एक प्रतीक की पराजय है बजरंग पूनिया का पद्मश्री लौटाना 

नई दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (पीसीआई) में 21 दिसम्बर, 2023 को मेज़ की एक तरफ साक्षी मलिक, विनेश फोगट व बजरंग पूनिया बैठे थे, दूसरी तरफ पत्रकारों की भीड़ थी। मेज़ पर दर्जनों माइक्रोफोन्स के अलावा एक कोने में सफेद फीतों वाले हल्के नीले रंग के रेसलिंग बूट्स भी रखे थे। इन जूतों को पहनकर ही 31 वर्षीय साक्षी मलिक ने 17 साल की उम्र में अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय पदक जीता था। 2009 एशियन जूनियर चैंपियनशिप्स के 59 किलो फ्रीस्टाइल वर्ग में रजत पदक। प्रेस कांफ्रैंस में यह जूते खामोश रहते हुए भी अपनी उपस्थिति से माइक्रोफोन्स में बोले गये हज़ारों शब्दों से भी अधिक ‘बोल’ गये। वे कह रहे थे कि भारत की महिला पहलवानों ने राजधानी की सड़कों पर इंसाफ के लिए एक साल से जो लड़ाई हिम्मत व ‘दिल से लड़ी’ उसे वह हार गईं हैं। देश की एकमात्र ओलम्पिक पदक विजेता (2016 रियो में कांस्य पदक, 58 किलो वर्ग) महिला पहलवान साक्षी मलिक समय-पूर्व कुश्ती से रिटायर हो गई हैं) और इस सबके लिए उन सभी की चुप्पी ज़िम्मेदार है, जिन्होंने पदक लाते समय तो इन महिला पहलवानों का ट्वीट व स्वागत समारोह से जश्न मनाया था (साक्षी के गांव में कुश्ती स्टेडियम बनाने के वायदा भी किया था जो आज तक आधा-अधूरा पड़ा है), लेकिन जब इन्हें इंसाफ दिलाने की बात आयी तो सब पीछे हट गये। 
इस प्रेस कांफ्रैंस से कुछ घंटे पहले नई दिल्ली स्थित भारतीय ओलम्पिक संघ (आईएओ) के भवन में 50 मतदाताओं (जिनमें से तीन अनुपस्थित थे—मध्य प्रेदश के मुख्यमंत्री मोहन यादव, उत्तराखंड के नव प्रभात व चंडीगढ़ के राजेश शर्मा) ने भारतीय कुश्ती संघ के नये 15 पदाधिकारियों का चयन किया था, जिनमें से 13 भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के कैम्प से हैं, जिन पर महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न व शोषण के गंभीर आरोप लगाये हैं। बृजभूषण के 30 साल से व्यापारिक भागीदार व विश्वासपात्र संजय कुमार सिंह उर्फ बबली को भारतीय कुश्ती संघ का अध्यक्ष चुना गया है, जिन्होंने अनीता शिरोण को पराजित किया। अनीता राष्ट्रकुल खेलों की कुश्ती स्पर्धा में स्वर्ण पदक विजेता हैं और बृजभूषण के विरुद्ध यौन उत्पीड़न मुकद्दमे में मुख्य गवाह। ..तो यह एक तरह से बृजभूषण की ही जीत है, उन्हीं के हाथ में भारतीय कुश्ती संर्घ का प्रॉक्सी नियंत्रण रहेगा। हालांकि इस चुनाव का नतीजे पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में हरियाणा कुश्ती संघ के रोहतास सिंह द्वारा दायर लिखित याचिका के फैसले पर निर्भर है, जिसके तहत चुनौती दी गई है कि बृजभूषण समर्थित हरियाणा एमेचोर रेसलिंग एसोसिएशन को भारतीय कुश्ती संघ चुनाव में मतदान का अधिकार नहीं हैं, लेकिन फिलहाल इंसाफ हेतु संघर्ष कर रहे पहलवानों को तगड़ा झटका लगा है। भारतीय कुश्ती संर्घ चुनाव नतीजों के विरोध में बजरंग पूनिया ने अपना पद्मश्री सम्मान लौटा दिया है। 
टोक्यो ओलम्पिक के कांस्य पदक विजेता बजरंग 22 दिसम्बर, 2023 की शाम को कुछ अन्य पहलवानों के साथ प्रधानमंत्री के पास अपना पदमश्री पदक लौटने के लिए गये जोकि उन्हें 2019 में दिया गया था। दिल्ली पुलिस ने उन्हें इंडिया गेट के निकट कर्त्तव्य पथ पर ही रोक लिया और उन्हें लोक कल्याण मार्ग स्थित प्रधानमंत्री के निवास तक नहीं जाने दिया। इसलिए बजरंग ने अपना पद्मश्री पदक वहीं फुटपाथ पर रखा, प्रधानमंत्री के नाम एक पत्र के साथ और वापस लौट गये। विश्व में प्रथम रैंकिंग प्राप्त करने वाले बजरंग भारत के एकमात्र पहलवान हैं, किसी भी भार वर्ग में। विश्व चैंपियनशिप्स में भी चार पदक जीतने वाले वह पहले भारतीय हैं और इसके अतिरिक्त उन्होंने एशियन व राष्ट्रकुल खेलों में दो-दो पदक, एशियन चैंपियनशिप में 8 पदक और अंडर-23 विश्व चैंपियनशिप में एक पदक जीता है। इसलिए उन्हें मेजर ध्यानचंद खेल रत्न (2019) व अर्जुन अवार्ड (2015) से भी सम्मानित किया गया। देश का इतना मान बढ़ाने वाले पहलवान की बात भी अगर सरकार नहीं सुन रही है, तो इसमें अधिक दोष उस जनता का है, जो संघर्ष व ज़रूरत के समय अपने नायकों के साथ खड़ी नहीं होती है, खामोश रहती है। दोष उस केंद्रीय मंत्री का भी है, जिसने पहलवानों को अपने पदक गंगा में प्रवाहित करने से रोकते हुए उन्हें इंसाफ दिलाने का आश्वासन दिया था। बजरंग ने अपने पत्र में लिखा है, ‘खेलों ने हमारी महिला खिलाड़ियों का सशक्तिकरण किया है और उनके जीवन को बदला है, लेकिन अब स्थिति यह है कि जो महिलाएं ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की ब्रांड एम्बेसडर हो सकती थीं, वह खेल छोड़ रही हैं और हम पुरस्कृत पहलवान कुछ नहीं कर पा रहे हैं। जब महिला पहलवानों का अपमान हो रहा हो तो मैं पदमश्री के तौर पर अपना जीवन व्यतीत नहीं कर सकता। इसलिए यह अवार्ड मैं आपको लौटा रहा हूं।’ 
इतने बड़े स्पोर्ट्स आइकॉन की इस बात पर ‘भूचाल’ आ जाना चाहिए था, लेकिन ऊपर से नीचे तक की खामोशी व संवेदनहीनता हैरत में डालती है। भारतीय कुश्ती संघ के चुनाव से कुश्ती की ग्लोबल संस्था यूनाइटेड वर्ल्ड रैसलिंग से लीगल मुद्दे तो समाप्त हो जाते हैं, लेकिन एक साल से हंगामे के जो महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, वह अपनी जगह यथावत हैं। दिल्ली पुलिस ने पाया है कि बृजभूषण के विरुद्ध जो यौन उत्पीड़न करने के आरोप हैं, वह मुकद्दमा करने योग्य हैं। इसका अर्थ यह है कि इस साल जनवरी में जिन पहलवानों ने सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन करने का जो असाधारण कदम उठाया था, उनके पास केस का मज़बूत आधार था, लेकिन पुलिस की जांच कछुआ की रफ्तार से चल रही है। 
साक्षी मलिक उन सात भारतीय महिलाओं में से एक हैं, जिन्होंने व्यक्तिगत ओलम्पिक पदक जीता है। वह जवाबदेही की मांग करने वाले प्रदर्शनों में पेश पेश थीं। भारतीय कुश्ती संघ के चुनावी नतीजों ने उन्हें इतना हताश किया कि उन्होंने कुश्ती को ही अलविदा कह दिया और बजरंग ने अपना पद्मश्री लौटा दिया। इस पृष्ठभूमि में यह परेशान करने वाला प्रश्न है कि क्या वर्तमान पॉवर संरचना महिलाओं में पर्याप्त विश्वास प्रेरित करेगी, उन महिलाओं में भी जिन्होंने देश का मान बढ़ाया? बृजभूषण का दिल्ली निवास भारतीय कुश्ती संघ का कार्यालय भी बना हुआ था, जिससे स्पष्ट होता है कि देश में खेल संघ गैर-पेशेवर तरीके से चलाये जाते हैं। भारतीय कुश्ती संघ के एक अन्य चुनाव से यह प्रश्न अब भी शेष है— यौन उत्पीड़न की शिकायत करने वाली महिला खिलाड़ियों के लिए क्या कभी स्थितियां बदलेंगी?

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर