गेहूं की भरपूर फसल होने की सम्भावना

कृषि तथा किसान कल्याण विभाग के निदेशक डा. जसवंत सिंह के अनुसार गेहूं की फसल आशाजनक है। ठंडा मौसम बड़ा अनुकूल है और फसल के लिए लाभदायक है। इस वर्ष फसल लगभग बीमारियों से मुक्त रही है। पीली कुंगी जो फसल पर आम तौर पर आती है, इस वर्ष दिखाई नहीं दी। सिर्फ रोपड़ तथा होशियारपुर के अर्ध-पहाड़ी क्षेत्रों में कहीं-कहीं इसका हमला हुआ, जिस पर कृषि व किसान कल्याण विभाग के विशेषज्ञों के परामर्श से किसानों ने समय पर उचित दवा का छिड़काव करके काबू पा लिया। उसके बाद दूसरे ज़िलों में इसका फैलाव नहीं हुआ। फसल पैस्ट एवं स्टैंमबोरर के हमले से भी मुक्त रही। पी.ए.यू. विशेषज्ञों के अनुसार किसानों को थोड़ा-थोड़ा पानी फसल को देना चाहिए, ताकि मौसम के नवम्बर के बाद दिसम्बर तथा अब जनवरी तक लगातार शुष्क रहने के कारण फसल को जो नुकसान पहुंचने की संभावना है, उससे फसल बची रहे। नवम्बर-दिसम्बर में बीजी गई गेहूं को तो दूसरा पानी दे देना चाहिए। खेतों में पत्ते की कांगियारी से प्रभावित पौधे उखाड़ कर नष्ट कर देने चाहिएं। नवम्बर में बीजी गई गेहूं (जो इस समय विकासाधीन है) को पत्ता लपेट से नुकसान की आशंका है, जिससे फसल का विकास रुक जाएगा।
पंजाब में गेहूं की बिजाई 35 लाख हैक्टेयर रकबे पर की गई है जबकि पूरे भारत में इसकी बिजाई 340 लाख हैक्टेयर रकबे पर हुई है। भारत में इस वर्ष सामान्य से 10 प्रतिशत अधिक रकबा गेहूं की काश्त के अधीन आया है और पंजाब में नाममात्र रकबा कम हुआ है, जो सरसों की काश्त के अधीन चला गया है। यदि मार्च के अंत तक मौसम अनुकूल व ठंडा रहा और कोई प्राकृतिक आपदा न आई तो पंजाब में एक अनुमान के अनुसार उत्पादन 180 लाख टन तक पहुंच जाएगा। एक कृषि विशेषज्ञ ने तो वर्ष 2018-19 के रिकार्ड 182.62 लाख टन उत्पादन को छू जाने की सम्भावना बताई है जबकि भारत में गेहूं का रिकार्ड उत्पादन 114 मिलीयन टन तक होने के अनुमान लगाए जा रहे हैं। भारत का उत्पादन वर्ष 2020-21 में  109.59 मिलीयन टन हुआ था, जो मार्च में अधिक गर्मी पड़ने तथा बेमौसमी बारिश होने के कारण वर्ष 2021-22 में कम होकर 106.84 मिलीयन टन रह गया।
इस वर्ष गेहूं की बिजाई के अधीन रकबे में से विशाल रकबे पर गेहूं की गर्मी सहन करने वाली किस्में जैसे आई.सी.ए.आर.-भारतीय गेहूं तथा जौ के करनाल स्थित अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित डी.बी.डब्ल्यू.-303, डी.बी.डब्ल्यू.-187, डी.बी.डब्ल्यू.-222, डी.बी.डब्ल्यू.-327, डी.बी.डब्ल्यू.-370, डी.बी.डब्ल्यू.-371 व डी.बी.डब्ल्यू.-372 तथा पी.ए.यू. द्वारा विकसित पी.बी.डब्ल्यू.-826 किस्मों की बिजाई की गई थी, जिससे कटाई के निकट मार्च-अप्रैल में तापमान में सामान्य से अधिक वृद्धि से उत्पादन प्रभावित होने की सम्भावना बहुत कम हो गई है। इस कारण भी गेहूं उत्पादन के रिकार्ड अनुमान लगाए जा रहे हैं।
आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ ब्रीडर डा. राजवीर यादव के अनुसार तापमान का गिरना तथा ठंड पड़ना गेहूं के लिए बहुत लाभदायक है, परन्तु कोहरा व धुंध तथा लम्बे समय से धूप न निकलना गेहूं के विकास को बाधित करते हैं। बारिश न होने से भी गेहूं कम तापमान से इतना लाभ नहीं उठा रही, जितना उठाना चाहिए था। नवम्बर से अब जनवरी तक बारिश का न होना फसलों के लिए नुकसानदेह हो जाता है, चाहे ठंडा मौसम अगेती व पिछेती लगाई गई दोनों तरह की गेहूं की फसलों के लिए लाभदायक है। भारत सरकार से पंजाब सरकार के साथ कृषि करमन पुरस्कार प्राप्त करने वाले आई.ए.आर.आई. से सम्मानित प्रगतिशील किसान राजमोहन सिंह कालेका बिशनपुर छन्ना कहते हैं कि बारिश न होने से गेहूं में जो पीलापन आया है, उससे भयभीत होकर किसानों ने नाईट्रोजन की खुराक अधिक दे दी, जिससे उनका खर्च बढ़ गया। इसके अतिरिक्त पराली वाले खेत जिनमें बिना आग लगाए हैपीसीडर या सुपरसीडर से बिजाई की गई थी, उनमें फसल का सही प्रस्फुटन नहीं हुआ, जिस के बाद अब तूड़ी कम निकलेगी और उत्पादन भी प्रभावित होगा। 
गत सप्ताह कुछ दिन जो हल्की-हल्की धूप निकली, उससे अवश्य गेहूं की फसल को लाभ हुआ। वैसे तो गेहूं की बिजाई का समय लोहड़ी तक ही अनुकूल माना जाता है, परन्तु कुछ आलू तथा मटर वाले किसान अभी भी गेहूं बीजने की इच्छा रखते हैं। उन्हें पी.ए.यू. से सम्मानित प्रगतिशील किसान बलबीर सिंह जड़िया धर्मगढ़ अमलोह (जो आलू के बाद गेहूं की बिजाई करते हैं) सलाह देते हैं कि एच.डी.-3298 या पी.बी.डब्ल्यू.-757 किस्में ही लगाएं। जिनसे उन्हें 14-15 क्ंिवटल प्रति एकड़ उत्पादन की प्राप्ति हो जाएगी। ऐसे किसानों को नाइट्रोजन की खुराक जो पी.ए.यू. द्वारा आम किस्मों के लिए 110 किलो यूरिया, 55 किलो डी.ए.पी. या 155 किलो सुपरफासफेट सिफारिश की गई है, उसमें से नाइट्रोजन की खुराक कम कर देनी चाहिए। गेहूं की फसल में गुल्ली-डंडा 40 प्रतिशत तक उत्पादन घटाने के लिए हावी होता है। इसकी रोकथाम तथा इसे खत्म करने के लिए नदीन नाशकों के स्प्रे किए जाते हैं। गत कई दिनों से बादल छाए रहने के कारण बहुत-से किसान समय पर यह स्प्रे नहीं कर सके। उन्हें विशेषज्ञों की सलाह से उचित नदीन नाशक चुन कर मौसम साफ होने पर स्प्रे करना चाहिए। वैसे गुल्ली-डंडा इस वर्ष अपेक्षाकृत कम ही हुआ है। 
गेहूं पंजाब की मुख्य फसल है, जिसकी बिजाई प्रत्येक छोटा-बड़ा किसान करता है। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर इसकी सरकारी खरीद होती है। चाहे इस पर लागत अधिक आती है, परन्तु सुनिश्चित फसल होने के कारण प्रत्येक किसान इसे रबी के मौसम में पसंद करता है। केन्द्र के गेहूं भंडार में पंजाब प्रभावशाली योगदान डालता रहा है। गेहूं के निर्यात पर जो रोक लगी है, रिकार्ड उत्पादन के अनुमान के बाद, उसे हटाने की संभावना पर व्यापारी विचार कर रहे हैं। भारत विश्व में गेहूं पैदा करने वाला दूसरा बड़ा देश है।