संकट में घिरी ‘आप’

आम आदमी पार्टी के संयोजक तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने इन्फोर्समैंट डायरैक्टोरेट (ई.डी.) की ओर से तीसरी बार बुलाये जाने पर भी पेश होने से इन्कार कर दिया है। जहां वह स्वयं को पूरी तरह ईमानदार तथा साफ-स्वच्छ बता रहे हैं, वहीं विपक्षी दल उन्हेें घोटालों का चैम्पियन कह रहे हैं। तीसरी बार ई.डी. के सम्मन मिलने पर उन्होंने इन सम्मनों को गैर-कानूनी तथा राजनीति से प्रेरित बताया है। दूसरी तरफ पंजाब में भी उनकी सरकार है। यहां भगवंत मान मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने सही ढंग से प्रदेश का प्रशासन तो क्या चलाना है, अपितु प्रतिदिन वह विपक्षी दलों के नेताओं या सरकार का विरोध कर रहे व्यक्तियों को विजीलैंस के नोटिस भिजवाने अथवा उन्हें जेलों में डालने का काम ही अधिकतर करते दिखाई दे रहे हैं।
विगत दो वर्ष में उन्होंने दर्जनों बड़े-छोटे नेताओं को जेल में डाला है परन्तु दूसरी तरफ जब उनकी पार्टी के किसी मंत्री या कार्यकर्ता पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं तो आम आदमी पार्टी के नेता उठे इन विवादों को पूरी तरह झुठलाने अथवा दबाने का यत्न करते हैं। ऐसे विवादों की संख्या दर्जनों में ही बताई जाती है। ईमानदारी का नारा देकर यह पार्टी अस्तित्व में आई थी तथा लोगों में लोकप्रिय हो गई थी। दो राज्यों में इसे प्रशासन चलाने का अवसर भी मिला परन्तु जितने विवाद तथा घोटाले अब तक इस पार्टी के नाम दर्ज हो चुके हैं, उनकी गिनती करना भी कठिन है।
पंजाब में भी जिन वायदों तथा दावों के दम पर इस पार्टी ने सरकार चलानी शुरू की थी, वे न सिर्फ पूरी तरह फ्लाप सिद्ध हुये हैं, अपितु उनकी पूरी तरह पोल भी खुल गई प्रतीत होती है। दिल्ली की तज़र् पर पंजाब में भी स्कूल ऑफ  एमीनैंस, मोहल्ला क्लीनिकों के साथ-साथ शराब संबंधी नीति लागू की गई थी परन्तु इस नीति का हाल यह है कि इसे लागू किये जाने के कुछ समय बाद ही इस संबंध में घोटाले सामने आने लगे तो इसे वापिस लेने की घोषणा करनी पड़ी, परन्तु आज इस मामले में वहां के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया तथा राज्यसभा सांसद संजय सिंह जेल की हवा खा रहे हैं। उससे पहले स्वास्थ्य मंत्री रहे सत्येन्द्र जैन भी लम्बी अवधि से जेल में बंद रहे हैं तथा आजकल ज़मानत पर हैं। पार्टी के एक अन्य बड़े नेता कहे जाते विजय नायर पर भी शराब घोटाले के संबंध में ई.डी. की ओर से सबसे पहले कार्रवाई की गई थी। आज तक अनेक बार अदालतों में जाने के बाद भी  अदालतों से ‘आप’ नेताओं को ज़मानत तक नहीं मिल सकी। अरविन्द केजरीवाल इस घोटाले में अपनी भागीदारी के दृष्टिगत इन्फोर्समैंट डायरैक्टोरेट (ई.डी.) का सामना करने से इन्कारी हो गये प्रतीत होते हैं। यदि यह व्यक्ति स्वयं को इतना ही पाक-साफ समझता है तो उसे सरकारी एजेंसी के समक्ष पेश होने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। यदि किसी तरह के घोटाले संबंधी केस उनके सिर पर पड़े तो वे ़गलत, परन्तु यदि उनकी पार्टी अन्यों के सिर पर झूठे-सच्चे मामले दर्ज करे तो उनके ठीक होने का दावा किया जाता है। आज ऐसी दोगली नीति पूरी तरह सामने आ चुकी है।
इसके साथ-साथ अब दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिकों के संबंध में भी घोटाले सामने आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि इनमें मरीज़ों के फज़र्ी टैस्टों द्वारा निजी लैबोरेट्रियों को करोड़ों रुपये के लाभ दिये गये हैं। इसके साथ ही मरीज़ों की एंट्रियां भी ़गलत दर्ज की गई हैं तथा मरीज़ों के फज़र्ी फोन नम्बरों की बात भी सामने आ रही है। किसी क्लीनिक में चार घंटों में 500 मरीज़ों की जांच किस तरह होती है, इसका जवाब भी दिल्ली सरकार को देना पड़ेगा। इससे पहले जल बोर्ड में भी 500 करोड़ रुपये के घोटाले की बात सामने आ चुकी है, परन्तु इन सभी बातों के संबंध में दिल्ली सरकार तथा आम आदमी पार्टी के नेता स्वयं को बचाने के यत्न में हैं तथा अन्यों पर आरोप लगा रहे हैं, जबकि चाहिए तो यह है कि वे खुल कर स्पष्ट रूप में सभी आरोपों के संबंध में अपना पक्ष एजेंसियों के साथ-साथ जनता की कचहरी में भी रखें। अब जबकि पार्टी सुप्रीमो बुरी तरह से घेरे में आ चुका है तो विपक्षी नेताओं के ऐसे कथनों में भी सच्चाई प्रगट होती है कि पंजाब के मुख्यमंत्री अपने सुप्रीमो को घिरा हुआ देख कर स्वयं आंध्र प्रदेश के शहर विशाखापटनम में आत्म-शुद्धि के लिए चले गये हैं। 
भाजपा विरोधी ‘इंडिया’ फ्रंट  के लिए अब ऐसे हालात में आम आदमी पार्टी को भागादीर बनाये रखना भी मुश्किल हो सकता है। पंजाब में तो इसकी सम्भावनाएं और भी कम हैं। केजरीवाल तो यह दावा कर रहे हैं कि केन्द्र की भाजपा सरकार उन्हें आगामी चुनावों में प्रचार करने से रोकने के लिए जेल में डालना चाहती है परन्तु केजरीवाल तथा उसकी पार्टी के प्रचार का लोगों पर कितना प्रभाव पड़ता है, यह सच विगत मास पांच राज्यों में हुये विधानसभा चुनावों के समय ही सामने आ गया था, जब इस पार्टी को इन चुनावों में आधा प्रतिशत वोट भी मुश्किल से ही मिले थे। मौजूदा समय में तो यह सोचना भी बेहद कठिन प्रतीत होता है कि आगामी समय में यह पार्टी चुनौतियों का सामना कैसे करेगी तथा इसका हश्र क्या होगा?

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द