पंजाब में नई पीढ़ी का भविष्य सुनिश्चित बनाए सरकार 

बर्बाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
मां सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है।
मुनव्वर राणा का यह शे’अर आजकल कनाडा पढ़ाई करने जा रहे बच्चों विशेषकर 12वीं पास बच्चों पर अधिक चरितार्थ होता है। इस समय दो समाचार मेरे सामने हैं। एक समाचार कह रहा है कि परदेस गये बच्चों में से 91 प्रतिशत के माता-पिता संतुष्ट हैं। यह पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की एक स्टडी (खोज-पत्र) जो 1991 से सितम्बर, 2022 तक विदेश गये बच्चों के संबंध में की गई है, का परिणाम है, परन्तु दूसरी ओर कनाडा के इमीग्रेशन मंत्री मार्क मिल्लर ने अधिकृत तौर पर माना है कि गत वर्ष की चौथी तिमाही में कनाडा पढ़ाई के लिए जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या में 86 प्रतिशत की कमी आई है। इससे पिछले वर्ष की अंतिम तिमाही में गये भारतीय विद्यार्थियों की संख्या एक लाख 8 हज़ार 940 थी जबकि गत वर्ष यह संख्या सिर्फ 14 हज़ार 910 ही थी। हालांकि इसका बड़ा कारण हरदीप सिंह निज्झर की हत्या के बाद भारत तथा कनाडा के बीच बिगड़े संबंधों को ही बताया जा रहा है, परन्तु इसके बड़े कारणों में कनाडा में बढ़ती महंगाई, नये विद्यार्थियों को मकान न मिलने या बहुत महंगे किराये तथा काम की कमी भी प्रमुख कारण हैं। फिर कनाडा में कुछ संस्थानों में पढ़ाई की सुविधाएं भी कम हैं। वैसे कनाडा की चार यात्राओं में मेरा निजी अनुभव यह भी है कि कैनेडियन पंजाबी चाहे पंजाब की चिंता होने के दावे तो बहुत करते हैं, परन्तु पंजाबी विद्यार्थियों को काम देने के मामले में बहुत बार वे उनका शोषण करने से भी नहीं झिझकते। चाहे सभी पंजाबी ऐसे नहीं हैं, परन्तु फिर भी आम तौर पर नये गये पंजाबी विद्यार्थियों को शिकायत है कि गोरे उनका शोषण नहीं करते, पंजाबी अधिक करते हैं। फिल्पीनो फिलिपीन्स के विद्यार्थियों की बांह थामते हैं और चीनी चीन के विद्यार्थियों की, परन्तु अधिकतर पंजाबी बिज़नेसमैन पंजाबियों की मदद कम ही करते हैं। वैसे कनाडा में भारतीय उच्चायोग के कौंसलर सी. गुरुसुब्रह्मण्यम का कहना है कि भारतीय विद्यार्थी (कनाडा के स्थान पर) दूसरे विकल्पों की ओर देख रहे हैं। इसका पिछले समय में घटित घटनाओं के बारे चिन्ता तथा कुछ कैनेडियन संस्थाओं में सुविधाओं तथा मकानों की कमी से भी संबंध है। उल्लेखनीय है कि भारत से सबसे अधिक पंजाबी ही कनाडा जाते हैं, चाहे गुजराती भी बड़ी संख्या में बाहर जाने को प्राथमिकता दे रहे हैं।
क्या करे सरकार?
अब जब पंजाबी युवाओं के लिए कनाडा जाने की राह कठिन होती जा रही है, आये दिन अमरीका डंकी लगा कर (गैर-कानूनी) जाने की घटनाएं तथा लाखों रुपये बर्बाद करके मौत के मुंह में जाने या डिपोर्ट होने के समाचार भी आ रहे हैं। दूसरी ओर आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड के वीज़ा भी कम होते जा रहे हैं। ब्रिटेन व यूरोप में रहने तथा काम मिलने के अवसर भी कम होते जा रहे हैं। ऐसे ज़रूरी है कि पंजाब सरकार पंजाबी युवाओं के भविष्य के लिए कोई भविष्योन्मुखी नीति तैयार करे। सिर्फ 10-12 हज़ार नौकरियां देकर करोड़ों रुपये का प्रचार करके एक-आध बार वोट तो शायद लिये जा सकते हैं, परन्तु पंजाब का कुछ संवारा नहीं जा सकता। पंजाबी युवा अपने माता-पिता तथा रिश्तेदारों को छोड़ अपने घर-बार से दूर, अपनी जड़ों से दूर जाने के लिए ऐेसे ही नहीं चल पड़ते। वास्तव में वे किसी उज्ज्वल भविष्य की आशा में ही जाते हैं। शायद निदा फाज़ली के शब्दों में—
देस-परदेस क्या परिंदों का,
आब-ओ-दाना ही आशियाना है।
खैर, हम बात करना चाहते हैं कि अब जब पंजाबी युवाओं के लिए परदेस के रास्ते भी बंद होते जा रहे हैं तो पंजाब सरकार का फज़र् है कि वह समय रहते कुछ सोचे, कुछ करे। हम समझते हैं कि पंजाब सरकार को सबसे पहले तीन बातों की ओर ध्यान देने की ज़रूरत है। पहली बात, पढ़ाई का स्तर समय के समकक्ष कैसे बने और यह बेरोज़गारी कैसे खत्म करे? दूसरा विषय है स्वास्थ्य सुविधाएं तथा तीसरा बुढ़ापे   की संभाल। हम समझते हैं कि पंजाब सरकार को तीन ताकतवर आयोग बनाने की ज़रूरत है, जो इन तीनों विषयों पर सिर्फ सुझाव देने वाले आयोग ही न हों, अपितु इन आयोगों की शर्तों में यह तय हो कि इन आयोगों के सुझाव मान कर सरकार ठोस पग भी उठाएगी। इन आयोगों में हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के सेवामुक्त जज, पूर्व वी.सी., पूर्व सैनिक जनरल, प्रिंसीपल सचिव स्तर के सेवा-मुक्त आई.ए.एस. अधिकारी, कुछ बुद्धिजीवी तथा जहां आवश्यक हो, उस क्षेत्र के बड़े जानकार जैसे पी.जी.आई. या कुछ अन्य संस्थाओं में काम कर चुके उच्च स्तर के डाक्टर, आई.टी. विशेषज्ञ आदि शामिल किये जा सकते हैं।
पढ़ाई तथा रोज़गार आयोग : पढ़ाई तथा रोज़गार आयोग का कार्य यह हो कि वह स्टडी (खोज) करे कि आज के युग में किस प्रकार की पढ़ाई की ज़रूरत है, जो रोज़गार को सुनिश्चित बनाये और पंजाब को पढ़ाई का एक ऐसा केन्द्र बना सके कि पंजाबी युवकों को बाहरी देशों में न जाना पड़े, अपितु विदेशों के नौजवान तथा विदेशी सरकारों के लिए ज़रूरी हो कि वे अपने देश के विकास के लिए अपने बच्चों को पंजाब में पढ़ने के लिए भेजें। यह कठिन कार्य नहीं है। एक समय था जब टैक्सला विश्वविद्यालय में विश्व भर से लोग पढ़ने आते थे। इस समय पढ़ाई के नये क्षेत्रों में ए.आई. (आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस), अंतरिक्ष विज्ञान, आई.टी., एटामिक एनर्जी, नई किस्म के हथियारों की खोज तथा नई दवाइयों का अनुसंधान, इनमें कुछ विषयों में तो भारत की महारत शीर्ष 4-5 देशों के समान है। सो, यदि इन नई तकनीकों की पढ़ाई विश्व स्तर के समान पंजाब में शुरू हो जाए तो यह विश्व की विवशता होगी कि भिन्न-भिन्न देशों के बच्चे यहां पढ़ने के लिए आएं। इसके साथ ही यह ज़रूर होना चाहिए कि इन नई संस्थाओं में पंजाबी या भारतीय बच्चों के लिए फीस विदेशी विद्यार्थियों की फीस से सिर्फ चौथा भाग ही ली जाए। जबकि इसके साथ ही यह आयोग प्राइमरी से ही पढ़ाई के लिए ऐसे पाठ्यक्रम तैयार करवाए कि 12वीं पास करते ही बच्चे ऐसी नई तकनीकों की पढ़ाई के योग्य हो सकें। इसके साथ भी ज़रूरी हो कि पढ़ाई में 14 या 16 वर्ष लगाने तथा पास होने के बाद उनके लिए देश-विदेश में नौकरी की गारंटी हो या उन्हें निजी कार्य शुरू करने हेतु बिना ब्याज ऋण का प्रबंध हो। यदि ऐसा हो जाए तो यह सिर्फ पंजाब की जवानी ही नहीं संभाल सकेगा, अपितु पंजाब की आर्थिकता के लिए नये द्वार भी खोल देगा। 
स्वास्थ्य आयोग : यह ठीक है कि पंजाब सरकार आधारभूत स्वास्थ्य सुविधाओं की ओर ध्यान दे रही है, परन्तु सब जानते हैं कि ये सुविधाएं कम हैं और प्रचार के साधन अधिक हैं जबकि वास्तव में पंजाबियों के लिए गंभीर बीमारियों के उपचार हेतु सुविधाएं दिन-प्रतिदिन कम हो रही हैं या बहुत महंगी होती जा रही हैं। इन गंभीर बीमारियों का उपचार मोहल्ला क्लीनिक तो क्या, सरकारी अस्पताल भी करने से असमर्थ दिखाई दे रहे हैं। इसलिए स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए एक आयोग की ज़रूरत है जो ऐसा ढांचा तैयार करने में सहायक हो कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपचार मुफ्त हो। इस उद्देश्य कि लिए उपचार हेतु किसी आयुष्मान कार्ड की नहीं अपितु सिर्फ आधार कार्ड की ही ज़रूरत हो। इस उद्देश्य के लिए यदि ‘क्यूबा’ की भांति स्वास्थ्य सुविधाओं का पूरी तरह सरकारीकरण करने की ज़रूरत भी महसूस हो तो पीछे नहीं हटना चाहिए। उल्लेखनीय है कि एक ओर तो जैनेरिक दवाइयों पर लिखी मैक्सिमम रिटेल प्राइस (अधिकतम खुदरा मूल्य) 75 से 90 प्रतिशत तक अधिक होता है, जो सरीहन लूट का कारण बनता है। दूसरा कुछ अस्पताल शुद्ध नई बीमा सुविधाओं के सहारे चलते हैं, जिनकी हेराफेरी स्वास्थ्य ढांचे को क्षति ही नहीं पहुंचाती, अपितु बीमा सुविधाओं को और महंगा भी करती है। इसलिए ज़रूरी है कि स्वास्थ्य आयोग बनाया जाए और पंजाब की स्वास्थ्य नीति का पुनर्गठन किया जाए। वैसे तो यह ज़रूरत देश भर की आवश्यकता है, परन्तु पंजाब इसका नेतृत्व कर सकता है। 
बुढ़ापा सम्भाल आयोग : इस आयोग की ज़रूरत भी राष्ट्रीय स्तर पर है परन्तु पंजाब के लिए यह ज़रूरी इसलिए ज्यादा है क्योंकि विदेश जाने वाले विद्यार्थी यह सोचते हैं कि विदेश में उनका बुढ़ापा सुरक्षित होगा। आश्चर्यजनक बात है कि जब बुढ़ापे में बीमारियां अधिक होती हैं तथा बुजुर्ग व्यक्ति के पास आय के स्रोत नहीं रहते, उस समय या तो बीमा कम्पनियां उनका बीमा करती ही नहीं, या फिर बहुत महंगा बीमा किया जाता है। आजकल पंजाब तथा देश में भी बुजुर्गों को सम्भालना उनके बच्चे बोझ समझने लगे हैं। 65 वर्ष के बाद बुजुर्गों को क्रैडिट कार्ड या ऋण भी आम तौर पर नहीं मिलता। ऐसी हालत में बुढ़ापे की सम्भाल के लिए आयोग बनाने तथा उसकी सिफारिशों को सूचीबद्ध ढंग से लागू करना ज़रूरी है। 60 या 65 वर्ष की आयु में कम से कम पैंशन (सम्मान-निधि) ज़रूर होनी चाहिए। इसके अलावा जो व्यक्ति उम्र भर जितना आयकर देता रहा हो, उसके अनुसार उसे अधिक पैन्शन सुनिश्चित हो जबकि बुढ़ापे में तो आधार कार्ड पर आधारित 100 प्रतिशत मुफ्त उपचार, सस्ते किराये के मकान तथा सस्ती ट्रांस्पोर्ट जो टैक्सियों आदि पर भी लागू हो, मिलना ज़रूरी है।
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