‘आप’ के लिए चुनावों की सिरदर्दी

पंजाब में नगर निगम चुनावों को लेकर हो रही देरी के दृष्टिगत पंजाब एवं हरियाणा के उच्च न्यायालय द्वारा प्रदेश की भगवंत मान सरकार को जारी किये गये नोटिस से नि:संदेह सरकार की बड़ी किरकिरी हुई है। तिस पर पंचायती चुनाव हेतु सरकार द्वारा की जा रही टाल-मटोल भी घाव पर खाज का काम करेगी। अदालत द्वारा पंजाब सरकार और प्रदेश के चुनाव आयोग से इस देरी हेतु एक सप्ताह के भीतर मांगे गये जवाब ने स्थिति को अधिक गम्भीर किया है। अदालत ने इस पूरे मामले में कड़ा रवैया धारण करते हुए, सरकार को ज़िम्मेदारी वाला रवैया अपनाने के लिए भी कहा है। पंजाब में वर्तमान में जालन्धर, अमृतसर, लुधियाना, फगवाड़ा और पटियाला के पांच नगर निगम हैं, और विगत एक वर्ष से, पिछले निगमों की कार्य अवधि समाप्त हो जाने के बाद से ये मेयर-रहित प्रश्सान के अन्तर्गत चले आ रहे हैं। नि:संदेह इन नगर निगमों का कोई राजनीतिक वारिस न होने से इन शहरों में विकास और उन्नति के तमाम कार्य ठप्प हुए पड़े हैं। यहां तक कि इनमें से जालन्धर जिसे स्मार्ट शहर के रूप में विकसित करने हेतु चुना गया था, वहां करोड़ों रुपये की केन्द्रीय मदद से अनेक परियोजनाओं के आधा-अधूरा रह जाने से इन पर खर्च किया गया पैसा व्यर्थ पानी में बह गया है। कई परियोजनाओं की कार्यान्वयन अवधि समाप्त हो जाने के कारण अब उन पर या तो नये सिरे से कार्य शुरू करना पड़ेगा, अथवा नये टैंडर जारी करने पड़ेंगे। उच्च न्यायालय द्वारा कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रितु बाहरी और जस्टिस निधि गुप्ता पर आधारित पीठ ने यह आदेश अमृतसर के एक समाज-सेवी द्वारा दायर जन-हित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।
पंजाब के इन पांचों नगर निगमों की कार्य-अवधि जनवरी 2023 में समाप्त हो गई थी, तथा नियमानुसार जनवरी 2023 मास के भीतर इनके नये चुनाव भी हो जाने चाहिए थे, किन्तु निहित राजनीतिक स्वार्थों के तहत ये चुनाव किसी न किसी बहाने से टाले जाते रहे। बीच में विगत वर्ष जुलाई मास के दौरान सरकार और प्रदेश के चुनाव आयोग की भीतरी हलचल से ऐसा आभास हुआ भी था कि शायद अगस्त मास तक अथवा इसके आस-पास नये चुनाव कराये जा सकते हैं, किन्तु ये सब कयास-अराइयां बन कर ही रह गईं, और प्रदेश की सरकार पुन: ग़फलत की नींद सो गई। इस बीच भगवंत मान की सरकार ने एक और निहित राजनीतिक फैसले के तहत विगत वर्ष अगस्त मास में प्रदेश की सभी 13,268 गांव पंचायतों को समय-पूर्व भंग कर दिया था, किन्तु इस फैसले को अदालत में चुनौती दिये जाने के बाद सरकार ने अपने इस निर्णय को बड़ी नमोशीजनक स्थिति में वापिस ले लिया था। अब पंचायत चुनावों की तिथि भी पास आ जाने से सरकार की परेशानियों में इज़ाफा होगा। पंचायत चुनावों की पांच-वर्षीय मियाद  जनवरी, 2024 में समाप्त हो गई है। निगम चुनावों को लटकाये जाने के पीछे एक बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि सरकार द्वारा चुनाव-पूर्व किये गये वायदों एवं घोषणाओं को पूरा न किये जाने से इसकी लोकप्रियता में  भारी कमी आई है। खास तौर पर महिलाओं को प्रति मास घोषित एक हज़ार रुपये की राशि अभी तक न दिये जाने से ‘आप’ के प्रति महिलाओं में नाराज़गी उपजी है। भगवंत मान सरकार द्वारा प्रचार और विज्ञापन जैसे अकारण और व्यर्थ के कार्यों एवं योजनाओं हेतु बार-बार ऋण लिये जाने से भी पंजाब का हित-चिन्तन करने वाले लोगों में निराशा और नाराज़गी बढ़ी है। नई वार्डबंदी की त्रुटियों और नये मतदाताओं की सूचियों में कथित हेर-फेर भी इस देरी हेतु कारण बने हैं।
हम समझते हैं कि पंजाब सरकार निगम चुनावों को किसी न किसी बहाने से टालते जाने से अब बड़ी  दुविधा में फंस गई है। ये स्थानीय चुनाव सरकार के लिए नि:संदेह बड़ी सिर-दर्दी बनते जा रहे हैं। लोकसभा के चुनाव भी सिर पर हैं। इन चुनावों के लिए भी भारी धन-राशि की ज़रूरत होगी। निगम चुनावों के लिए भी सरकार को बड़ी मात्रा में ऋण लेना पड़ सकता है। अभी हाल ही में, नये वर्ष की आमद के तत्काल बाद पंजाब सरकार ने 25,000 करोड़ रुपये का नया ऋण लिया है। पंजाब के सभी बड़े शहरों में विकास कार्यों के साथ-साथ सफाई के काम भी ठप्प हुए पड़े हैं। कर्मचारियों में निराशा और जन-साधारण में रोष बढ़ता जा रहा है। शुद्ध पेयजल उपलब्ध न हो पाने की शिकायतें भी बढ़ी हैं। सीवरेज की सफाई का कार्य  कई महीनों से अवरुद्ध पड़ा है। ये सब कार्य नगर निगम चुनावों में ‘आप’ की सम्भावनाओं का क्षरण करते जाएंगे। चुनावी राजनीति के अखाड़े में ‘आप’ की कारगुज़ारी कहीं भी शून्य से आगे नहीं बढ़ी है। जहां-जहां भी चुनाव हुए हैं, ‘आप’ प्रत्याशियों की ज़मानत ज़ब्त हुई है। इससे भी पंजाब में ‘आप’ की लोकप्रियता घटी है। पंचायत चुनावों को टाले जाने की नीति के पीछे भी यही भावना रही हो सकती है। हम समझते हैं कि मौजूदा सरकार पंजाब में निगम और पंचायत चुनावों के कार्य को जितना लटकाती जाएगी, उतना ही उसे नुक्सान उठाना पड़ सकता है। इसके बावजूद, सरकार कब इन चुनावों संबंधी फैसला करती है, यह आने वाले समय पर निर्भर करेगा।