पड़ोसी देश के समक्ष खड़ी गम्भीर चुनौतियां

पड़ोसी देश पाकिस्तान में आम चुनाव के लिए सिर्फ एक सप्ताह का समय ही रह गया है। इस देश के बनने के बाद से ही वहां जिस प्रकार की राजनीतिक ड्रामेबाज़ी देखने को मिलती रही है, वह बेहद हैरान करने वाली है। उस समय जल्दबाज़ी में बनाए गये इस देश के ढांचे में ही कई प्रकार की त्रुटिया रह गई थीं, जिन्हें समय-समय पर दूर करने की बजाय इसकी दिशा और भी भटकती गई। इस कारण ही आज यह देश प्रत्येक पक्ष से तबाही के कगार पर खड़ा दिखाई देता है। विशेष तौर पर इसकी दयनीय आर्थिक स्थिति बुरी तरह खटकने लग पड़ी है। इसके साथ ही यह आज विश्व भर के आतंकियों का अड्डा बन गया है और इससे ऐसे हालात पैदा हो गए हैं, जिन्हें संभाल पाना वहां की किसी भी सरकार के बस की बात नहीं रही। यह अपने अस्तित्व से ही लगातार सैन्य कमांडरों की कमान के अधीन ही रहा है। यदि वहां चुनी हुई सरकारें भी बनती रही हैं तो उन्हें भी सेना के निर्देश के अनुसार ही चलना पड़ा है। चाहे वहां सेना आतंकवादियों के जमावड़े को तो संभालने में सफल नहीं हो सकी, परन्तु पाकिस्तान सरकार को सेना के निर्देश के अनुसार ही चलना पड़ता है। इसीलिए ही वहां की राजनीति अक्सर डावांडोल रही है और भंवर में फंसी रही है। जो भी चुनी हुई सरकार सेना की इच्छा के अनुसार नहीं चलती उसे गिरा दिया जाता है। 
प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी इमरान खान की तहरीक-ए-इन्साफ पार्टी भी अब राजनीतिक भंवर में फंसी दिखाई देती है। बात पिछले समय से शुरू करते हैं, जब नवाज़ शरीफ की चुनी हुई सरकार जो भारत के साथ अच्छे संबंध बनाना चाहती थी, का तख्ता पलट कर सेना प्रमुख परवेज़ मुशर्रफ ने सत्ता पर कब्ज़ा करके 9 वर्ष तक अपना शासन चलाया था। इसी समय में वर्ष 2008 में चुनाव के समय से पहले पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की वरिष्ठ नेता बेनज़ीर भुट्टो की गोलियां मार कर हत्या कर दी गई थी। उसके बाद हुए चुनाव में इमरान खान तथा उनकी पार्टी ने चुनावों का बहिष्कार कर दिया था। उनका यह आरोप था कि इन चुनावों में बड़े स्तर पर हेराफेरी की जाएगी। इसलिए इमरान ने अमरीका सहित उस समय के राष्ट्रपति जरनल परवेज़ मुशर्रफ पर भी यह आरोप लगाया था कि वह भुट्टो की पाकिस्तान पीपल्ज़ पार्टी की मदद कर रहे हैं लेकिन उसके स्थान पर उन चुनावों में नवाज़ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) पार्टी चुनाव जीत गई थी। इसके बाद हुए वर्ष 2013 और वर्ष 2018 के चुनावों में उपरोक्त तीनों ही राजनीतिक पार्टियां उभर कर सामने आई थीं।
हैरानी की बात यह है कि अब 8 फरवरी को होने जा रहे आम चुनावों में पहले की तरह ही राजनीतिक ड्रामे को दोहराया जा रहा है। तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके नवाज़ शऱीफ की पार्टी को इस कारण हार मिली थी, क्योंकि उस समय सेना इमरान खान के समर्थन में थी। वर्ष 2018 में जब आम चुनावों को दो सप्ताह ही रह गये थे तो नवाज़ शरीफ को अदालत ने भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी करार देते हुए 10 वर्ष की सज़ा सुनाई थी और उसके बाद ‘पैनामा पेपर केस’ संबंधी उनको बड़ी सज़ा का भागीदार बनाया गया था लेकिन इस बार के हो रहे चुनावों में आरोपी नवाज़ शरीफ नहीं, बल्कि इमरान खान को बनाया गया है। उनको पिछले वर्ष से जेल में बंद कर दिया गया है। उन पर 150 के लगभग केस बनाये गये हैं। पिछले दिनों उनको अलग-अलग केसों में 3 वर्ष, 10 वर्ष और अब 14 वर्ष की सज़ा सुनाई गई है। उनके चुनाव लड़ने पर भी पाबंदी लगा दी गई है। उनकी पार्टी के चुनाव चिन्ह ‘क्रिकेट बैट’ पर भी पाबंदी लगा दी गई है, जिसके कारण कोई भी उम्मीदवार इस चुनाव चिन्ह पर चुनाव नहीं लड़ सकता। उनकी पार्टी के उम्मीदवार आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने के लिए मज़बूर हैं।
दूसरी तरफ अब मुख्य चुनाव मुकाबला पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) और पाकिस्तान पीपल्स पार्टी में रह गया है। लेकिन यह बात यकीनी है कि जो भी पार्टी जीत प्राप्त करेगी, उसको सेना के अधीन ही सरकार चलाने के लिए मज़बूर होना पड़ेगा। पाकिस्तान की नई बनी सरकार की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी अत्यन्त बिगड़े आर्थिक हालात में से देश को बाहर निकालने की होगी। दूसरे बड़े मामले आतंकवाद के प्रति नीति धारण करने के लिए भी सरकार को सेना की तरफ ही देखना पड़ेगा। ऐसी अविश्वास की स्थिति में हमारे पड़ोसी देश का ऊंट किस करवट बैठता है, यह देखने वाली बात होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द