2024 में सामान्य जन के लिए क्या घट सकता है ?

दिन-प्रतिदिन हालात इतने बदल रहे हैं कि भारतीयों के लिए 2024 साल कैसा रहेगा, यह कह सकना काफी कठिन काम है। केवल वर्तमान हालात को देखते हुए कुछ भविष्य की नब्ज़ टटोली जा सकती है। आगे चुनाव आने वाले हैं इसलिए सरकार की यथा सम्भव कोशिश रहेगी कि जनता को किसी बात का बड़ा धक्का न लगे। आम ज़रूरतों की कीमतों में भारी इज़ाफा रुका रह सकता है, परन्तु चुनाव के बाद तेज़ी से उछाल भी देखा जा सकता है। नि:संदेह राज सत्ता के अधिकार असीम होते हैं, लेकिन जो लोग सत्ता पर बैठते हैं, उनकी राजनीतिक और कुछ नैतिक सीमाएं होती हैं। कहने को कह सकते हैं कि राज सत्ता केवल राजनीति से न जुड़ी रहे उसका गहरा संबंध राष्ट्रीयता से होना चाहिए, लेकिन व्यवहारिक स्तर पर इस सूत्र का पालन कठिन कार्य हो सकता है। 2023 साल के अंतिम दिनों तक सरकार ने दालों पर कस्टम ड्यूटी खत्म कर दी। देश में दाल का पर्याप्त स्टाक नहीं होगा यानि आयात ज़रूरी हो जाएगा। 2024 चुनावी साल ठहरा। गारंटियों का शोर जारी रहने वाला है। यश की इच्छा किसे नहीं होती। भारतीय रसोईघरों की अर्थ-व्यवस्था निन्यानवे के दौर में बताई जाती है। यदि कृषि पर कोई बड़ा संकट नहीं आता। करीब पन्द्रह महीनों से अनाज की महंगाई दहाई के अंक में है। रबी और खरीफ की दोनों फसलों पर हम काफी निर्भर रहते हैं। दोनों घट हो चुकी हैं। मगर हमारी थाली को ज्यादा मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा। हालांकि भारत ने पिछले साल गेहूं का निर्यात बंद रखा था। गेहूं के बाद चावल की भी यही दशा रही है। इस साल भी निर्यात बंद कर दिया गया जिसके तहत निर्यातकों को काफी नुकसान उठाना पड़ा। इसके पीछे सोच रही होगी कि विदेश में खाद्य पदार्थ भेजने से अपने यहां अनाज का अभाव न हो जाये, लेकिन दूसरा पक्ष है कि समर्थन मूल्य बढ़ाकर भी बीते दो सालों में खाद्य सुरक्षा भंडार के लिए गेहूं चावल की सरकारी खरीद की दशा ज्यादा अच्छी नहीं रही। इस बीच सरकार ने 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देने की योजना को पांच साल और बढ़ा दिया है। अब भारतीय महंगाई को मात्र आयतित चीज़ों (कच्चा तेल, गैस) आदि से नहीं मापा जा सकता। फिर भी लोगों की जेब पर असर हो रहा है, जिनमें हम आत्म-निर्भर हैं-अनाज के अलावा मसाले, दूध और चीनी। जब गारमेंट, जूते-चप्पल, शिक्षा, दवाई, अस्पतालों का खर्च करना होगा तब लगेगा कि महंगाई का बड़ा हिस्सा स्वदेशी कारण से है। इस तरह की महंगाई से 2024 में भी बन पाना कठिन रहेगा क्योंकि यह प्यास कम होने का नाम नहीं लेगी। विशेषज्ञ बताते हैं कि 2024 में जी.डी.पी. में लार्यस पैराडाक्स का सबसे भव्य नज़ारा दिखेगा। एक तरफ तीन-चार करोड़ सुपर स्पैडर परिवार होंगे।  विमानों की टिकटों, महंगे होटलों, महंगी कारों के लिए इंतजार करना होगा। मगर दूसरी तरफ छिपाते बचाते यह तथ्य भी उभरेंगे कि कार और रियल एस्टेट कम्पनियां छोटी कारों और सस्ते मकानों का बाज़ार समेट लेंगी। कम कीमत वाले स्मार्ट फोन की बिक्री टूटेगी। याद रहे कि इंटरनेट की मांग भी जो 2022 से पहले 4 प्रतिशत सालाना पर थी, 2023 के अंत तक आधी से कम हो गई। लोगों की आय में इज़ाफा होने की सम्भावना कम ही है। 2023 में कुछ अंतर्विरोध भी छुपे हुए हैं। जैसा कि 2022 में निराश करने के बाद 2023 में भारतीय शेयर बाज़ारों ने 20 प्रतिशत का बेहतरीन रिटर्न दिया। बताया गया है कि पिछली चार तिमाही में गिरावट के बाद सितम्बर की तिमाही में कम्पनियों के मुनाफे बढ़े, राजस्व और बिक्री नहीं। कमज़ोर मांग के कारण नया निवेश आरम्भ नहीं हो पाया। स्टार्ट-अप असमंजस में है। फंडिग में 75 प्रतिशत कटौती हुई है। कितने ही स्टार्ट-अप बोरिया बिस्तर बांधने पर आ गए। स्टार्ट-अप में 35000 नौकरियां खत्म हो गईं। वह भी 2 सालों में।