कुरूप होते चेहरे की पहचान

बन्धु, जीवन देखते ही देखते कितना बदल गया है। पिछले युग में पड़ोसी की लड़की अपने मनचाहे प्रिय के साथ भाग जाती थी, तो अक्षम्य अपराध हो जाता था। गांव गली में परिवार का सिर नीचा हो जाता। बात और बढ़ती तो बिरादरी में थू-थू भी हो सकती थी।
लेकिन अब तो जीवन बदल गया है, बन्धु! लड़का-लड़की जवान हो जायें, और अपने पुश्तैनी मूल्य ठुकरा कर घर से भागें नहीं, तो कहते हैं, भई यहां क्या हुआ? इन्हें बदलते ज़माने की हवा भी नहीं लगने दी। घर में जाने की सूचना की चिट्ठी लिख कर लड़की किसी का हाथ थाम कर चल दे, तो मां-बाप का सीना धक्क नहीं रह जाता। अगर अध्यापक का घर हो, तो बाप चिट्ठी को पुलिस के हवाले करने की बजाय ध्यान से पढ़ने लगता है कि बिट्टो इस चिट्ठी में भी भाषा की कितनी अशुद्धियां कर गई? बचपन में इसे कहता था पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान दे। वह तो किया नहीं, अब भागी भी तो चार पंक्तियां सूचना पत्र में शुद्ध भी न लिख सकी।
अब पुलिस वालों को कैसे सूचना दे? थाने का मुंशी कहता है, भई साबित करो, लड़की नाबालिग है। बालिग लड़की बालिग लड़के के साथ चली गयी, तो कोई मामला नहीं बनता। सोचो कि चलो पिंड छूटा। नहीं तो पहले लड़का ढूंढते, उनके घर वालों के सौ नखरे सुनते, फिर शादी-ब्याह के समारोह पर अपना जमा जत्था लगा कर कज़र्दार होते। अब लो मुफ्त में ही पिंड छूट गया। भई हो सके तो शादी के लिये जो कुछ जोड़ कर रखा है, उसी से हमारी जेब गर्म करवा जाओ। सर्दी के मौसम में बहुत खाली-खाली बड़ी ठण्डी सिहरन पैदा करती है, पुलिस वाला कहता है।
अब इन्हें क्या कहें? अव्वल तो यहां एफ.आई.आर. दर्ज नहीं होती। दर्ज हो जाये, तो तलाश करने वाले को क्या, उनके रजिस्टर को ही पहिये नहीं लगते। ऐसे धूल भरे रजिस्टर साल-दर-साल वहां पड़े रहते हैं। इधर कानून के अलम्बरदार अपनी संख्या कम होने का रोना रोते हैं। अपराध अधिक हैं और उन्हें नियन्त्रण करने वाले कम। क्या कानून की हालत बेहतर बनाने के लिए यह अधिक सही नहीं कि कानून ही बदल डालो? जो पहले अपराध था उसे ज़माने का चलन बता कर उपेक्षित कर दो।
उधर जात-बिरादरी की क्या कहें? पहले लड़की भागती थी तो परिवार का सिर नीचा हो जाता। अब भागती है तो पूछते हैं, भई किसके साथ भागी। अगर भागने वाला प्रवासी है, और उसे ‘डौंकी’ बना कर विदेश ले जा सकता है, तो कह देते हैं कि ‘भाई तेरा तो दांव लग गया। कोई और ऐसा ही लड़का नज़र में हो तो हमें भी बता देना। हमारी भी जवान-जहान घर में बैठी सीने पर मूंग दल रही है।’
आजकल जीने के अन्दाज़ बदल गये हैं, प्रिय! जो घर से भागे हैं वे ज़रूरी नहीं कि शादी ही करवा लें बल्कि आजकल तो साथ रह कर अपनी रातें जीने का चलन कानून-सम्मत हो गया। इसे ‘लिव इन रिलेशन’ कहते हैं ‘जब तक लिव कर सको तो रिलेशन रखो, नहीं तो तू अपनी राह जा और मैं अपनी राह।’
वह ज़माना पुराना था, जब कहते थे हम तो सात जन्म साथ निभायेंगे। ब्याह के बन्धन की यह अटूट डोरी मरते दम तक न टूटेगी। अब तो पार्टी डिनर में यही सवाल हवा में उड़ते हैं, ‘तेरा ब्रेकअप हो गया क्या? तेरा एक्स किसी और के साथ देखा था।’
अर्थात एक्स हो भी जाये तो ज़रूरी नहीं कि बिल्कुल ब्रेकअप। कभी-कभी पुरानी यादों को ताज़ा करने के लिए फिर मुलाकात हो सकती है। यह गाना तो गलत  हो गया न बन्धु, ज़िन्दगी के स़फर में गुज़र जाते हैं जो मुकाम वह फिर नहीं आते।’ अब तो कई-कई मुकाम एक साथ भी चल सकते हैं।
आप कहेंगे यह कैसा अधोपतन है। हमारे गले नहीं उतरता रिश्तों का यूं संवेदनहीन होकर गले में किसी बोसीदा अतीत की तरह निष्प्राण लटके रहना। कितना नकारें इन्हें। अपने आदर्शों, सांस्कृतिक गौरव को आवाज़ दो। कहो हम तो विश्व गुरु हैं, लेकिन क्या यही गरिमा है तुम्हारे उभरते संवरते समाज की?  इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिलता। बस एक ही कसैला सत्य हमारे वातायनों से झांकता है, कि जिन बातों पर हम बीते युग में हतप्रभ हो जाते थे, अब वे बातें न करें तो हतप्रभ हो जाते हैं।
मुहाविरों और भाषा ने अपने मिज़ाज बदल लिये हैं। जो चोर है, उसे चतुर भी होना चाहिये, कि जैसे जो पुलिस वाला यातायात नियन्त्रण पर लगा है, उसका अर्थ है चौकों में जमघट और लोगों को पकड़-पकड़ कर चालान काटना। कहा था, दफ्तर में धक्के नहीं खाओगे। वह चल कर आपके द्वारा आयेगा, लेकिन उसकी अगवानी के लिये अपनी दहलीज पर सिक्कों की झलक से चुंधियाते मायादर्पण तैयार रखना नहीं तो दफ्तर रास्ता भूल जायेगा।
लेकिन इसके बावजूद शान से जीना है तो गाल बजाना सीख लो। अपनी उपलब्धियों के प्रति वाचाल हो जाओ। उनके बारे में जिन्होंने कभी तुम्हारी गली का रुख भी नहीं किया, लेकिन हमारी गली का रुख तो उन क्रांति पुरुषों ने भी नहीं किया, जो हमारे मतों के मीनार पर अपना कायाकल्प कर देने का वायदा रख गये थे। सुनो, जब-जब चुनाव दुंदुभि बजती है, इसमें सुगबुहाट होने लगती है इसलिये इसे निष्प्राण न जानो। यह ज़िन्दा है, तुम्हारी इस नई बदली ज़िन्दगी की तरह।