मशीन है गड़बड़ कर सकती है 

जब से ईडी और आयकर विभाग सक्रिय हुआ है। तब से विपक्ष की शामत आ गई है। विपक्ष की घेरेबंदी की जा रही है। वह कभी अपना मुंह खोलकर हवा में सांस लेना चाहता है, तभी कोई न कोई उसके मुंह पर मास्क लगा देता है। वह समझ नहीं पाता कि ऐसा उसके साथ क्यों किया जा रहा है। उसके सांस लेने पर भी पहरा लगा हुआ है। एक सज्जन को जब भी खुली हवा में सांस लेनी होती है, तो वे विदेश यात्रा पर चले जाते हैं। खुलकर सांस लेते हैं और सांस लेने और बोलने पर प्रतिबंध का रोना रोकर विदेशियों से सहानुभूति प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। उन्हें अपने देश में कुछ भी अच्छा नहीं लगता। स्थिति बड़ी विकट है। लोकतंत्र में ज़रूरी है कि जनता का शासन जनता के द्वारा जनता के लिए हो, लेकिन जहां किसी को लोकतंत्र की परिभाषा ही मालूम न हो, वहां लोकतंत्र की बात कैसे की जा सकती है। वैसे भी हर कोई सुविधा का लोकतंत्र चाहता है। जिसे सत्ता की मलाई का सेवन करना हो, उसे येन केन प्रकारेण सत्ता प्राप्त करने के लिए यत्न करना पड़ता ही है। कुछ लुभावने वादे करने पड़ते हैं। लोगों को लालच देना पड़ता है, ताकि वे अपने निज लालच की पूर्ति के लिए लालच प्रदाता के हाथ मज़बूत कर सकें। चुनाव ईवीएम से हो तो अपने लालच को पूरा करने वाला बटन दबा सकें। यदि बैलेट पेपर से चुनाव हो, तो बूथ कैप्चरिंग करके अपने आका के नाम पर मतपत्रों पर ठप्पे लगाकर मतपेटियों को लबालब भर सकें, ताकि उनका आका या आका का प्रतिनिधि चुनाव जीत सके। बहरहाल चुनावों में विजय प्राप्त करने के लिए विपक्ष को डराने का खेल यदा कदा चलता ही रहता है। जो जो सत्ता की हां में हां न मिलाए यानी कि सत्ता को आंखे दिखाए, उसका उपचार ही छापेमारी है। छापेमारी भी गारंटीड, जहां से अकूत धन संपदा, करोड़ो रूपये की नकदी और करोड़ों के जेवरात मिलने की संभावना हो, वहां छापेमारी हो, तो सोने पर सुहागा होता ही है। सोने पर सुहागे के लिए नोटों की गिनती किया जाना ज़रूरी होता है। जैसे वोट बटोरने और गिनती के लिए ईवीएम अत्याधुनिक है, वैसे ही छापे की रकम को गिनने के लिए अत्याधुनिक साधन नोट गिनने वाली मशीन होती है। उसमें गलती की कोई गुंजाईश नहीं रहती। मगर जिसे ईवीएम में दोष दिखाई देता हो, वह नोट गिनने वाली मशीन पर संदेह क्यों न करे? जैसे ईवीएम पर संदेह किया जाता है, वैसे ही नोट गिनने वाली मशीन पर भी शंका की जा सकती है कि ईवीएम सौतेला व्यवहार करती है।
 वह सत्ता पक्ष के लोगों के यहां छापेमारी में कम नोट बताती है दो नोट को एक नोट में गिनती है और विपक्षी लोगों के यहां नोटों की गिनती बढ़ा चढ़ा कर बताती है। गिनती है एक बताती है चार। शक तो शक है, जैसे चाहो आरोप लगाया जा सकता है। ऐसे में लम्बे समय तक नोटों की गिनती हाथ के द्वारा किए जाने की बात करना अनुचित तो नहीं कहा जा सकता। लोकतंत्र की यही तो विशेषता है कि जब कोई बात मन के प्रतिकूल होने लगे, तो आरोप लगाकर शंका व्यक्त कर दो। आरोप लगाने वाले से कोई प्रमाण तो मांगता नहीं। यदि प्रमाण मांग भी ले, तब भी यह कह कर बचा जा सकता है, मुझे तो किसी अनजान शख्स ने बताया था कि कहीं कुछ तो गड़बड़ है।

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