क्या कृत्रिम बौद्धिकता सामाजिक व्यवहार बदल देगी ?

कृत्रिम बौद्धिकता तेज़ी से विकास की सीढ़ियां चढ़ रही है उससे अनेक शंकाओं ने जन्म लिया है। कुछ बुद्धिमान मित्र केवल इसके सकारात्मक प्रयासों को देख कर गद्गद् हो रहे हैं परन्तु कुछ दोस्त इसके व्यापक दुष्परिणामों और खतरों को देख कर सन्देह से भर गये हैं। वे देख रहे हैं कि कुछ ही लोग एक ऐसे वर्चुअल अस्सिटेंट को सहज भाव से कह सकते हैं, जिससे उन्हें बार-बार विनम्रतापूर्वक अनुरोध करना पड़ सकता है ऐसा कहते हुए-एलेक्सा, क्षमा कीजिएगा, अगर आपको इससे ज्यादा परेशानी न उठानी पड़े, तो क्या मेहरबानी करके मुझे बता सकती हो कि आज का मौसम कैसा रहने वाला है? इन उपकरणों को सीधे-सपाट आदेश का पालन करने के लिए ही डिजाइन किया गया है। जैसे कोई कहेगा -एलेक्सा, मौसम का हाल बताइएगा। और फिर हम सभी सुनने वाले आस रखते हैं कि वह आज्ञाकारी ढंग से बाकायदा जवाब देगी। इसे तभी तक ठीक माना जाता है, जब तक कि उन्हें ऐसे घर में नहीं लाया जाता जहां छोटे बच्चे घर में हों, जो काफी जल्दी कुछ भी नया बहुत जल्दी कोई नई बात समझ-सीख जाते हैं।’ एलेक्सा से हमारी बात करने के तरीकों के बेस पर वो यह सीख ग्रहण कर सकते हैं, कि लोगों से बात करने का सही और सार्थक ढंग यही है- एक रुखेपन के साथ आदेश देने के स्वर में बात करना। इसी तरह हुक्म फरमाना। क्योंकि बच्चों के मन में हर बात जल्दी जगह बना लेती है।
माहिर बता रहे हैं कि कृत्रिम बौद्धिकता (ए.आई.) से हमारे यहां कुछ दूरगामी समस्याएं होने वाली हैं जिसका उल्लेख पहले किया गया है, वह तो एक छोटा सा उदाहरण ही है। आगे जब बात यहां तक आती है कि ए.आई. (कृत्रिम बौद्धिकता) सामाजिक संबंधों को किस तरह प्रभावित करेगा या कर सकता है तब बहुत से लोगों का ध्यान मनुष्यों और ए.आई. के बीच के संबंधों पर केन्द्रित हो जाता है। यहां एक और दृष्टिकोण भी है। वह यह ए.आई. की मौजूदगी में मनुष्य एक-दूसरे के साथ कैसा व्यवहार करने लगेंगे। इस पर बहुत ही कम ध्यान दिया गया है। या नहीं सोचा गया। माहिर बता रहे हैं कि ए.आई. तकनीकी चुनौतियों में मददगार साबित होगा। जैसे कि मैडिकल इमेजेस को प्रोसेस करना। जैसा कि कुछ दिन पूर्व अखबारों में चर्चा थी, के विपरीत कुछ ए.आई. ऐसी भी है, जिन्हें अधिक मानवीय तरीकों से कार्य करने के लिए डिजाइन किया गया ह ै। इनमें साइकोथरेपी प्रदान करने वाली ए.आई. आदि शामिल है। ये टैक्नोलॉजी ‘सोशल स्पिल ओवर’ के आधार पर काम करेगी और लोग दूसरे के व्यवहार पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं या फिर उनसे कैसे सीखते हैं इसे प्रभावित करेगी। ये स्पिल ओवर दूसरे मनुष्यों को भी प्रभावित कर सकते हैं। लोगों का फोन जैसा है, वैसा ही नहीं रहेगा उसमें अधिक से अधिक संख्या में ए.आई. सक्षम को-बार होंगे, जो उनसे अच्छी तरह से परिचित होंगे और दूसरे लोगों से जुड़ने में उनकी मदद करेंगे। ये सारी प्रक्रिया पारम्परिक कम्यूनिकेशन को नया आकार देगी।
एक  और बात जिस पर हमने पिछले दो-तीन लेखों में चर्चा की है, जिस व्यापकता से कृत्रिम बौद्धिकता (ए.आई.) का विस्तार हो रहा है और जल्दी ही होने वाला है उससे भारी संख्या में बेरोज़गारी को विस्तार मिलने की आशंका है। भारत जैसे बहुसंख्या वाले देश में जहां पहले ही पढ़े-लिखे वर्ग में बेरोज़गारी की बीमारी काफी भयानक हो रही है और सामाजिक प्रगति में काफी बाधक हो रही है। आने वाले कल में और भी भयानक तथा विघटनकारी हो सकती है। समाज पर इसका विपरीत असर पड़ सकता है। जहां काम नहीं होगा, वहां निराशा का काला पर्दा गिर सकता है। इससे मनुष्य का व्यवहार निश्चित रूप से बदलने वाला है। 
अब यह आशंका भी व्यक्त की जा रही है कि ए.आई. हमारी सुरक्षा के लिए चुनौती बन सकती है। मनुष्य जब अपने निर्णय ए.आई. को सौंप देते हैं तो परिणाम घातक भी हो सकते हैं। इन तमाम जोखिमों को नज़रों से ओझल नहीं किया जा सकता।