इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को लेकर फिर चिंताएं आईं सामने

ईवीएम को लेकर चिंताएं फिर से सामने आ गयी हैं, क्योंकि पुरानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें (ईवीएम) अभी भी बड़ी संख्या में उपयोग में हैं, नयी ईवीएम जो वोटर वेरिफाइएबल पेपर ऑडिट ट्रायल (वीवीपीएटी) पेपर रिकॉर्ड के साथ आते हैं, पर्याप्त और व्यापक रूप से इस्तेमाल में नहीं हैं और यहां तक कि सभी वीवीपैट भी गिनकर डाले गये मतों से मिलान नहीं किये जाते। इसलिए छेड़छाड़ और भेद्यता से इन्कार नहीं किया जा सकता है और कुछ समय पहले भी एक शोध पत्र में लोकसभा चुनाव परिणाम-2019 में ‘अनियमित पैटर्न’ पाया गया था।20 दिसम्बर, 2023 को आयोजित ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक में 28 विपक्षी राजनीतिक दलों ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की कार्यप्रणाली की विश्वसनीयता के बारे में संदेह व्यक्त करते हुए एक प्रस्ताव भी पारित किया था और मांग की थी कि वीवीपैट पर्चियां मतदाताओं को सौंपी जायें और उनकी 100 प्रतिशत गिनती बाद में की जाये,  ताकि लोगों को पता चले कि उनकी वोटों में हेराफेरी नहीं हुई है।
‘इंडिया’ गठबंधन के घटक राजनीतिक दलों ने पारित प्रस्ताव में यह भी आरोप लगाया था कि ईवीएम के डिज़ाइन और संचालन पर कई विशिष्ट प्रश्नों के साथ भारत के चुनाव आयोग को एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा था। हालांकि, दुर्भाग्य से चुनाव आयोग उस ज्ञापन पर ‘इंडिया’ के प्रतिनिधिमंडल से मिलने में अनुच्छुक रहा है। प्रस्ताव में आरोप लगाया गया कि चुनाव निकाय ने अभी तक उनकी चिंताओं का जवाब नहीं दिया है।
याद दिला दें कि कुछ महीने पहले ही अगस्त 2023 में अशोका यूनिवर्सिटी के एक असिस्टेंट प्रोफेसर सब्यसाची दास ने ‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में डेमोक्रेटिक बैकस्लाइडिंग’ शीर्षक से एक शोध पत्र में मैकक्रेरी टैस्ट के परिणाम के आधार पर कहा था, ‘जबकि परिणाम मौजूदा पार्टी भाजपा के पक्ष में चुनाव परिणामों में संभावित हेरफेर के अनुरूप है, यह एकमात्र व्याख्या नहीं है। वैकल्पिक रूप से, यह हो सकता है कि सत्तासीन होने के नाते भाजपा जीत के अंतर पर ‘सटीक नियंत्रण’ रखने में सक्षम थी, यानी वह जीत के अंतर का सटीक अनुमान लगाने में सक्षम थी, खासकर उन निर्वाचन क्षेत्रों में जहां करीबी मुकाबला होने की उम्मीद थी और इसे प्रभावित करने में सक्षम थी, जो चुनावी प्रचार में इसके तुलनात्मक लाभ और संसाधनों तक अधिक पहुंच के कारण संभव था।’
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने अपने ट्वीट में मांग की थी,  ‘अगर चुनाव आयोग औरध्या भारत सरकार के पास इन तर्कों का खंडन करने के लिए कोई जवाब उपलब्ध है तो उन्हें उन्हें विस्तार से देना चाहिए।’ दूसरी ओर अशोका यूनिवर्सिटी ने स्वयं को इस विवाद से अलग कर लिया था। 
हालांकि सवाल बना हुआ है कि क्या 2019 के चुनाव परिणामों में हेरफेर या नियंत्रण किया गया था? भारत के चुनाव आयोग द्वारा पुराने और नए ईवीएम मशीनों के माध्यम से सम्पूर्ण मतदान और गिनती प्रणालियों पर और रहस्य पैदा करने का सवाल अनुत्तरित रहा।
विपक्षी गठबंधन की बैठक में सर्वसम्मति से अपनाये गये प्रस्ताव में कहा गया, ‘हमारा सुझाव सरल है,  मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) पर्ची को बॉक्स में डालने के बजाय इसे मतदाता को सौंप दिया जाना चाहिए जो अपनी पसंद को सत्यापित करने के बाद इसे एक अलग मत पेटी में रखेगा। वीवीपैट पर्चियों की शत-प्रतिशत गिनती की जानी चाहिए।’ यह भी कहा गया, ‘इससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में लोगों का पूर्ण विश्वास बहाल होगा।’
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि लोकसभा चुनाव के मामले में परिणाम घोषित करने से पहले प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र या प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के केवल पांच चयनित मतदान केंद्रों की वीवीपैट पर्चियों का अनिवार्य सत्यापन किया जाता है।
ईवीएम के संबंध में मुख्य चिंताओं में पेपर ट्रेल की कमी शामिल है, जिससे किसी भी छेड़छाड़ या हेराफेरी को साबित करना मुश्किल हो जाता है। नये ईवीएम वीवीपीएटी के साथ आते हैं जो कागज़ी रिकॉर्ड प्रदान करते हैं, लेकिन उन सभी की गिनती नहीं की जाती है और उन्हें अभी भी पुराने ईवीएम को प्रतिस्थापित करना बाकी है।
ईवीएम में छेड़छाड़ और कमज़ोरियों के आरोप लगते रहे हैं और कई मामलों में अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी की गयी है। हालांकि यह आरोप खत्म नहीं हो रहा कि मतदान परिणामों में हेरफेर करने के लिए चुनाव से पहले, दौरान या बाद में ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है। हैकिंग या बाहरी इलेक्ट्रॉनिक वायरलेस हस्तक्षेप के प्रति ईवीएम की संवेदनशीलता भी लम्बे समय से गम्भीर चिंता का विषय रही है। ईवीएम के निर्माण, भंडारण और परिवहन के संबंध में भी प्रश्न अनुत्तरित हैं, क्योंकि छिट-पुट खबरों से लोगों में संदेह पैदा होता है जो पारदर्शिता की कमी का संकेत देता है। डिजिटल विभाजन एक और मुद्दा है जिसे ईवीएम के संभावित दुरुपयोग के खिलाफ  उठाया जाता है जब अशिक्षित वोटरों को इसका उपयोग करने में कठिनाई होती है।
हालांकि चुनाव आयोग ने आश्वासन दिया है कि प्रत्येक चुनाव से पहले और बाद में स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा ईवीएम का पूरी तरह से परीक्षण और सत्यापन किया जाता है और मशीनें हैकिंग या हेरफेर के प्रति संवेदनशील नहीं हैं, लेकिन चुनाव निकाय विपक्षी राजनीतिक दलों की चिंताओं का जवाब नहीं दे रहा है और उठाये गये सवालों का भी जवाब नहीं दे रहा है, जो रहस्यमय बात है।
यद्यपि विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन द्वारा नये ईवीएम के साथ वीवीपीएटी कार्यान्वयन और 100 प्रतिशत गिनती की मांग की गयी है। फिर भी कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि यह हेरफेर के खिलाफ  अचूक नहीं होगा। चूंकि यह केवल सत्यापन की एक अतिरिक्त परत होगी, इससे अधिक कुछ नहीं।
इस पृष्ठभूमि में ‘इंडिया’ गठबंधन ने एक पूर्ण पेपर ट्रेल या स्वतंत्र ऑडिट शुरू करने की मांग की है, जो भारत में 1982 में ईवीएम की शुरुआत के बाद कभी नहीं किया गया है, जबकि देश में सभी राष्ट्रीय और राज्य चुनावों में ईवीएम का उपयोग 2004 से ही किया जा रहा है।‘इंडिया’ गठबंधन ने 9 अगस्त, 2023 को भारत के चुनाव आयोग को एक ज्ञापन सौंपा था, जिसमें ईवीएम के बारे में अपनी चिंताओं का विवरण दिया गया है। हालांकि चुनाव आयोग से कोई उचित प्रतिक्रिया नहीं मिलने के बादए गठबंधन ने 20 दिसम्बर को एक नया प्रस्ताव पारित किया है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने इस संबंध में 30 दिसम्बर को चुनाव आयोग को एक और पत्र भेजा है और उन्हें प्रतिक्रिया का इंतजार है।(संवाद)