गणतंत्र दिवस पर मम्मी पापा बच्चों को क्या बताए ं?

आज के दौर में भले बच्चों की हर जिज्ञासा का हल गूगल के पास हो, लेकिन बच्चों के दिल या दिमाग में कुछ बातें गूगल या महज किताबों के जरिये नहीं उतरतीं। ऐसी बातों और जानकारियों से बच्चों का दिल और दिमाग का रिश्ता तभी बनता है, जब उन्हें ये सब उनके मम्मी-पापा, दादी-दादा, नानी-नाना या परिवार के कोई भी बड़े-बूढ़े अथवा अध्यापक जज्बाती भाव भंगिमाओं के साथ सुनाते हैं। देश के इतिहास और संस्कृति की बातें ऐसी ही होती हैं, जो बच्चों को सिर्फ किताबों या सोशल मीडिया के जरिये नहीं समझ में आतीं। इसलिए चाहे यह जितना बड़ा सूचना और संचार का युग हो, हर मम्मी पापा को चाहिए कि वह अपने छोटे बच्चों को गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, 2 अक्तूबर आदि राष्ट्रीय पर्वों के मनाये जाने के पीछे की वजहों को बताएं।
सवाल है आखिर गणतंत्र दिवस के मौके पर मम्मी पापा अपने छोटे बच्चे को क्या और कैसे बताएं? उन्हें अपने बच्चों को गंभीरता की भाव भंगिमाओं के साथ यह बताना और समझाना चाहिए कि हम हर साल स्वतंत्रता दिवस क्यों मनाते हैं और उस स्वतंत्रता दिवस के बाद गणतंत्र दिवस क्यों मनाया जाता है? हर मां-बाप को अपने छोटे बच्चों को बताना चाहिए कि हमारे पुरखों ने, हमारे बड़े बूढ़ों ने कैसे गुलामी के खिलाफ लंबे समय तक संघर्ष किया था? कैसी कैसी तकलीफें भोगी थीं? इससे ही छोटे बच्चों के दिल दिमाग में यह समझ पैदा होगी कि आजादी का क्या महत्व होता है और हमारे पुरखों ने हमें आजाद माहौल में सांस लेने के लिए क्या क्या कष्ट उठाये थे? तभी बच्चों को आजादी का महत्व समझ में आयेगा और अपने पुरखों पर गर्व महसूस होगा।
हमें अपने छोटे बच्चों को बताना चाहिए कि कैसे आजादी की लड़ाई में सभी हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाईयों, पारसियों, बौद्धों, जैनों और यह कि हर भारतवासी ने कैसे कंधे से कंधा मिलाकर दुश्मनों के विरूद्ध संघर्ष किया था, तब कहीं जाकर लाखों बलिदानों के बाद हमें यह आज़ादी मिली है। इसलिए हमें इसका सम्मान करना चाहिए। मां-बाप को अपने छोटे बच्चों को बताना चाहिए कि देश के इतिहास में महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, अशफाक उल्लाह खां, भगत सिंह जैसे स्वतंत्रता सैनानियों का कितना बड़ा संघर्ष है, तब हमें जाकर यह आजादी मिली है। इसलिए हमें अपनी आजादी के साथ जरा भी गैर-जिम्मेदारी नहीं बरतनी चाहिए। हमें अपने छोटे बच्चों को यह भी बताना चाहिए कि देश का ख्याल रखना और अच्छा नागरिक बनना किस तरह अपने पुरखों के प्रति सम्मान है, जिन्होंने हमें आजादी दिलाने के लिए खुद को आजादी के लिए लड़ी गई जंग में कुर्बान कर दिया था।
निश्चित रूप से बड़े होकर बच्चे इतिहास की किताबों में आज़ादी की लड़ाई के तमाम दस्तावेजी ब्यौरे और लंबी कहानियां पढ़ेंगे ही, जानेंगे ही, लेकिन अगर बचपन से हम उन्हें छोटे-छोटे माध्यमों के जरिये यह सब बताते रहे तो एक उम्र में पहुंचकर उन्हें न सिर्फ देश की आजादी के साथ जिम्मेदारी का भाव महसूस होगा बल्कि अपने पुरखों के प्रति सम्मान का भाव भी प्रकट होगा।
 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर