पर्यावरण परिवर्तन पर हुई बैठक के मायने

दुबई में पर्यावरण पर हुई बैठक यानी सी.पी.ओ.-28 में काफी गम्भीर बहस की उम्मीद थी लेकिन निराशा ही हाथ लगी। यह बैठक एक तमाशा होकर ही रह गई, जिसे देख कर कुछ विद्वान मित्रों ने अपना मत फोन पर बताया। वह यह कि दुनिया के नेताओं को अब लगने लगा है कि पूरी दुनिया के बसने के लिए एक दूसरी पृथ्वी उपलब्ध हो गई है। वहां के लिए उड़ानें जल्द ही शुरू हो जाएंगी। टिकटें बुक होंगी। सभी दूसरी पृथ्वी पर चले जाने वाले ही हैं। पिछले तीन-चार साल से पूरी दुनिया जब पर्यावरण की आपदाओं से टूट बिखर रही है तो सरकारों ने कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य पर सहमत होने की जगह दुबई की बैठक का चक्कर लगा कर ‘सब ठीक है’ मान लिया लगता है। लोग भूले नहीं होंगे जब 2009 में रोनाल्ड इमोरिच की एक फिल्म आई थी-2012। उस फिल्म में पर्यावरण की आपदाओं से दुनिया की तबाही की कल्पना को चित्रित किया गया था। सरकारों को पता होता है कि यह प्रलय कब आयेगी। वे अपने खास लोगों के लिए एक विशाल जहाज तैयार करवाते हैं। इस जहाज़ में प्रमुख जानवरों, फसलों, भवन निर्माण समग्रियों, तकनीकों, बिजली बनाने वाले संयंत्रों आदि को जुटा लिया जाता है। प्रलय के समय यह विशाल जहाज दुनिया के खास नेताओं, अमीरों को बचाकर नई दुनिया की तरफ ले जाता है। यह प्रतीक बाइबल की प्रसिद्ध कहानी ‘नोहाज आर्क’ यानि नूह की नाव से प्रेरित था। इस कहानी में ईश्वर पृथ्वी पर मनुष्यों की दुष्टता से चिढ़ कर प्रलय लाते हैं,  इससे पहले नूह से वे एक नाव बना कर नई सृष्टि के लिए ज़रूरी सामान जुटाने को कहते हैं। जयशंकर प्रसाद की ‘कामायनी’ में भी खण्ड प्रलय का ज़िक्र है। इस ग्रंथ का आरम्भ ही खंड प्रलय से होता है। जिस यू.ए.ई. ने यह मेला जुटाया था, उसे पर्यावरण को गरमाने वाली गैसों (ग्रीन हाऊस गैस) के उत्सर्जन का चैम्पियन माना गया है। सम्मेलन की मेजबानी आबूधाबी आयल कम्पनी का दूषित गैस उत्सर्जन 2021 से 2022 के बीच 1.5 प्रतिशत से बढ़ कर 7.5 प्रतिशत हो चुका है। यह तथ्य जब बैठक में खुल गया तो यू.ए.ई. के सुल्तान भड़क उठे। उन्होंने कार्बन उत्सर्जन के विज्ञान को ही गलत ठहरा दिया। फिर भारत और चीन जैसे देश तो पर्यावरण की त्रासदी से त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। उन्होंने कह दिया कि उन्हें तो कोयला पसंद है। सवाल यह भी है कि दुनिया के नेता दुबई में अपने भाषण देकर प्रस्थान क्यों कर गये? कार्बन घटाने पर  कोई मजबूत सहमति क्यों नहीं बन पाई? क्या यह कोई साधारण-सा मामूली विषय था? वजह यह है कि दुनिया के रखवालों को जानबूझ कर इस दुनिया के भविष्य को तूफानों, चक्रवातों, सूखे, भूस्खलन के हवाले कर दिया है। संदेश है कि जिंदा मक्खी को कैसे निगला जाये? मगर सरकारें जैसे पूरा मगरमच्छ निगल जाने को तैयार बैठी हों? इस सम्मेलन पर जो रिपोर्ट आई वह सरकारों की वायदा खिलाफी का पूरा चिट्ठा बयान करती है। इस रिपोर्ट को दुनिया भर पर संकट के भविष्य का पूरा मानचित्र समझा जा सकता है।
2015 में पेरिस में दुनिया के बीच इस बात पर सहमति बनी थी कि तापमान में बढ़ोतरी को औद्योगिक क्रांति के पहले की तुलना में अधिकतम 1.5 प्रतिशत पर रोकने का लक्ष्य था। इसके लिए 2025 तक ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन कम होना शुरू किया जाना था। 2030 तक इसे 43 प्रतिशत कम किया जाना था।