श्री राम मंदिर के लिए उत्साह

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 22 जनवरी को अयोध्या में निर्मित शानदार श्री राम मंदिर का उद्घाटन कर रहे हैं। मंदिर में उत्तम कला का नमूना श्री राम की स्थापित की गई प्रतिमा मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई है। देश-विदेश में बसते हिन्दू समुदाय के एक बहुत बड़े भाग की लम्बी अवधि से यह इच्छा रही है कि अयोध्या में एक विशाल एवं शानदार मंदिर का निर्माण किया जाये। इस इच्छा की अब पूर्ति हो गई है। श्री राम मंदिर बनाने का रास्ता कुछ वर्ष पहले सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से साफ हो गया था। चाहे मंदिर के निर्माण का यह फैसला नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में आया था किन्तु इसके लिए लम्बी अवधि से यत्न हो रहे थे। आज चाहे राजनीतिक पक्ष से लाल कृष्ण अडवाणी हाशिये पर धकेले जा चुके हैं परन्तु उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता होते कुछ हिन्दू संगठनों को साथ लेकर मंदिर बनाने के संबंध में गतिविधियों को तेज़ किया था तथा भारी संख्या में भगवान राम के भक्तों में इसके प्रति चेतना पैदा की थी।
वर्ष 1992 में भाजपा, ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’, ‘विश्व हिन्दू परिषद्’ और अन्य हिन्दू संगठनों की ओर से उकसाये जाने पर लोगों के एक बड़े समूह द्वारा बाहरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था, जिससे देश में अधिकतर स्थानों पर साम्प्रदायिक दंगे भी भड़क उठे थे तथा इनमें बहुत-से लोग मारे भी गये थे। इससे पहले यदि विगत लम्बी अवधि पर दृष्टिपात करें तो देश के विभाजन के बाद अयोध्या में बाबरी मस्जिद के संबंध में हमेशा विवाद बना रहा था तथा समय के साथ-साथ यह और भी बढ़ता रहा था। ज्यादातर लोगों का हमेशा से यह विश्वास बना रहा है कि जिस स्थान पर श्री राम मंदिर था, वहीं पर म़ुगल हमलावर बाबर के एक जनरैल ने मंदिर के स्थान पर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था। इसी स्थान पर ही भगवान राम प्रकाशमान हुये थे। मस्जिद के निर्माण के बाद भी ज्यादातर लोगों का ऐसा विश्वास परिपक्व होता रहा था। देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद एवं इसके विभाजन के बाद कुछ हिन्दू संगठनों ने इस स्थान पर बाबरी मस्जिद के भीतर भगवान रामलला की प्रतिमा स्थापित कर दी थी, जिसके बाद दोनों समुदायों में यह विवाद और भी बढ़ गया था। चाहे बाबरी मस्जिद के दरवाज़ों को तो ताला लगा दिया गया था, परन्तु राम भक्त राम चबूतरा बना कर और लगातार वहां जाकर अपनी आस्था प्रकट करते रहे थे।
लम्बी जद्दो-जहद के बाद अंतत: प्रशासन की ओर से वर्ष 1986 में बाबरी मस्जिद के दरवाज़ों के ताले खोल दिए गए थे, तथा वहां हिन्दू श्रद्धालुओं को पूजा-अर्चना करने की स्वीकृति भी दे दी गई थी। बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने के बाद भी दोनों समुदायों के भिन्न-भिन्न संगठनों द्वारा एक दूसरे के विरुद्ध एक लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी थी, जिसके बाद अंतत: सर्वोच्च न्यायालय ने इस स्थान पर राम मंदिर के निर्माण संबंधी फैसला दिया था।
अब जबकि इस विशाल मंदिर में भगवान रामलला की प्रतिमा की स्थापना कर दी गई है तथा इस मंदिर को प्रधानमंत्री की ओर से लोगों को समर्पित करने के लिए इसका उद्घाटन किया जा रहा है, जिसे लेकर देश-विदेशों में हिन्दू समुदाय में भारी उत्साह देखने को मिल रहा है, क्योंकि सदियों बाद करोड़ों लोगों की ऐसी अभिलाषा की पूर्ति हुई है। नि:संदेह इस संबंध में अपने-अपने पक्ष से देश भर में तथा खास तौर पर देश की राजनीति में बड़े विवाद चल रहे हैं, जो आज तक भी बने हुये हैं, परन्तु इन सभी विवादों से ऊपर श्रद्धा की भावना भारी पड़ती दिखाई देती है। इस श्रद्धा भावना के साथ-साथ इस समय मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्री राम द्वारा दर्शाये गए मार्ग संबंधी सही भावना वाली सोच अपनाने की भी बहुत ज़रूरत है। भगवान ने जातियों, बिरादरियों एवं समुदायों से ऊपर उठ कर उस समय समूची मानवता की भलाई के संकल्प को सभी के समक्ष रखा था तथा समाज में उच्च नैतिक-मूल्यों को अपनाये जाने के लिए क्रियात्मक रूप में जीवन जीने के उदाहरण लोगों के सामने रखे थे। आज भगवान श्री राम की शिक्षाओं को समक्ष रख कर उनके अनुसार अपने जीवन को ढालने की बेहद ज़रूरत है। ऐसा जीवन जिसमें किसी भी सम्प्रदाय, समुदाय या जाति-बिरादरी के लिए घृणा एवं ऩफरत का कोई स्थान न हो, जिसमें मानवीय साझ एवं उच्च सदाचार का सन्देश हो, ऐसी धारणा ही समाज को आपसी प्रेम एवं मेल-मिलाप के मार्ग पर चलाने के समर्थ हो सकती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द