किसान अपनी आय कैसे बढ़ाएं ?

पंजाब के कुल भौगोलिक रकबे का 82 प्रतिशत रकबा लगभग 41.3 लाख हैक्टेयर रकबा बिजाई के अधीन है। लगभग 35 लाख हैक्टेयर रकबे पर गेहूं की तथा करीब 31 लाख हैक्टेयर रकबे पर धान, बासमती की काश्त की जाती है। लगभग 50 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर गेहूं तथा 72 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर औसतन धान का उत्पादन होता है, जिससे लगभग 1.45 से 1.50 लाख रुपये प्रति हैक्टेयर की किसानों को कमाई होती है। ज़मीन का ठेका 1.40 लाख से लेकर 1.50 लाख रुपये प्रति हैक्टेयर तक चल रहा है। इस प्रकार किसानों की आय गेहूं-धान फसली चक्कर में बहुत कम रही है। फिर यदि प्राकृतिक आपदाएं जैसे गत वर्ष बाढ़ तथा गत दो वर्ष बेमौसमी बारिश तथा पकने के समय मार्च के अंत में जो अधिक गर्मी से गेहूं का उत्पादन कम हुआ, उससे उत्पादन प्रभावित हुआ है, वह किसानों की कमाई तथा आय को और कम करते हैं। कीड़े-मकौड़ों के हमले तथा बीमारियां भी किसानों की आय तथा कमाई का क्षरण करते हैं। फिर इस फसली चक्र में बहुत समस्याएं आती हैं। व्यापक स्तर पर प्राकृतिक साधन इस्तेमाल किए जाते हैं। पंजाब के भूजल का स्तर कम होता जा रहा है। लगभग 80-85 प्रतिशत ब्लाकों का भूजल इस स्तर पर नीचे जा चुका है कि वहां कोई नया ट्यूबवैल लगाना संभव नहीं। एक ही फसली चक्र से आर्थिक रूप में किसान बड़ा नुकसान उठा रहे हैं। यदि वे अन्य वैकल्पिक फसलों की बिजाई करें और उनका सही मंडीकरण हो तो प्राकृतिक साधनों की बचत होगी तथा उनकी आय में भी वृद्धि होगी।  
फसली विभिन्नता में फलों तथा सब्ज़ियों की काश्त की विशेष भूमिका है। फलों की काश्त के अधीन 97000 हैक्टेयर रकबा है, जिससे लगभग 21.5 लाख टन उत्पादन होता है, परन्तु यह कुल रकबा फसली रकबे का केवल 2 प्रतिशत है जबकि कृषि विशेषज्ञों के अनुसार इसे कम से कम 7 प्रतिशत तक बढ़ाने की ज़रूरत है। इस रकबे में से भी 48 प्रतिशत रकबे पर एक ही फल किन्नू की काश्त की जाती है। प्रत्येक वर्ष किन्नू की कीमत का कम होना तथा बढ़ना सम्भावित है। इस वर्ष किन्नू उत्पादक मंदे का सामना कर रहे हैं। कई बागबानों ने तो मंदे से परेशान होकर किन्नू के बाग भी नष्ट कर दिए। सब्ज़ियों की काश्त के अधीन भी धीरे-धीरे हर साल रकबा कुछ बढ़ तो रहा है, परन्तु किसानों की आय बढ़ाने के लिए इसे तेज़ी से बढ़ाना ज़रूरी है। एक ही फसली चक्र के अतिरिक्त अन्य फसलें पैदा करने के लिए टैक्नालोजी तथा तकनीकी बारीकियों को सूझबूझ से जानना तथा इस्तेमाल करना लाभ बढ़ाने के लिए ज़रूरी है। ग्रीन हाऊस तथा सुरंगों के नीचे बिजाई की तकनीकें अपना कर सब्ज़ियों को पूरा वर्ष प्रत्येक मौसम में उगा कर आय बढ़ाई जा सकती है। तकनीक के इस्तेमाल से अगेती-पिछेती काश्त करके किसान कमाई में वृद्धि कर सकते हैं। तकनीकी ज्ञान से उत्पादन तो बढ़ता ही है, गुणवत्ता में भी सुधार आता है, जो किसानों को अधिक आय उपलब्ध करता है। शिमला मिर्च, टमाटर तथा खीरा तकनीकों द्वारा मौसमी तथा बेमौसमी दोनों ही उगाए जा सकते हैं। सब्ज़ियों की बेमौसमी पौध भी तैयार की जा सकती है। उत्पादकों को यह ध्यान में अवश्य रखना होगा कि सब्ज़ियों के लिए कोहरा बड़ा हानिकारक है। विशेषकर खीरा, बैंगन तथा शिमला मिर्च जैसी सब्ज़ियों के लिए। सुरंगों में काश्त करके उत्पादक इन सब्ज़ियों की फसल को कोहरे से बचा सकते हैं। सुरंगों की तकनीक विशेषकर छोटे किसानों के लिए लाभदायक है। वे कम रकबे से ही अधिक आय प्राप्त कर सकते हैं। पूरा वर्ष मूली उगाने हेतु किसानों के लिए अलग-अलग मौसम में बीजने वाली किस्में उपलब्ध हैं, परन्तु अब तो वे गाजर भी पूरा वर्ष पैदा कर सकते हैं। आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा द्वारा विकसित ‘पूसा वृष्ति’ किस्म की काश्त उत्पादक जुलाई माह के शुरू में कर सकते हैं। इस किस्म की गाजर 95 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। पीएयू द्वारा विकसित गाजर की ‘पंजाब ब्लैक ब्यूटी’ किस्म अधिक उत्पादन देने के अतिरिक्त कैंसर का मुकाबला करने की शक्ति रखती है। यह पकने को 110 दिन लेती है। इसे काली गाजर के तौर पर जाना जाता है। पूसा संस्थान की ‘आसिती’ किस्म की गाजर भी काले रंग की है, जिसका उत्पादन लगभग 250 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर है। इसकी सितम्बर-अक्तूबर में बिजाई करके दिसम्बर-जनवरी में पुटाई की जा सकती है। प्याज की बिजाई हेतु भी यह अनुकूल समय है। प्याज़ की पौध 6 सप्ताह की होनी चाहिए।  
अब खेत भी छोटे हो रहे हैं। गेहूं-धान का फसली चक्र कम लाभदायक होता जा रहा है। लगभग 65 प्रतिशत किसानों के पास 10 एकड़ से कम भूमि रह गई है। छोटे खेत मशीनरी के लिए भी लाभदायक नहीं। महंगी मशीनें खरीदने से भी किसान घाटे में जा रहे हैं। कस्टम सेवा केन्द्रों से बहुत कम किसान मशीनरी किराये पर लेकर इस्तेमाल करते हैं। यह सुविधाएं प्रत्येक किसान को समय पर उपलब्ध भी नहीं होतीं। पंजाब में लगभग 4.95 लाख ट्रैक्टर हैं, जो वार्षिक 1000 घंटे भी नहीं चलते। मुश्किल से वर्ष में औसतन 250 से 300 घंटे ही चलते हैं। यह मशीनरी का अतिरिक्त खर्च किसानों की शुद्ध आय को कम करता है। अब सरकार द्वारा महंगी-महंगी मशीनें सब्सिडी पर दी जा रही हैं। सब्सिडी के चक्कर में जिन किसानों के लिए यह मशीनरी लाभदायक नहीं, वह भी इन्हें खरीद लेते हैं। ये उनकी आय को घटाने का ज़रिया बनती हैं। 
अधिकतर किसान उधार या ऋण लेकर कृषि सामग्री दुकानदारों, आढ़तियों तथा कृषि व्यापारियों से खरीदते हैं। उन्हीं से ही वे कृषि संबंधी जानकारी तथा सलाह लेते हैं। उन्हें चाहिए कि वे कृषि विशेषज्ञों से सम्पर्क करें ताकि आधुनिक कृषि तकनीकें अपना कर सस्ती पैदावार करके अधिक कमाई कर सकें। इस समय खेतों में किया जा रहा अधिक खर्च किसानों की शुद्ध आय को कम कर रहा है। किसान विशेषज्ञों से नई तकनीकों का ज्ञान प्राप्त करके कृषि को लाभदायक बना सकते हैं।