मेरा जांबाज़ पड़ोसी जनरल राजिन्द्र नाथ 

मैं 1987 से चंडीगढ़ के सैक्टर 36 में रह रहा हूं। इसे पूर्व सैन्य अधिकारियों ने बसाया था। मेरे अधिकतर पड़ोसी वहीं हैं। सामने घर वाला मेजर जनरल राजिन्द्र नाथ 1971 के बंगलादेश युद्ध का नायक है। वह मेरी तरह पैतृक रूप से होशियारपुरिया था। उसके पिता शामचुरासी से थे और होशियारपुर में वकालत करते थे। निश्चय ही मेरे विचार उसके साथ मिलते थे। वह इस माह की 18 तिथि को है से था हो गया है। 97 वर्ष का भरपूर जीवन जीने के बाद। मेरे लिए उसका चले जाना एक बड़े भाई के बिछोड़े की भांति है।

हमारी साझ का एक और कारण उसका लेखक होना भी था। अंतिम श्वास लेने तक पांच पुस्तकें, 850 लेख तथा रिव्यू लिख चुका था। सैन्य जीवन से संबंधित। उसने मेरी पत्नी की भांति समाज सेवा का बीड़ा भी उठा रखा था। 38 वर्षों से इंस्टीच्यूट ऑफ द ब्लांइड (नेत्रहीन संस्था) से जुड़ा हुआ था। इसका उपाध्यक्ष तथा अध्यक्ष होते हुए उसने इतना काम किया था कि दानी सज्जनों ने इसका फंड 550 रुपये से बढ़ा कर दो करोड़ कर दिया था। इस राशि के ब्याज से 60 लड़कियों व 70 लड़कों के रहने के लिए होस्टल ही नहीं, राशन-पानी, वर्दियां, स्टेशनरी तथा लेख-कूद का सामान भी प्राप्त किया जाता है। वर्तमान में यह संस्था भारत में सबसे उत्तम मानी जाती है। बारिश आए, आंधी आए, मैंने अपने हठी पड़ोसी को समय पर तैयार होकर घर से जाते देखता आया हूं।
जनरल नाथ की समाज सेवा ब्लांइड स्कूल तक ही सीमित नहीं थी। पशु-पक्षियों को अत्याचार से बचाने वाली सोसायटी का संस्थापक भी वही था और पंजाब यूनिवर्सिटी में डिफैंस स्टडीज़ विभाग की स्थापना करवाने वाला भी वही। 1996 में केन्द्र शासित चंडीगढ़ की स्वतंत्र नगर पालिका की स्थापना हुई थी। पहले पांच वर्ष इसका कामकाज चलाने के लिए जो टीम नामज़द की गई, उसमें जनरल नाथ का नाम भी शामिल था। इन उपलब्धियों के कारण ही उन्हें 1988 से 1990 तक पंजाब के सेवामुक्त सैनिकों की कार्पोरेशन का चेयरमैन बनाया गया। वह 1988 की बाढ़ की तबाही के समय ज़रूरतमंदों को रोटी, कपड़ा व आवास देने वालों में अग्रणी भी था। सेवामुक्त सैनिकों की सम्भाल के लिए चंडीगढ़ में डीएसओआई की स्थापना का नुक्ता उठाने वाला भी वही था। उसकी सैनिक गतिविधियों बारे तो मुझे बहुत बाद में पता चला। इंडियन मिलिट्री अकादमी में पढ़ने के बाद जब 1947 में उसे 11 गोरखा राइफल्स में कमिशन मिला तो 1947-48 वाला जम्मू-कश्मीर युद्ध ज़ोरों पर था। उसकी पहली पोस्टिंग वहीं हुई।
1950-51 में उसे आर्मी मुख्यालय नई दिल्ली की मिलिट्री इंटैलीजैंस डायरैक्टोरेट का कार्य सौंपा गया तो उसके लिए अक्साई चिन में चीन की हरकतें देखने वाली टीम का साथ देना भी गर्व की बात थी। यह जान कर हैरान न होना कि गत सदी के 60वें दशक में नागालैंड के आतंकियों को प्यार-मोहब्बत से जीतने वालों में अग्रणी भी वही था। मैं यह भी बता दूं कि कल तक मेरी जानकारी उसकी ओर से लिखी गईं पुस्तकों तथा समाचार पत्रों में प्रकाशित होते लेखों तक ही सीमित थी और या फिर पाकिस्तान के कर्नल अंसारी तथा पाकिस्तनी सेना की डिवीज़न 9 द्वारा उसके आगे हथियार डालने तक। 
1971 के बंगलादेश युद्ध के बाद जम्मू-कश्मीर में पयादा डिवीज़न की कमान संभालने तथा अपनी सर्विस के अंतिम दो वर्ष देहरादून स्थित उस इंडियन मिलिट्री अकादमी का कमांडैंट होना, जहां से पढ़ कर उसने कमिशन लिया था मान-सम्मान की बात थी। 
जिस बात का मुझसे या उसके करीबियों या पारिवारिक सदस्यों के अतिरिक्त किसी को नहीं पता, वह 2016 में उसकी पत्नी कृष्णा देवी का बिछोड़ा था। इसने बड़े युद्ध लड़ने वाले जरनैल को भी सिर से पांवों तक झकजोड़ कर रख दिया था। इतना अधिक कि वह अपने बड़े बेटे दिनेश कुमार कपिला की अंग्रेज़ी भाषा में लिखी पुस्तक ‘द वेरीड ह्यूज़ ऑफ लाइफ’ (जीवन के अलग-अलग रंग) भी नहीं पढ़ सका था। इसका एक कांड लेखक द्वारा पिता से मिले सबक बारे है। उसने यह सबक स्कूल अध्यापकों की भांति नहीं दिए थे। खाने की मेज़ पर बैठे हुए या लम्बी सैर पर इकट्ठे चलते हुए प्रक्ट किए थे। इसका संबंध अपने परिवार तथा सहकर्मियों के साथ विचरण करने से था। जनरल साहिब के जीवन का मुख्य सिद्धांत जीवन को सहर्ष जीना तथा निराशा को आशा में बदलना था। 
मेरे लिए तो यह भी गर्व की बात थी कि वह होशियारपुर के उस सरकारी कालेज में पढ़ा था, जहां शेक्सपीयर की कुल रचनाओं को पंजाबी में अनुवाद करने वाले सुरजीत हांस तथा देश के प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचने वाले मनमोहन सिंह भी पढ़ते थे। यह भी कि वह घंटी दिए बिना मेरे घर आकर दु:ख साझा कर जाता था। चाहे उसका बेटा दिनेश, पुत्रवधु अनिता, पौत्री प्रियंका तथा पड़पौत्री अनीशा भी बड़े प्यार से मिलते हैं और मिलते रहेंगे परन्तु हम-उम्र जैसी बात नहीं बनेगी। वह मेरे लिए बड़े भाई वाला सहारा था जो कभी नहीं मिलेगा।   
अंतिका
—एक लोक बोली—
रब्ब वरगा आसरा तेरा 
जिऊंदा रह मित्तरा।