अधिक सीटों को लेकर तृणमूल और ‘आप’ से नाराज़ कांग्रेस 

असम में विपक्ष के लिए बुरी खबर जारी है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का विरोध करने वाले प्रमुख विपक्षी दल भगवा विरोधी मोर्चा बनाने और एकजुट होने के लिए अभी भी संघर्षरत हैं और उनके बीच चुनाव पूर्व सीट बंटवारे की बातचीत में बहुत कम प्रगति हुई है। जब तक कांग्रेस, रायसर दल, असम जातीय परिषद, एआईयूडीएफए और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सहित प्रमुख विपक्षी दल अपने कई मतभेदों को अधिक प्रभावी ढंग से हल करके एक न्यूनतम विश्वसनीय राजनीतिक गठबंधन नहीं बनाते हैं और एक जोरदार भाजपा विरोधी अभियान शुरू नहीं करते हैं, तब तक आगामी लोकसभा चुनाव में उनकी संभावनाएं धूमिल दिख रही हैं।
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सत्तारूढ़ भाजपा 2024 के लोकसभा चुनावों में आत्मविश्वास का प्रदर्शन कर रही है, जिसे आम तौर पर मुख्यमंत्री श्री हिमंतविश्व शर्मा के नेतृत्व के तहत उसके विवादों से भरे शासन की गुणवत्ता से नहीं समझाया जा सकता है। फिर भी असम की हालिया मीडिया रिपोर्टें अपनी कहानी खुद बताती हैं। उदाहरण के लिए वरिष्ठ भाजपा मंत्री श्री पीयूष हजारिका को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि विपक्ष आगामी लोकसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत पायेगा!
जहां तक मुख्यमंत्री की बात है, जिनकी भविष्य की महत्वाकांक्षाएं पूर्वोत्तर क्षेत्र से परे हैं। यह सामान्य ज्ञान है कि वह भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व में, खासकर दिल्ली में, अधिक प्रमुख पद चाहते हैं। उनका विरोध करने वाली पार्टियों के भीतर मौजूदा भ्रम ने उनके आक्रामक विरोध को और तेज़ कर दिया है, खासकर कांग्रेस के खिलाफ।
विपक्षी नेताओं के बीच आपसी मनमुटाव और जुबानी जंग, जो असम स्थित मीडिया में लगभग प्रतिदिन बड़े विस्तार से रिपोर्ट की जाती है, स्वाभाविक रूप से मजबूत भगवा पार्टी के खिलाफ कठिन लड़ाई में उनके सामने आने वाली कठिनाइयों को बढ़ाती है। विभिन्न विपक्षी नेताओं, विशेषकर कांग्रेसियों द्वारा की गयी पिछली गलतियों और गलत निर्णयों का उनका लगातार उल्लेख, उनकी अपनी भाजपा-विरोधी प्रतिबद्धता और चुनाव के बाद एक साथ आने के महत्वपूर्ण सवाल पर उनकी अपनी विश्वसनीयता के बारे में संदेह पैदा करता है। विपक्ष के लिए उत्साहजनक खबर अगर इसे इस तरह वर्णित किया जा सकता है, तो यह है कि कम से कम सीट बंटवारे की बातचीत रुकी नहीं है, बातचीत जारी है, हालांकि बहुत कम नतीजे निकल रहे हैं। असम में सबसे मुखर गैर-कांग्रेसी विपक्षी दल, ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी ने चुनाव के लिए 14 में से शुरुआती पांच से घटाकर दो लोकसभा सीटों की मांग की है। जहां तक आम आदमी पार्टी (आप) का सवाल है, वह भी वर्तमान में उन पांच सीटों में से तीन पर लड़ने के लिए दबाव डाल रही है जो उसने मूल रूप से मांगी थी।
हालांकि राज्य विधानसभा में कांग्रेस के विपक्ष के नेता श्री देबब्रतसैकिया ने हाल के गुवाहाटी नगरपालिका चुनावों में ‘आप’ के कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन को स्वीकार करते हुए भी दोनों पार्टियों द्वारा की गयी नयी मांगों के आधार पर सवाल उठाया। विशेष रूप से पार्टियों द्वारा मांगी गयी विशिष्ट सीटों का जिक्र करते हुए। उदाहरण के लिए टीएमसी ने सिलचर लोकसभा सीट के लिए मजबूत बोली लगायी है। इसके विपरीत श्री सैकिया ने ज़मीनी स्थिति की ओर इशारा किया। न तो टीएमसी और न ही ‘आप’ कई क्षेत्रों में वार्ड समितियां बनाने में भी कामयाब रहे, जबकि लोकसभा सीटें स्वाभाविक रूप से विधानसभा सीटों की तुलना में बहुत बड़े क्षेत्र में फैले हैं।
उनकी राय में कोई भी पार्टी वास्तव में भाजपा पर दबाव डालने की स्थिति में नहीं थी, क्योंकि मुख्यत: उनके पास नाम के लायक भी कोई पार्टी संगठन नहीं था। एक प्रमुख राष्ट्रीय विपक्षी दल के रूप में, कांग्रेस ने इस कठिन समय में भी पूरे असम में पार्टी समर्थकों और वफादारों की महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज की है।
श्री सैकियाकी पीड़ा है कि उन पर टीएमसी और ‘आप’ दोनों ने तीखे हमले किये। टीएमसी नेता श्री रिपुन बोरा को मीडिया ने यह कहते हुए उद्धृत किया कि कांग्रेस को पूरे भारत में जमीनी हकीकत का ध्यान रखना चाहिए। टीएमसी के विपरीत जो अपने मजबूत भाजपा विरोधी अभियानों के लिए जानी जाती है, सबसे पुरानी पार्टी के पास भाजपा के खिलाफ पूरी लड़ाई में जाने की न तो ऊर्जा थी और न ही इच्छाशक्ति। इसे नये मजबूत क्षेत्रीय दलों के लिए रास्ता बनाना चाहिए जो विभिन्न राज्यों में उभरे थे और जिन्होंने भाजपा को बड़े पैमाने पर हराया था।  आप नेताओं ने बताया कि गुवाहाटी नगरपालिका प्राधिकरण में एक सीट जीतने के अलावा नयी पार्टी ‘आप’ लगभग 24 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी। यह कांग्रेस द्वारा अपने सभी अनुभव, पिछले इतिहास, संसाधनों और प्रतिबद्ध समर्थन के साथ हासिल किए गये प्रदर्शन से कहीं बेहतर प्रदर्शन था। ‘आप’ भारत में दो राज्य सरकारें भी चला रही थी। दोनों पार्टियों ने कांग्रेस नेताओं को सलाह दी कि वे विपक्षी दलों से निपटते समय अपने बड़े होने की भावना से बाहर आयें और भाजपा विरोधी अभियान के नाम पर अन्य पार्टियों पर हावी होने की कोशिश न करें।
हालांकि असम की जमीनी हकीकत यह नहीं दर्शाती कि विपक्ष मजबूत स्थिति में है। टीएमसी के भीतर से कछार क्षेत्रों में कम से कम नौ ब्लॉक मंडल समिति के महासचिवों और सचिवों की परेशान करने वाली खबर आयीं, क्योंकि उन्होंने अपना इस्तीफा भेज दिया था। पर्यवेक्षकों ने कहा कि यह प्रवृत्ति आगे फैलेगी। विभिन्न क्षेत्रों में इस्तीफा देने वाले लोगों तथा स्थानीय स्तर के नेताओं की संख्या 40 तक जा सकती है, वह भी आने वाले दो सप्ताह के दौरान। खबरों के मुताबिक ज्यादातर लोग भाजपा में शामिल होने वाले थे। इस्तीफा देने वालों ने आरोप लगाया कि टीएमसी के भीतर पिछले कुछ महीनों के दौरान किसी भी तरह की कोई राजनीतिक गतिविधि नहीं हुई है, जो बेहद निराशाजनक है। टीएमसी नेताओं ने यह दावा करते हुए इस घटनाक्रम पर प्रकाश डालने की कोशिश की कि इस्तीफा देने वालों में से कुछ दो-तीन साल से टीएमसी के साथ थे लेकिन वे मूल रूप से भाजपा से आये थे!
राज्य भाजपा नेताओं ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की। उनके नेताओं ने स्पष्ट रूप से यह स्पष्ट कर दिया कि टीएमसी छोड़ने वाले लोग फिर से शामिल होने पर कोई शर्त लगाने की स्थिति में नहीं हैं। फिर मामला वहीं शांत हो गया। (संवाद)