अभी भी भाजपा के लिए एक चुनौती है ‘इंडिया’ गठबंधन

मुल्क तो मुल्क घरों पर भी कब्ज़ा है उसका,
अब तो घर भी नहीं चलते हैं सियासत के बगैर।
ज़िया ज़मीर का यह शे’अर मुझे आज उस समय याद आया जब आज के लगभग प्रत्येक बड़े समाचार पत्र का शीर्षक यह प्रभाव देता दिखाई दिया कि बस, ‘इंडिया’ गठबंधन का भोग पड़ ही गया है। सभी समाचार पत्र तथा मीडिया हाऊस पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तथा पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के क्रमश: बंगाल तथा पंजाब में सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा का इस प्रकार प्रचार कर रहे हैं कि जैसे अब ‘इंडिया’ गठबंधन का कोई अस्तित्व ही नहीं रहेगा। ऊपर से ‘कोढ़ में खाज’ की कहावत के अनुसार बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार के बयान के कुछ वे टुकड़े उछाले जा रहे हैं, जो यह प्रभाव देते हैं कि नितीश कुमार ने परिवारवाद के बारे बोल कर लालू प्रसाद यादव परिवार पर हमला बोल दिया है जबकि भारत सरकार के कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न सम्मान देने के फैसले को भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा नितीश कुमार के बीच किसी गुप्त समझौते के रूप में देखा जा रहा है और यह प्रभाव बनाने की कोशिश की जा रही है कि जैसे नितीश कुमार ‘इंडिया’ गठबंधन छोड़ कर भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में लौटने की तैयारी में हों। 
इससे पहले ही राम मंदिर के निर्माण तथा रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा में प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका के प्रचार से भारतीय मीडिया यह प्रभाव बना रहा है कि इस बार भाजपा 400 से अधिक सीटें जीतेगी। सो, यदि राम मंदिर के प्रभाव से भाजपा के 400 से अधिक सीटें जीतने की बात ठीक मान लें तो ‘इंडिया’ गठबंधन में नई दरारों को जिस ज़ोर-शोर से प्रचारित किया जा रहा है, उस हिसाब से तो भाजपा के लिये 450 सीटों से भी अधिक पर विजयी होना मामूली-सी बात होनी चाहिए।
परन्तु नहीं, वास्तविकता यह नहीं है। हम समझते हैं कि ममता बनर्जी तथा भगवंत मान के बयानों में कुछ भी नया नहीं है। जहां तक बंगाल का संबंध है, ममता बनर्जी शुरू से ही पश्चिम बंगाल की 42 में से 40 सीटों पर स्वयं लड़ना चाहती हैं और वह ‘इंडिया’ गठबंधन या कांग्रेस के लिए सिर्फ दो सीटें ही छोड़ने की बात कर रही हैं, क्योंकि वह नहीं चाहतीं कि भाजपा को हराने के नाम पर वह कांग्रेस या वामपंथी दलों को पुन: बंगाल में खड़ा होने का अवसर दें, परन्तु भाजपा उसके लिए बड़ा खतरा भी है। इसलिए  कांग्रेसी नेताओं के बयान हों या ममता के, ये सभी बयान राजनीतिक दांव-पेंच से बढ़ कर कुछ नहीं हैं, और दोनों पक्षों के अपने अस्तित्व के लिए ‘इंडिया’ गठबंधन में रहना ज़रूरी है। बस, एक कोशिश है कि कुछ अधिक सीटें मिल जाएं और इससे अतिरिक्त कुछ क्षेत्रों में तृणमूल कांग्रेस तथा कांग्रेस या वामपंथियों में मैत्रीपूर्ण मुकाबला इसलिए भी ज़रूरी माना जाता है कि यदि यह न हुआ तो कुछ कांग्रेस-पक्षीय वोट सीधे भाजपा की झोली में जा सकते हैं। 
जहां तक पंजाब का संबंध है, मुख्यमंत्री भगवंत मान तो पिछले कुछ सप्ताह से ही 13 सीटों पर लड़ने की घोषणा करने लगे हैं जबकि पंजाब कांग्रेस के 80-90 प्रतिशत बड़े नेता शुरू से ही ‘आप’ के साथ समझौते का कड़ा विरोध करते आ रहे हैं क्योंकि वे समझते हैं कि यदि ‘आप’ के साथ समझौता किया गया तो कांग्रेस अपना विपक्षी पार्टी का प्रभाव गंवा देगी और सरकार की एंटी इन्कम्बैंसी (सत्ता-व्यवस्था विरोधी रुझान) की कीमत कांग्रेस को चुकानी पड़ सकती है और 2027 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का काडर ‘आप’ के साथ जा मिलेगा। इसका परिणाम कांग्रेस के दिल्ली में ‘आप’ के साथ किये समझौते जैसा ही निकलेगा। सो, हम समझते हैं कि भगवंत मान विवशतापूर्वक ही अब 13 सीटों पर लड़ने तथा जीतने ललकारे मार रहे हैं, नहीं तो वह तथा ‘आप’ प्रमुख अरविंद केजरीवाल तो सीट विभाजन समझौता करने के लिए ही ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठकों में जाते रहे हैं। अब भी हमारी सूचना के अनुसार पंजाब को छोड़ कर ‘आप’ तथा कांगे्रस के बीच दिल्ली, हरियाणा, गोवा, गुजरात तथा कुछ अन्य राज्यों में समझौता लगभग सफल हो चुका है। वैसे भी पंजाब में ‘आप’ तथा कांग्रेस में समझौता ‘आप’ के समर्थन में आये अकाली वोट की वापसी का कारण बन सकता था,  क्योंकि कुछ अकाली वोट अभी भी ऐसे हैं, जो किसी भी कीमत पर कांग्रेस के पक्ष भुगतने के लिए तैयार नहीं हैं। यदि कांग्रेस तथा ‘आप’ में समझौता हो जाए तो यह स्थिति भाजपा को भी अकाली दल के साथ समझौता करने के लिए विवश कर सकती है तथा इस प्रकार यह सीधा द्विपक्षीय मुकाबला बन सकता है। अब भी चाहे भाजपा तथा अकाली दल में समझौते के आसार नहीं के बराबर हैं, परन्तु यदि यह हो जाता है तो तीन पक्षीय मुकाबला काफी कड़ा हो सकता है। हालांकि चार पक्षीय मुकाबले में भी फिरोज़पुर तथा होशियारपुर जैसी कुछ सीटों ऐसी हैं जहां अकाली दल तथा भाजपा कड़ी टक्कर दे सकते हैं। वैसे एक बात और नोट करने वाली है कि भाजपा के लिए राम मंदिर का सबसे बड़ा प्रभाव उत्तरी तथा केन्द्रीय भारत में है, जहां पहले ही भाजपा बहुत आगे है। यहां और सीटें बढ़ाना इतना आसान नहीं है। दक्षिण भारत तथा पूर्व भारत में राम मंदिर के निर्माण का उतना प्रभाव नहीं दिखाई दे रहा। हम समझते हैं कि ममता बनर्जी तथा अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक निकटता पर आधारित दांव-पेंच ही हैं कि ममता तथा भगवंत मान ने एक समय एक जैसी घोषणाएं की हैं। वैसे लियाकत जाफरी की शब्दों में :
जिसको तुम चाहो कोई और न चाहे उसको,
इसको कहते हैं मोहब्बत में सियासत करना।
अर्थात ममता बनर्जी नहीं चाहतीं कि पश्चिम बंगाल के उसके किले में किसी अन्य के पांव लग सकें।
भाजपा की कई टिकटें कटेंगी 
फूलों का बिखरना तो मुकद्दर ही था लेकिन,
कुछ इसमें हवाओं की सियासत भी बहुत थी। 
परवीन शाकिर का यह शे’अर भाजपा के कई मौजूदा लोकसभा सांसदों के भाग्य पर इस बार बहुत चरितार्थ होगा, क्योंकि ऐसी चर्चा सुनने को मिल रही है कि इस बार भाजपा लोकसभा चुनावों में लगभग 100 से 150 नये चेहरे उतारने के बारे में सोच रही है। इसलिए पिछली बार के जिन जीते या हारे उम्मीदवारों को भाजपा ने इस बार टिकट नहीं दिये, उनके मुकद्दर के फूलों का बिखरना तो तय ही है। 
पता चला है कि इस बार देश के शेष भागों के साथ-साथ दिल्ली में भी तीन या चार लोकसभा सांसदों की टिकटें बदली जा सकती हैं, क्योंकि उनके रिपोर्ट कार्ड के अनुसार उनके जीतने की संभावनाएं कम दिखाई दे रही हैं। ऊपर से दिल्ली में कांग्रेस तथा ‘आप’ के समझौते के कारण हालात उतने आसान भी नहीं रहे। पंजाब में भी यदि अकाली दल से समझौता नहीं होता तो भाजपा द्वारा बड़ी संख्या में बाहरी पार्टियों से लाये गये नेताओं के बावजूद राह कोई बहुत आसान नहीं है। 
चर्चा है कि भाजपा इस बार दिल्ली, चंडीगढ़, हरियाणा तथा पंजाब में पूर्व नौकरशाहों, पूर्व आई.ए.एस., आई.पी.एस., आई.एफ.एस. तथा कुछ बड़ी प्रसिद्ध हस्तियों को मैदान में उतारने बारे सोच रही है। इनमें अमरीका में भारत के राजदूत रहे तरनजीत सिंह संधू को भी मैदान में उतारने की चर्चा चल रही है जबकि चंडीगढ़ से संबंधित एक बड़े शैक्षणिक संस्थान के प्रमुख के नाम की चर्चा भी सुनाई दे रही है। हालांकि उनके सलाहकार उन्हें चुनावी राजनीति से दूर रह कर राज्यसभा के लिए कोशिश करने का परामर्श दे रहे बताये जाते हैं। इसके अतिरिक्त इस बार स्वर्गीय भाजपा नेताओं अरुण जेतली, सुषमा स्वराज तथा पंजाब के एक स्वर्गीय भाजपा नेता के पारिवारिक सदस्यों को भी लोकसभा टिकट दिये जाने पर विचार किये जाने की चर्चा सुनाई दे रही है। 
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