक इस डीपफेक के जंजाल में फंस चुके हैं। 
यहां तक कि हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की गरबा नाच करते की वीडियो वायरल हुई जोकि असली नहीं थी, यह डीपफेक के साथ बनी थी।
डीपफेक समाज की, देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत खतरनाक है, क्योंकि कई बार भाषण सामग्री कुछ और होती है और वीडियो असली से बदल कर घुमा दी जाती हैं, जिसके साथ समाज में धर्म, जात-पात के नाम पर दंगे हो जाते हैं और जब तक वीडियो की वास्तविकता सामने आती है, हर तरफ से बहुत ही जान-माल का नुकसान हो जाता है, जिसकी भरपाई करनी मुश्किल होती है।
अकेला भारत ही नहीं, डीपफेक का शिकार फेसबुक के मार्क ज़ुकरबर्ग, अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन, बराक ओबामा, डोनाल्ड ट्रंप आदि भी हो चुके हैं। कहने का भाव है कि डीपफेक तकनीक विदेशों, जोकि टैक्नॉलोजी में हर प्रकार से बहुत तरक्की कर चुके हैं, उनको भी अपना शिकार बना रही है। गेमों, मनोरंजन, पैसे के लेन-देन, गाली-गलोच वाली सामग्री इसके द्वारा फैलाई जाती है। भाव हर क्षेत्र में डीपफेक ने अपने पैर जमा लिए हैं।
टैक्नॉलोजी के बुरे प्रसार से वास्तव में आजकल कोई नहीं बच सकता, न कोई आम इन्सान और न कोई बड़े पद वाला। वैसे तो इससे निपटने के लिए गूगल और मेटा जैसी कम्पनियों ने बहुत तरीकों के ऐलान भी किए हैं, ताकि जिससे डीपफेक को नकेल डाली जाए।
केंद्र सरकार द्वारा सूचना तकनीक एक्ट के नियमों में फरवरी 2021, अक्तूबर 2022 और दोबारा अप्रैल 2023 में तबदीलियां की गईं ताकि इन रोज़ की चुनौतियों का सामना हो सके। सोशल मीडिया पलेटफार्म की ज़िम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है कि जो सामग्री उनके पलेटफार्म पर है, वह नकली तो नहीं है। 
विगत दिनों देश के टैक्नॉलोजी मंत्री अश्विनी वैष्णव द्वारा यह ऐलान किया गया कि सरकार द्वारा नए नियम लाने की तैयारी है डीपफेक के खिलाफ और सोशल मीडिया कम्पनियों को इसके बारे अपने-अपने सुझाव और योजनाओं के प्रारूप, ड्राफ्ट पेश करने के लिए कहा गया है।
इसमें सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी हम मानते हैं देश के, समाज के लोगों की है। यदि कोई सोशल मीडिया पर अपराध बढ़ता है, उसके बढ़ने में हम लोग, आम जनता सबसे अधिक कसूरवार हैं। जब हमारे पास किसी की चाहे कोई नेता, फिल्मी अभिनेता, समाज के किसी मशहूर व्यक्ति की गलत किस्म की या असभ्य वीडियो आती है, तो देखने वाले के चेहरे पर अलग रौनक छा जाती है क्योंकि गलत किस्म की चीज़ें मन को बहुत लुभाती हैं। हम उस वीडियो को बिना सोचे समझे, तथ्यों को पहचाने बिना बहुत लोगों तक भेजते हैं। आगे से आगे यह वीडियो वायरल हो जाती है जिससे किसी का जानी नुकसान होना, समाज में अशांति फैलने जैसे हालात भी बन जाते हैं। इस तरह करने का अधिकार हम किसी को भी नहीं है। कब तक हम अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारियों को अनदेखा करते रहेंगे।
यदि यह काबू में न आईं तो डीपफेक जैसी बहुत ही अन्य नुकसानदायक टैक्नॉलोजी की तरक्की हमारी ज़िंदगी पर राज करेंगी। अंत: कभी भी कुछ भी बिना सोचे समझे किसी को न भेजें या अपने-अपने सोशल मीडिया पेजों पर न डालें। हमारे शैक्षणिक प्रबंध को भी इस चीज़ को बहुत छोटे स्तर से पढ़ाना शुरू करना पड़ेगा, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी अपनी पढ़ाई के साथ-साथ डीपफेक जैसी टैक्नॉलोजी के गलत प्रभाव वाली चीज़ें, जोकि दीमक की तरह हैं, बारे बचपन से ही पढ़कर गलत और सही फैसला करने के लिए जागरूक रहें। इसी जागरूकता के साथ हम सभी को इकट्ठे होकर चाहे देश, चाहे विदेश में इस प्रतिदिन की समस्या को जड़ से खत्म करना है और इस चरित्रहनन के इस औज़ार को खत्म करने के लिए प्रयत्न करने चाहिएं। 

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