हरियाणा ‘आप’ के प्रदेशाध्यक्ष को नहीं मिली राज्य सभा की सीट

हरियाणा ‘आप’ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सुशील गुप्ता को इस बार पार्टी ने राज्य सभा में भेजने से इन्कार कर दिया है। हरियाणा में पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी गुप्ता के ही कंधों पर है लेकिन उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद हरियाणा में पार्टी की पकड़ नहीं बन पाई है। पार्टी के साथ नए लोगों का जुड़ाव भी नहीं हो रहा है। डॉ. सुशील गुप्ता को दूसरी बार राज्य सभा में क्यों नहीं भेजा गया, इसको लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। क्या गुप्ता की हरियाणा में कारगुजारी को कमजोर माना गया है? क्या गुप्ता को पूरी तरह से अपना ध्यान हरियाणा पर ही केंद्रित करने के लिए राज्य सभा से बाहर रखा गया है ? हालात को समझते हुए इन सवालों का जवाब देने के लिए गुप्ता को खुद आगे आना पड़ा है। सुशील गुप्ता कह रहे हैं कि उन्होंने पार्टी के सामने इच्छा जाहिर की थी कि वह हरियाणा में ही काम करना चाहते हैं। पार्टी की मजबूती के लिए भी यही ठीक समझा गया कि मैं हरियाणा में ही काम करूं। मुझे खुशी है कि पार्टी ने मेरे इस आग्रह को स्वीकार भी कर लिया है। गुप्ता ने अपनी तरफ से सफाई दे दी है, लेकिन आप ने उनकी टिकट काटने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। ऐसी स्थिति में जब लोग ‘आप’ को छोड़ रहे हैं, गुप्ता कैसे पार्टी को मजबूत कर पाएंगे, यह देखने वाली बात होगी। मजबूत राजनीतिक जनाधार वाले नेताओं को कैसे आप में लेकर आएंगे, कैसे पार्टी में लोगों को रोके रखेंगे, सवाल यह भी है। अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान मिल कर हरियाणा के चक्कर लगाते रहे हैं, लेकिन ‘आप’ को हरियाणा में कुछ हाथ नहीं लग रहा है। ऐसे में देखना होगा कि राज्य सभा सदस्यता जाने के बाद डॉ. सुशील गुप्ता कैसे आप को हरियाणा में कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले खड़ा कर पाएंगे? 
 ‘आप’ व कांग्रेस का गठबंधन
क्या आने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच हरियाणा में सीटों का बंटवारा हो पाएगा? क्या कांग्रेस और ‘आप’ राज्य की कुल दस सीटों में सात और तीन सीटों पर तालमेल के तहत चुनाव लड़ेंगी? क्या इंडिया गठबंधन के मुताबिक दोनों पार्टियों में मिलकर चुनाव लड़ने के लिए सहमति बन जाएगी? क्या भाजपा आने वाले लोकसभा चुनावों में फिर से सभी दस सीटों पर अपना कब्जा बरकरार रख पाएगी? यह कुछ ऐसे सवाल हैं, जो इन दिनों राजनीति के गलियारों में चर्चा में हैं। अभी कांग्रेस और ‘आप’ के बीच तालमेल को लेकर संशय बरकरार है। अभी तय कुछ भी नहीं है, लेकिन कहा यही जा रहा है कि बातचीत आगे बढ़ रही है। कांग्रेस के साथ आपसी बातचीत में ‘आप’ ने हरियाणा की तीन सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की है और ये तीनों सीटें पंजाब की सीमा से लगते इलाकों की हैं। इस संबंध में कांग्रेस के नेताओं को ‘आप’ की तरफ से एक प्रस्ताव भी सौंपा गया है। ‘आप’ के इस प्रस्ताव पर कांग्रेस आलाकमान विचार करेगा और अगली बैठक तक कोई फैसला हो सकता है। हालांकि, कांग्रेस की हरियाणा इकाई अभी ‘आप’ के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर सहमत दिखाई नहीं दे रही है। इस बारे में अंतिम फैसला कांग्रेस आलाकमान को ही लेना है। आलाकमान के फैसले को राज्य इकाई किस तरह से स्वीकार करेगी, यह भी देखना होगा।
 निर्मल सिंह व चित्रा 
पूर्व मंत्री निर्मल सिंह और उनकी बेटी चित्रा सरवारा कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। पूर्व मंत्री निर्मल सिंह और उनकी बेटी चित्रा सरवारा का ‘आप’ को छोड़कर जाना हरियाणा में ‘आप’ के लिए एक बड़ा झटका है। हरियाणा के कांग्रेस मामलों के प्रभारी दीपक बावरिया ने पहले ही इसकी पुष्टि कर दी थी कि निर्मल सिंह और उनकी बेटी चित्रा सरवारा को कांग्रेस में शामिल होने के संबंध में पार्टी आलाकमान ने बिना देर किए इजाज़त दे दी है। चार बार विधायक और दो बार कैबिनेट मंत्री रहे निर्मल सिंह और अम्बाला छावनी से बतौर आज़ाद उम्मीदवार चुनाव लड़ चुकी चित्रा के ‘आप’  छोड़ने के बाद यह कयास लगाए जा रहे थे कि वे कांग्रेस में ही शामिल होंगे। निर्मल सिंह का अम्बाला क्षेत्र में अच्छा खासा आधार है। पिछले विधानसभा चुनाव में जब अम्बाला छावनी से चित्रा सरवारा को टिकट नहीं मिली तो निर्मल सिंह ने अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस छोड़ दी थी और अपनी पार्टी का गठन कर लिया था। बाद में उन्होंने अपनी पार्टी का आम आदमी पार्टी में विलय कर लिया था। अम्बाला में उन्होंने ‘आप’ का आधार तैयार करने के लिए खूब मेहनत भी की, लेकिन अब वह अपनी बेटी के साथ कांग्रेस में लौट आए हैं। लोकसभा चुनावों से पहले निर्मल सिंह का ‘आप’ छोड़ना पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं है।
ईडी के निशाने पर दिलबाग सिंह
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निशाने पर इनेलो के पूर्व विधायक दिलबाग सिंह क्यों आए? ईडी की छापेमारी के बाद दर्ज एफ.आई.आर. के तहत दिलबाग सिंह गिरफ्तार भी कर लिए गए हैं। क्या इसलिए कि दिलबाग सिंह इनेलो के प्रधान महासचिव और ऐलनाबाद क्षेत्र के विधायक अभय चौटाला के समधी हैं? क्या इसलिए कि यमुनानगर में उनका बड़ा जनाधार है? क्या इसलिए कि आने वाले विधानसभा चुनावों में वह यमुनानगर क्षेत्र में सत्ता पक्ष के लिए कोई चुनौती पैदा कर सकते हैं? दिलबाग सिंह के खिलाफ अवैध खनन से जुड़े मामले में मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया गया था। उनके खिलाफ अवैध हथियार रखने का मामला भी दर्ज किया गया है। ईडी ने जमीन और मकान से जुड़े दस्तावेज भी ज़ब्त किए हैं। पांच दिन तक ईडी ने उनके ठिकानों पर छानबीन की। दिलबाग के भाई राजेन्द्र सिंह का दावा है कि उनके यहां वर्ष 2018 और 2022 में भी छापा पड़ा था, लेकिन दोनों ही बार की छापेमारी में कुछ भी गलत नहीं मिला था। लोग कह रहे हैं कि गिरफ्तारी से दिलबाग सिंह की राजनीतिक छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। छापेमारी के पीछे ऐसे कयास लगाने वाले लोगों की  कमी भी नहीं है। सच क्या है, यह आने वाले दिनों में सामने आ ही जाएगा।
कांग्रेस में गुटबाजी? 
क्या हरियाणा में कांग्रेस मामलों के प्रभारी दीपक बावरिया अपनी पार्टी में गुटबाजी को रोक पाएंगे? सब जानते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदयभान हरियाणा में कांग्रेस की रैलियां कर रहे हैं। दूसरी तरफ पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा, कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला और पूर्व मंत्री किरण चौधरी की एकजुटता भी किसी से छुपी नहीं है। ऐसे में बावरिया की ज़िम्मेदारी बढ़ गई है। बावरिया ने कहा भी है कि कांग्रेस के समांतर किसी अन्य कार्यक्रम को पार्टी की तरफ से कोई इजाज़त नहीं दी जाएगी। उन्होंने कहा कि हालांकि, इस मामले में उनकी कुमारी सैलजा, रणदीप सिंह सुरजेवाला और किरण चौधरी से कोई बातचीत नहीं हुई है। आने वाले लोकसभा और हरियाणा विधानसभा चुनावों को लेकर बावरिया कहते हैं कि कांग्रेस पूरी तरह से तैयार है। जिस तरह से हरियाणा कांग्रेस के नेता रैलियां और बैठकें कर रहे हैं, उससे कांग्रेसी नेता उत्साहित नजर आ रहे हैं। बावरिया ने यह भी दावा किया है कि पार्टी एकजुट है। दावे अपनी जगह ठीक हैं, लेकिन देखने वाली बात यही होगी कि क्या बावरिया सचमुच आने वाले चुनावों से पहले हरियाणा कांग्रेस में गुटबाजी खत्म कर पाएंगे?

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