विश्व में फैल रहा हिन्दी का साम्राज्य

जीवन और जतन में, प्रेम और विरोध में, राग और द्वेष में, विरोध और समर्थन में, संवाद और संबंध में, व्यापार और विनिमय आदि में भी कोई तत्व यदि सहायक है तो वह केवल भाषा है। किसी भी राष्ट्र की अस्मिता और अखंडता में कई कारक उत्तरदायी होते हैं, उनमें से एक कारक उस राष्ट्र का भाषाई ढांचा भी है। भाषा न केवल लोगों के बीच संवाद का माध्यम होती है बल्कि समाज, संस्कृति और जनमानस के बीच समन्वय का केंद्र होती है। यह भी निर्विवाद सत्य है कि भारत ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा वाला राष्ट्र है। इसका अर्थ यह हुआ कि समस्त विश्व एक परिवार है और इसी परिवार के बीच समन्वय का केन्द्र उनके बीच की भाषा है। 
भारत की प्रतिनिधि भाषा के रूप में सर्वमान्य भाषा हिन्दी ही है। कहीं भी भारत का भाषाई परिचय दिया जायेगा तो निश्चित तौर पर वह परिचय हिन्दी से आरम्भ होगा। भारत में जन्मी किन्तु वर्तमान में विश्व के तमाम उन राष्ट्रों में भी जहां भारतवंशी निवास कर रहे हैं, उन सभी देशों में हिन्दी पहुंचने लगी है। आज विश्व के 100 से अधिक देशों में हिन्दी भाषी भारतीय रहते हैं। गर्व इस बात पर भी है कि 50 से अधिक देशों के विश्वविद्यालयों में तो हिन्दी पढ़ाई भी जाती है।
भारत की वैश्विक मज़बूती के साथ ही जनसंख्या की दृष्टि से भी भारत विश्व का सबसे बड़ा राष्ट्र है और जिस राष्ट्र की आबादी अधिक उसका बाज़ार भी सबसे बड़ा माना जाता है क्योंकि उत्पाद की खपत अधिक होती है, उपभोक्ता अधिक होते हैं। जिस राष्ट्र का सबसे बड़ा बाज़ार होता है, उसकी भाषा, संस्कृति और निर्णयों का महत्त्व भी उतना ही अधिक होता है। इस समय भारत के वर्चस्व के बढ़ने से भारत की भाषा यानी हिन्दी की स्वीकार्यता भी विश्व में अधिक हो गई है। विश्व की सबसे बड़ी भाषा के रूप में हिन्दी की स्थापना ने विश्व को हिन्दी के प्रति उदारभाव रखकर सीखने/समझने के लिए मज़बूर भी कर दिया है। जिस तरह अमरीका में काम/काज के लिए अंग्रेज़ी सीखना अनिवार्य है, फ्रांस में कामकाज के लिए फ्रेंच आवश्यक भाषा है, उसी तरह विश्व के किसी भी देश से आने वाले लोग जो भारत में व्यापार, नौकरी या कामकाज करना चाहते हैं, उन्हें हिन्दी की समझ होना अनिवार्य है।
वर्तमान सदी यानी 21वीं सदी भारत और चीन के प्रभाव की स्वीकार्यता का दर्शन करवा रही है। कोरोना जैसी भयावह बीमारी के वैक्सीन का निर्माण भारत ने करके विश्व के अन्य देशों को भी सहायतार्थ उपलब्ध करवाया। हिन्दी विश्व की पहली भाषा बन चुकी है। वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के प्रोफ्रेसर सिडनी कुलबर्ट द्वारा 1970 ई. में इकट्ठे किए गए आंकड़ों के अनुसार हिन्दी विश्व में तीन बड़ी भाषाओं में से एक है, शेष दो भाषाएं चीनी और अंग्रेज़ी। हिन्दी एशिया महाद्वीप की ही नहीं बल्कि विश्व में हिन्दी भाषियों की संख्या वर्तमान में अंग्रेज़ी जानने वालों से भी अधिक बढ़ती जा रही है। प्रो. हरमोहेन्द्र सिंह का कहना है कि अमरीका व कनाडा जैसे देशों में हिन्दी भाषा की उन्नति तथा विकास का मसौदा तैयार कर संसद में अलग से बजट पारित किया गया। अत: विश्व में हिन्दी का स्थान उसकी समाहार शक्ति और विशालता का परिचय है। 
फलस्वरूप हिन्दी भाषियों के कारण भारत का भला ही होगा। शेष हिन्दी मज़बूत हो ही रही है, उसके लिए भारत से मातृभाषा उन्नयन संस्थान ने हिन्दी आन्दोलन भी छेड़ रखा है जो लगातार अन्य देशों में हिन्दी के विस्तार के लिए प्रयास भी कर रहा है और आंशिक सफलता अर्जित भी हुई है। इस तरह सरकार और दूतावास को मिलकर भी भाषा के माध्यम से संस्कृति और सांस्कृतिक संबंधों का ताना-बाना बुनना चाहिए। हिन्दी का लोकव्यापी जयघोष होता रहेगा।