भाजपा ने दिया ‘इंडिया’ गठबंधन को बड़ा झटका

अब यह तय हो गया है कि भाजपा एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को विपक्षी दलों एवं उनके नेताओं के द्वारा हल्के में लेने की स्थितियां उनके लिये कितनी भारी हो सकती है। दूसरा भारत की राजनीति में भाजपा अगर कुछ करने की ठान लेती है तो वह उसे पूरा करती ही है। बिहार में सत्ता का समीकरण बदलना इसी बात का परिणाम है। आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा की रणनीति का यह एक बड़ा दांव सफल होता हुआ दिख रहा है। वैसे भाजपा एवं जेडीयू नेता नितीश कुमार के बीच भीतर ही भीतर यह खिचड़ी विगत कुछ समय से पक रही थी। इसका पहला ठोस संकेत जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिये जाने की घोषणा पर उनके द्वारा पहले भाजपा सरकार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिये धन्यवाद से सामने आया। दूसरा बड़ा संकेत कर्पूरी ठाकुर की सौवीं जयंती के मौके पर आयोजित समारोह में नितीश कुमार ने तंज कस कर कि आजकल बहुत से लोग अपने परिवार के सदस्यों को ही आगे बढ़ाने में लगे रहते हैं, के रूप में सामने आया। इसे सीधे तौर पर लालू प्रसाद यादव पर हमला माना गया जिनकी पार्टी के साथ वह बिहार में सरकार चला रहे हैं।
लोकसभा चुनाव में अब दो-ढाई महीने का समय ही शेष हैं। भाजपा हर हालत में नरेंद्र मोदी को ही तीसरी बार सत्ता के सिंहासन पर बैठाना चाहती है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर से पैदा हुई हिंदुत्व लहर पर सवार भाजपा जाति को साधने में भी पीछे नहीं है। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान हो चुका है। दलितों को लुभाने के लिए बड़ा अभियान शुरू करने का प्लान भी तैयार हो चुका है। दूसरी तरफ विपक्ष खासकर उसके सबसे बड़े गठबंधन ‘इंडिया’ की नज़र हर हाल में मोदी के विजय रथ को रोकने पर है लेकिन लगभग टूट एवं बिखर चुके ‘इंडिया’ किस तरह मोदी रथ को रोक पायेंगी क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले ही ‘इंडिया’ गठबंधन हांफने लगा है। नितीश कुमार का पाला बदलना वैसे ही है जैसे युद्ध शुरू होने से ऐन पहले सारथी ही पाला बदल ले। गठबंधन के नितीश ही नहीं, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल भी कांग्रेस को आंख दिखा रहे हैं जिससे गठबंधन की गाड़ी आगे सरकती नज़र नहीं आ रही है। गठबंधन के भविष्य पर सवालिया निशान ही नहीं, ग्रहण लग गया है।
बिहार की उठापटक एवं बदलते राजनीतिक समीकरणों का सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा। बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं। अगर नितीश कुमार भाजपा से मिलकर एनडीए गठबंधन का हिस्सा बनते हैं, तो इनमें से अधिकाधिक लोकसभा सीटों पर एनडीए प्रत्याशियों की जीत की संभावना अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाएगी। बिहार में नितीश की इसी भूमिका के कारण ही ‘इंडिया’ गठबंधन में उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही थी। विपक्षी दलों के बीच गठबंधन करके ज्यादा से ज्यादा सीटों पर एनडीए के खिलाफ साझा प्रत्याशी खड़ा करने का यह पूरा प्रयास नितीश कुमार की ही पहल पर शुरू हुआ था। ऐसे में उनके जाने के बाद यह प्रक्रिया किस तरह से और कितनी आगे बढ़ेगी, इस पर संदेह के बादल मंडरा रहे हैं।
राजनीति में जब नीति गायब होने लगती है तो बेमेल गठबंधनों के बनते एवं बिखरते के दृश्य देखने को मिलते हैं और इस बुराई के लिए कमोबेश सभी राजनीतिक दल समान रूप से जिम्मेदार हैं। देखा जाए तो सबकी नज़र में 2024 का लोकसभा चुनाव है जहां 40 सीटों वाले बिहार की भूमिका को अहम मानते हुए अभी सारे दांव-पेंच वहीं चल रहे हैं। बिहार में नया राजनीतिक समीकरण कितना बदलाव लाएगा, यह भविष्य ही बताएगा। ऐसे में लंबे समय से कयास लगाए जा रहे थे कि नितीश कुमार कभी भी भाजपा का हाथ थाम सकते हैं। 
वैसे भी अब नितीश की छवि अवसरवादी नेता की हो गयी है। दरअसल यह मौकापरस्ती की हद है जिसका राजनीति में प्रतिकार होना चाहिए। वास्तव में बिहार का ही सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि इस राज्य में जातिवादी और परिवारवादी राजनीति इस प्रदेश की जनता के मौलिक अधिकारों से उनको वंचित किये हुए हैं और इस प्रांत के लोगों को भारत का सबसे गरीब आदमी बनाया हुआ है जबकि बिहारियों का भारत के सर्वांगीण विकास में योगदान कम नहीं हैं। सबसे अधिक मेहनती एवं बुद्धिजीवी लोग यही से आते हैं लेकिन दूषित राजनीति की कालिमाएं यहां के धवलित इतिहास को धुंधलाती रही है। 
यहां की राजनीति की सत्तालोलुपता एवं भ्रष्टता लोकतांत्रिक मूल्यों को ध्वस्त करती रही है। नितीश बाबू ने जिस महागठबंधन को बनाया, बनने के साथ ही उसकी उल्टी गिनती शुरु हो गयी थी। अब तो खुद सारथि ही अपना पाला बदल रहा है।
आजादी के अमृतकाल के पहले लोकसभा चुनाव की आहट अब साफ-साफ सुनाई दे रही है। भारत के सभी राजनीतिक दल अब पूरी तरह चुनावी मुद्रा में आ गये हैं और प्रत्येक प्रमुख राजनैतिक दल इसी के अनुरूप बिछ रही चुनावी बिसात में अपनी गोटियां सजाने में लगे हैं। टुकड़े-टुकड़े बिखरे कुछ दल फेविकोल लगाकर ‘इंडिया’ गठबंधन की छतरी के नीचे आये ज़रूर लेकिन सीटों के बंटवारे एवं अन्य मुद्दों पर अब बिखर चुके हैं। सत्ता तक पहुंचने के लिए कुछ दल परिवर्तन को आकर्षक व आवश्यकता बता रहे थे, तो कुछ प्रमुख दलों के नेता स्वयं को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर देख रहे थे लेकिन सबके सपनों पर ग्रहण लग गया। विपक्षी दल येन-केन-प्रकारेण भाजपा को सत्ता से बाहर करने में जुटे भले ही हो लेकिन भाजपा ने चुनाव से पहले ही उनको उनकी जमीन दिखा दी है। भाजपा पूर्ण आत्मविश्वास एवं प्रखरता के साथ आगे बढ़ रही है। जिन राज्यों में उसके लिये चुनौतियां अधिक प्रखर है, उन्हीं राज्यों में वह समग्रता एवं एकाग्रता से अपनी रणनीतियों को अंजाम दे रही है। बिहार भी उन्हीं में एक था। भाजपा की सबसे बड़ी विशेषता है कि वह अपनी हर चुनौती के कारणों को बड़ी गहराई से लेते हुए उन कारणों को समझने एवं चुनौतियों को संभावनाओं में बदलने के गणित को बिठाने में माहिर है।