इंडिया गठबंधन की चुनौतियां

आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए 28 विपक्षी दलों द्वारा बनाये गये इंडिया गठबंधन की लम्बी अवधि के बाद नई दिल्ली में विगत मंगलवार को बैठक सम्पन्न हुई। इस बैठक में विपक्षी दलों ने एक बार फिर लोकसभा चुनाव एकजुट होकर लड़ने का प्रण लिया तथा आशा प्रकट की है कि वे जनवरी के दूसरे सप्ताह तक सीटों के विभाजन का काम पूर्ण कर लेंगे। सीटों के विभाजन का सिलसिला प्रदेश स्तर पर आरम्भ किया जायेगा तथा यदि कोई समस्या आएगी तो उसमें इंडियन गठबंधन की उच्च स्तरीय समिति हस्तक्षेप करेगी। इंडिया गठबंधन की ओर से कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने यह आशा प्रकट की है कि सीटों के विभाजन के पक्ष से पंजाब तथा दिल्ली के मध्य जटिल मुद्दों का भी हल निकाल लिया जायेगा। वैसे पंजाब में कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी की सरकार के बीच मतभेद जितने बढ़ चुके हैं, उस कारण ऐसा होना मुश्किल दिखाई दे रहा है। उपरोक्त बैठक में तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बैनर्जी द्वारा प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम पेश किया गया तथा इसका समर्थन आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक श्री अरविन्द केजरीवाल द्वारा भी किया गया, परन्तु इस संबंध में कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया, अपितु गठबंधन की बैठक के बाद प्रैस कान्फ्रैंस में मल्लिकार्जुन खड़गे ने यह कहा कि चुनाव जीतने के बाद ही प्रधानमंत्री पद के संबंध में कोई फैसला लिया जाएगा।
वैसे इंडिया गठबंधन के पक्ष से यह सन्तोषजनक बात रही है कि ताज़ा बैठक में 28 पार्टियों के सभी वरिष्ठ नेताओं ने भाग लिया। जिस तरह पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के आये परिणामों के बाद भिन्न-भिन्न विपक्षी दलों के नेताओं ने कांग्रेस के विरुद्ध बयान दिये थे, उनसे तो ऐसा प्रतीत होता था कि यह गठबंधन जल्द ही बिखर जायेगा। परन्तु अब जिस तरह विपक्षी दलों के नेताओं ने कांग्रेस के प्रति अपने व्यवहार में कुछ लचक  लाई है, उससे प्रतीत होता है कि इस गठबंधन द्वारा एकजुट होकर चुनाव लड़ने के लिए संजीदा यत्न जारी रखे जायेंगे। चाहे गठबंधन के लिए उम्मीदवार तय करना, चुनावी रणनीति बनाना, चुनाव के लिए ज़रूरी फंड का प्रबन्ध करना, चुनाव प्रचार करने तथा इस संबंध में भिन्न-भिन्न समितियां बना कर उन्हें सक्रिय करने के लिए समय बहुत कम है। गठबंधन ने उपरोक्त बैठक में भी अपने संयोजक सहित बेहतर तालमेल के लिए अपने अन्य पदाधिकारियों की घोषणा नहीं की। इससे गठबंधन को एक इकाई के रूप में काम करने में मुश्किल आ सकती है। इस समय आगामी लोकसभा चुनावों के लिए सिर्फ पांच मास का समय ही शेष है। इतने कम समय में प्रत्येक पक्ष से चुनावों के लिए तैयारी करके भाजपा जैसी शक्तिशाली पार्टी को टक्कर देना इंडिया गठबंधन के लिए बेहद बड़ी चुनौती होगी। विपक्षी दल कांग्रेस से इस बात के लिए भी असन्तुष्ट दिखाई दे रहे हैं कि उसने लगभग तीन मास का समय खराब कर दिया है तथा इस समय के दौरान उसने अपना पूरा ध्यान विधानसभा चुनावों की ओर ही केन्द्रित किये रखा तथा उन चुनावों में भी कांग्रेस की कारगुज़ारी बेहतर नहीं रही। दूसरी तरफ विधानसभा चुनावों में भाजपा की प्रभावशाली जीत के कारण लोकसभा चुनावों के सन्दर्भ में उसकी स्थिति मज़बूत हुई दिखाई देती है। कैडर तथा पैसे के पक्ष से भी भाजपा बेहतर स्थिति में है तथा इसके अतिरिक्त उसके पास प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जैसा प्रभावशाली नेता और प्रवक्ता भी है। इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के करोड़ों वर्कर भी भाजपा को चुनाव जिताने के लिए हमेशा की तरह पूरी सक्रियता दिखाएंगे। 22 जनवरी को अयोध्या में नए बने राम मंदिर का प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन करने और इस संबंध में देश में से बड़ी संख्या में लोगों को वहां इकट्ठे करने के जो यत्न हो रहे हैं, उससे भी भाजपा के चुनाव प्रचार को बड़ा समर्थन मिलेगा। भाजपा और संघ के लिए अपना हिन्दुत्व का एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए भी यह माहौल बहुत अनुकूल सिद्ध होगा। विगत 10 वर्षों के दौरान श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार द्वारा लागू की गई विकास योजनाओं का भी उसको लाभ मिलेगा।
उपरोक्त सभी स्थितियों का सामना करते हुए इंडिया गठबंधन यदि भाजपा को लोकसभा के चुनावों के दौरान प्रभावी ढंग के साथ टक्कर देना चाहता है तो उसको जहां सीटों के विभाजन का काम जल्द से जल्द पूरा करना पड़ेगा, वहीं इंडिया गठबंधन द्वारा अपना चुनावी एजेंडा भी जल्द से जल्द लोगों के सामने पेश करना पड़ेगा। लोकसभा चुनावों के लिए प्रचार प्रसार करने और चुनावों संबंधी गतिविधियों के लिए अन्य तैयारियां को भी जल्द से जल्द पूरा करना पड़ेगी। देश की मौजूदा राजनीतिक स्थितियां मांग करती हैं कि विपक्षी दल इकट्ठे हों और लोकतंत्र, धर्म निर्पेक्षता तथा संघीय ढांचे को मज़बूत करने के लिए अपना प्रभावी रोल अदा करें। यदि देश में विपक्षी दल कमजोर होंगे तो नि:संदेह देश लोकतंत्र से दूर होता जाएगा क्योंकि विपक्षी दल ही हर सत्तारूढ़ पार्टी को लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाये रखने के लिए मजबूर कर सकते हैं।