खेत-खलिहान के प्रयोगधर्मियों को प्रोत्साहन दिया जाए

बदलते सिनेरियों में सरकार को अब विश्वविद्यालयों की बड़ी बड़ी और संसाधनयुक्त प्रयोगशालाओं से अलग खेत को ही प्रयोगशाला बनाकर अपनी मेहनत, नवाचारी, परम्परागत और आधुनिकतम खेती के बीच सामंजस्य बनाते हुए नित नए प्रयोग करने वाले प्रयोगधर्मी किसानों की मेहनत को मान्यता, संरक्षण और पहचान देने की पहल भी करनी होगी। इसमें कोई दो राय नहीं की देश के कृषि विश्वविद्यालयों में शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में विश्व स्तरीय कार्य हो रहा है और आज खेती-किसानी के क्षेत्र में देश नित नए आयाम स्थापित कर रहा है। कृषि के क्षेत्र में भारत आज अग्रणी देश बन गया है। हालात यह हो गए हैं कि आज गेहूं और धान के निर्यात पर रोक के बावजूद देश के किसानों की ही मेहनत का फल है कि बागवानी व अन्य कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाकर देश निर्यात के नए कीर्तिमान स्थापित करने की और अग्रसर है। यह नहीं भूलना चाहिए कि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के कारण जहां गेहूं, धान आदि के उत्पादन के हालात सेचुरेशन वाले हो गये हैं, वहीं भूमि की उर्वरा शक्ति प्रभावित होने के साथ ही पानी का अत्यधिक दोहन, स्वास्थ्य और सेहत के लिए हानिकारक होता जा रहा है। आज देश जैविक व परम्परागत खेती की और बढ़ रहा है। हालांकि यह भी उपलब्धि है कि दुनिया में हमारा सिक्किम दुनिया में पहले नम्बर पर जैविक अनाज उत्पादक प्रदेश बन गया है। खैर इस सबके बीच हमें उन प्रयोगधर्मी भूमिपुत्रों को प्रोत्साहित और उनकी मेहनत को संरक्षित और आगे बढ़ाने के लिए आगे आना होगा जो अपने सीमित साधन, संसाधन और विपरीत वित्तीय परिस्थितियों के बावजूद नई इबारत लिख रहे हैं। सही मायने में देखा जाये तो इन प्रयोगधर्मी अन्नदाताओं की मेहनत व लगन को किसी कृषि वैज्ञानिक से कम नहीं आंका जा सकता। 
देश के अनेक प्रयोगधर्मी भूमिपुत्रों में से ‘अपनी खेती-अपना खाद, अपना बीज-अपना स्वाद’ को ध्येय बनाकर उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के टडिया गांव के किसान वैज्ञानिक प्रकाश सिंह रघुवंशी ऐसे ही देश कुछ चुनिंदा खेतों को ही प्रयोगशाला बनाकर जुटे हुए हैं। सच ही कहा गया है कि ईश्वर किसी ना किसी तरह से न्याय अवश्य करता है। इसी का जीता जागता उदाहरण प्रकाश रघुवंशी है। 23 साल की आयु में बीमारी के दौरान पेनिसिलिन के इंजेक्शन के दुष्प्रभाव से आंखों पर अधिक असर पड़ने के कारण आंखों की परेशानी के कारण खेत और खेती को ही प्रयोगशाला बनाकर प्रकाश ने जो नवाचार और प्रयोग किए, आज उन्हें संरक्षित करने की अधिक आवश्यकता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार निकट भविष्य में श्री प्रकाश को पूरी तरह से दिखाई देना बंद होने की संभावना के एहसास के डर से लग रहा है कि ऐसी विकट स्थिति आई तो कृषि क्षेत्र में उनकी शोध यात्रा थम जाएगी। उन्हें चिन्ता है कि गेहूं, अरहर, सरसों आदि की उनके द्वारा विकसित कुदरत और करिश्मा प्रजाति के बीज और 200 प्रकार के देसी बीजों के खज़ाने का क्या होगा। 
श्री प्रकाश ने नित नए प्रयोग करते हुए 200 प्रकार की देशी वैरायटी के बीज विकसित किए हैं। इनमें गेहूं की 80 प्रजाति, धान की 20 प्रजाति, अरहर की 5 प्रजाति, सरसों की 3 प्रजाति सहित हमारी जलवायु और वातावरण में अच्छी, जल्दी पकने वाली देशी प्रजातियों को विकसित करने का अहम काम किया गया है। गेहूं कुदरत-9 और कुदरत-8 विश्वनाथ लम्बी बाली वाला होता है। एक बाली में 80-90 दाने होते हैं। तेज पानी, हवा से पौधा गिरता नहीं। उत्पादन क्षमता 25 से 30 क्ंिवटल प्रति एकड़ है। दाना मोटा, चमकदार और वजनदार होता होता है। खास बात यह है कि देश के कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा किए जा रहे दावों को जांचा-परखा गया है और गुणवत्ता पर खरे उतरे हैं। देश के कई हिस्सों में खासतौर से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, पंजाब हरियाणा आदि में 100, 50, 25 ग्राम के सैंपल्स उपलब्ध करवा कर प्रयोग किया गया है और यह प्रयोग सफल रहा है। अब श्री प्रकाश की चिंता यही है कि इन स्वदेशी बीजों का बैंक बन जाए तो इनका उपयोग, उत्पादन और संरक्षण का काम हो सकेगा। इसका लाभ अंततोगत्वा देश के कृषि क्षेत्र को ही मिलेगा। 
श्री प्रकाश के बहाने यहां चिंतनीय और विचारणीय स्थिति यह हो जाती है कि देश के ऐसे भूमि पुत्रों को राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जाना ही प्रर्याप्त नहीं है। सम्मान अपने आप में मायने रखता है, परन्तु इनकी मेहनत और प्रयोग को जब उपादेय माना जाता है तो उसके संरक्षण और संवर्द्धन किया जाना चाहिए। मेरा मानना है कि केन्द्र व राज्य सरकार के कृषि मंत्रालयों को ऐसे नवाचारी, अपनी धुन में मस्त, मानव समाज और कृषि जगत के लिए किये जा रहे कार्यों को पहचान के साथ ही प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। बल्कि होना तो यह चाहिए कि मंत्रालयों में एक अनुभाग ऐसा होना चाहिए जो केवल ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करने, उन्हें सहयोग करने, आवश्यकतानुसार संसाधन उपलब्ध कराने और परीक्षण के बाद खरी उतरने वाले प्रयोगों को सरकार द्वारा अपने हाथ में लेकर आगे बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिए।     -मो. 94142-40049