भगत नामदेव जी का जीवन एवं आध्यात्मिक सिद्धांत

वार्षिक जोड़ मेले पर विशेष

महाराष्ट्र का वारकरी सम्प्रदाय विट्ठल भगवान की आराधना के साथ जुड़ा हुआ है। इस लहर के प्रमुख संत ज्ञानदेव (ज्ञानेश्वर) हुए हैं, जिन्होंने इस सम्प्रदाय को बहुत लोकप्रियता दिलाई। चाहे संत ज्ञानेश्वर छोटी उम्र (22 वर्ष) में ही इस दुनिया से विदा हो गये, परन्तु उन्होंने संत मंडली ज़रूर बना कर दी, जिनमें से भगत नामदेव जी एक थे। भगत नामदेव जी ने विशोभा खेचर से दीक्षा ली थी। भगत नामदेव 1270-1350 ई. मध्य-कालीन भक्ति लहर का एक प्रमुख नाम हुए हैं। भक्ति लहर भारत के इतिहास का स्वर्णिम व अद्भुत घटनाक्रम था।
जन्म तथा माता-पिता : भगत नामदेव जी का जन्म महाराष्ट्र के नरसी बहमनी ज़िला सितारा जिसे  आजकल नरसी नामदेव ज़िला हंगोली के नाम से जाना जाता है, में 1270 ई. में हुआ। इनके पिता का नाम दामासेटी तथा माता का नाम गोनाबाई था। आप जी के माता-पिता विट्ठल भगवान की पूजा करते थे, इसलिए भगत नामदेव को भी बचपन से ही विट्ठल भगवान की पूजा की ऐसी लगन लगी कि वह विट्ठल भगवान के ही हो गए। उन्होंने विट्ठल की स्तुति में लिखना व गाना शुरू कर दिया। आप ने गृहस्थ मार्ग पर चलते हुए एक व्यापारी की बेटी राजबाई के साथ शादी की। आप के घर चार बेटे तथा एक बेटी ने जन्म लिया। आप कपड़ा बुनने और कपड़े सिलाई करने का काम करते थे। भगत नामदेव बचपन से ही नरम दिल तथा बहुत ही दयालु स्वभाव वाले थे। दूसरों की मुश्किलों तथा ज़रूरतों को देख कर उनका हृदय पिघल जाता था।
भगत नामदेव की विचारधारा : प्रभु प्राप्ति  के लिए भगत नामदेव शुरू से ही यत्नशील थे। एक तरफ अपनी कड़ी मेहनत की कमाई से पूरे परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का प्रबन्ध करना तथा दूसरी तरफ प्रभु के सिमरन की निरंतरता को भी कायम रखना भी भगत जी के जीवन का मुख्य उद्देश्य बन गया था। 
उनके जीवन में बहुत-सी ऐसी उदाहरणों का विवरण स्वयं उनकी रचनाओं से ही मिलता है कि वह अपने प्रभु को कितने ही रूपों में, कितने ही भेष में देखते थे। 
उन्होंने अपनी ओर से ही भगवान को अलग-अलग नाम दिये हैं, कहीं बिठोवा विट्ठल, विट्ठल, बिठला, श्री रंग, राम, हरि, नारायण, केशव आदि। भगत नामदेव जी की समूची वाणी में ही संवाद विधा प्रधान है। उनकी वाणी का ही कमाल है कि वह कभी ठाकुर के साथ संवाद रचाते हैं, कभी समय के शासक के साथ तथा कभी भोलेपन में कुत्ते के साथ रास्ते में चलते ही गुफ़्तगू करते हैं। भगत जी  का बड़ा गुण यह है कि उन्होंने कभी कोई चमत्कार नहीं दिखाया। चमत्कार को उन्होंने कहर का नाम दिया तथा परमात्मा के कभी भी समकक्ष नहीं बने। भगत जी ने किसी दुनियावी लालच व अत्याचार के डर से अपना श्री रंग का दामन नहीं छोड़ा, अपितु साकत पुरुषों द्वारा उन्हें दिए गए दु:खों-कष्टों को उन्होंने प्रभु का प्रसाद समझ कर ही अपने शरीर पर हंस कर सहन किया।
भगत नामदेव तथा पंजाब : महाराष्ट्र के संत भगत नामदेव जी जो दक्षिण की भक्ति लहर के संस्थापक हैं, इस लहर को उत्तर भारत में लेकर आने वाले भी वही हैं। भगत जी की मूर्ति पूजा से आज़ाद हुई अवस्था सूझबूझ वाली तथा जिज्ञासु भावना की अवस्था है। यह आप जी की आयु का वह पड़ाव है जब आप महाराष्ट्र से चल कर उत्तर भारत की ओर चले पड़ते हैं। भिन्न-भिन्न स्थानों से होते हुए भगत नामदेव भूत गांव का कल्याण करते हुए मरड़ी गांव जा पहुंचे। यहां भगत नामदेव ने सत्संग करते हुए लगभग तीन माह व्यतीत किए। इसके बाद भगत जी भट्टीवाल गांव की ओर आ निकले। भगत जी को यह स्थान बहुत शांतमयी एवं अत्यंत मनमोहक लगा। यहां आप काफी समय कुटिया बना कर रहे और भक्ति की। इस गांव में ही गुरुद्वारा खूह साहिब, गुरुद्वारा खुंडी साहिब तथा गुरुद्वारा नामेआना साहिब सुशोभित हैं। कुछ समय बाद भगत नामदेव जी कुछ मील की दूरी पर घने जंगल में आकर ठहरे, जहां आजकल कस्बा घुमाण बसा हुआ है। इस अस्थान पर गुरुद्वारा तपिआणा साहिब सुशोभित है। जिस स्थान पर भगत नामदेव जी ने अपना अंतिम समय व्यतीत किया, उस स्थान पर गुरुद्वारा श्री नामदेव दरबार सुशोभित है। 
प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी शिरोमणि भगत नामदेव जी का 674वां परलोक गमन दिवस घुमाण में स्थित भिन्न-भिन्न गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों श्री नामदेव दरबार कमेटी, गुरुद्वारा तपिआणा साहिब कमेटी, गुरुद्वारा चरण कमल साहिब कमेटी घुमाण तथा गुरुद्वारा नामेआणा साहिब, गुरुद्वारा खूह साहिब, गुरुद्वारा खूंडी साहिब भट्टीवाल की कमेटियों द्वारा बहुत ही श्रद्धा भावना से मनाया जाता है। श्री नामदेव दरबार कमेटी द्वारा 13 जनवरी को लोहड़ी का त्योहार, 14 जनवरी को संक्रांति तथा 15 जनवरी को ज्योति-जोत पर्व मनाया जाएगा, जहां हज़ारों श्रद्धालु बाबा नामदेव जी के इस पवित्र अस्थान पर नतमस्तक होते हैं और बाबा जी की खुशियां प्राप्त करते हैं। इस पर्व को समर्पित बाबा नामदेव स्पोर्ट्स क्लब (रजि.) घुमाण द्वारा 15,16,17 जनवरी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का खेल मेला भी करवाया जा रहा है।                      -घुमाण